दुनिया देखती रह गई और भारत ने पलट दी बाजी
सऊदी अरब के साथ बढ़ती दोस्ती के भारत को क्या फायदे होंगे? भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर क्या है? अफ्रीकन यूनियन के जी20 में जुड़ने का भारत को क्या फायदा होगा? ये वो तीन बड़े सवाल हैं जिसका जवाब हर कोई जानना चाहता है.
नई दिल्ली:
भारत और सऊदी अरब की दोस्ती की चर्चा आज दुनिया भर में हो रही है. सऊदी के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान ने जी20 शिखर सम्मेलन में शिरकत की. भारत के पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ उनकी मुलाकात हुई. सऊदी प्रिंस ने भारत को जी20 के सफल आयोजन के लिए बधाई दी और कहा कि सऊदी और भारत एक साथ मिलकर बेहतर भविष्य के लिए काम करेंगे. इससे पहले सऊदी के पीएम फरवरी 2019 में भारत आए थे और अब ये उनका दूसरा राजकीय दौरा है. पीएम मोदी ने भी 2016 और 2019 में सऊदी अरब का दौरा किया था. भारत और सऊदी के बीच 5 हजार करोड़ से अधिक का वार्षिक व्यापार है. साल 2022-23 में भारत ने सऊदी को करीब एक हजार करोड़ का निर्यात किया जबकि करीब 4 हजार करोड़ का आयात किया. भारत की करीब 700 कंपनियां सऊदी में काम कर रही है जिन्होंने वहां करीब 200 करोड़ डॉलर का इनवेस्टमेंट किया हुआ है. दूसरी ओर सऊदी अरब ने भी भारत में मार्च 2021 तक 300 करोड़ डॉलर का इनवेस्टमेंट किया हुआ था. चीन के बाद भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर सऊदी अरब ही है. साल 2022-23 में भारत के टोटल ट्रेड का करीब 5 फीसदी केवल सऊदी के साथ ही हुआ था.
सऊदी के साथ भारत की दोस्ती लगातार बढ़ रही है और आने वाले वक्त में भारत और सऊदी अरब दोनों को इससे फायदा होगा. पीएम मोदी का प्लान साल 2030 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का है. इस बात को भी ध्यान रखना होगा कि सऊदी में 2 करोड़ 40 लाख भारतीय रहते हैं. ये लोग वहां की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे सऊदी भी नकार नहीं सकता है. न ही इस बात को नकारा जाना चाहिए कि सऊदी अब अपनी छवि को बदलना चाहता है, कच्चे तेल उत्पादक और इस्लामी देश के अलावा वो अपनी एक ग्लोबल छवि बनाना चाहता है. इसके लिए उसे भारत का साथ भी चाहिए. भारत का बाजार भी चाहिए और भारत की मदद भी चाहिए. वहीं भारत को सऊदी अरब से सोलर पावर का फायदा मिलेगा. एनर्जी सेक्टर में आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस को बढावा दिया जाएगा. यानी कुल मिलाकर व्यापार से लेकर एनर्जी तक के क्षेत्र में भारत को सऊदी से फायदा होगा और सऊदी को भी भारत से तकनीक और मैनपावर के अलावा व्यापारिक फायदे होंगे.
यह भी पढ़ें: G20 में भारत ने चीन को तगड़ा झटका दे दिया है, जानें कैसे?
भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर क्या है?
भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर को समझने के लिए हमें पहले चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना को समझना होगा. साल 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक प्लान बनाया. इस प्लान के तहत चीन को अफ्रीका और यूरोप के साथ जमीन और पानी के रास्तों से जोड़ा जाना था. इस परियोजना को वन बेल्ट वन रोड भी कहा जाता है. चीन अपने कथित तौर पर पुराने सिल्क रूट को वापस पाना चाहता है और इसीलिए वो ऐसा कर रहा है. इसके तहत चीन से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक सड़कों से लेकर बंदरगाह तक और पाइपलाइनों से लेकर रेलमार्गों तक का जाल बिछाया जाना चीन के प्लान का हिस्सा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक अगस्त 2023 तक, 155 देशों और 32 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ 215 सहयोग दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए हैं. हालांकि पाकिस्तान से लेकर श्रीलंका और इटली तक इस प्लान में शामिल होकर पछता रहे हैं.
भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर, दरअसल एक 6 हजार किलोमीटर लंबा आर्थिक गलियारा है. इस प्लान में भारत के अलावा UAE, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी और इटली शामिल हैं. प्लान के तहत इन देशों को रेलमार्गों से जोड़ा जाएगा ताकि शिपिंग की लागत कम आए, ईंधन का कम इस्तेमाल हो, और व्यापार में मदद मिले. इसमें 3500 किलोमीटर का समुद्र मार्ग भी शामिल होगा. इसके बनने के बाद भारत का सामान यूरोप तक पहुंचने में वक्त की करीब 40 प्रतिशत तक की बचत होगी. यानी भारत में जो सामान बनेगा उसको इन तमाम देशों में आसानी से भेजा जा सकेगा, बेचा जा सकेगा. और अपनी जरूरत की चीजों को वहां से मंगाया भी जा सकेगा. इस योजना में बंदरगाह बनेंगे, केबल बिछाए जाएंगे, सप्लाई चेन मजबूत होगी. और इसका फायदा भारत के अलावा उसके सहयोगियों को भी होगा.
अफ्रीकन यूनियन से भारत को क्या फायदा होगा?
अफ्रीकन यूनियन से भारत को क्या फायदा होगा? इस यूनियन में 55 देश शामिल हैं. दुनिया की 18 फीसद जनसंख्या यहां रहती है और दुनिया का करीब 20 फीसद जमीनी इलाका यहीं है. यही नहीं इसकी अर्थव्यवस्था सात ट्रिलियन डॉलर से अधिक है. लेकिन इसके अधिकतर सदस्य देश पिछड़े हुए हैं. हालांकि अफ्रीका में प्राकृतिक संसाधनों का अंबार है. चीन ने यहां मौका देखा और आज अफ्रीका का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर चीन है. दोनों के बीच वार्षिक व्यापार 254 बिलियन डॉलर का है. लेकिन पिछले डेढ़ दशक में भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार काफी बढ़ा है. 2018-19 में भारत-अफ्रीका के बीच 63.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ. भारत ने कोविड महामारी के दौरान अफ्रीकन देशों की बड़ी मदद की. वेस्ट अफ्रीका के देशों को भारत बड़े पैमाने पर रसद आदि भी भेजता है. फिलहाल भारत का अफ्रीका के साथ करीब 70 बिलियन डॉलर का ट्रेड होता है. अफ्रीका में भारतीय वस्तुओं की मांग बढ़ रही है. ऑटोमोबाइल से लेकर दवाइयां तक और वित्तीय सेवाओं से लेकर शिक्षा सेवाओं तक में भारत और अफ्रीका के बीच गठजोड़ बढ़ रहा है. अब यहीं एक जरूरी बात. अफ्रीकन यूनियन में चीन का दखल यहां बढ़ रहा था लेकिन अब इस दखल पर लगाम लगेगी. क्योंकि अब ये संघ जी20 का हिस्सा बन गया है और इसका पूरा श्रेय भारत को जाता है.
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