विश्व पर्यावरण दिवस 2018: पर्यावरणीय असंतुलन के लिए 'हम सब' हैं जिम्मेदार
विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ सालों से होती रही है। विकास कितना हुआ ये देखने की बात है पर इस दौरान प्रकृति के साथ हमने क्या किया है ये सोचने की बात है।
नई दिल्ली:
कभी तेज धूप तो अगले ही पल झमाझम बारिश। कभी कंपकपाती सर्दी और चारो तरफ धुंध तो अगले ही पल आसमान साफ.. यह चमत्कार नहीं गुस्सा है प्रकृति का। विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ सालों से होती रही है। विकास कितना हुआ ये देखने की बात है पर इस दौरान प्रकृति के साथ हमने क्या किया है ये सोचने की बात है।
आज न शुद्ध पानी है, न हवा और न ही शांत वातावरण। एक ऐसे देश में जहां नदी को मां माना जाता है और वह आस्था का विषय है। उस देश में गंगा नदी की हालत हमने ऐसी कर दी है कि पीना तो दूर उस पानी से नहाना भी जानलेवा हो सकता है।
घर-आंगन में तुलसी और पीपल के पौधे को पूजने वाले हम लोगों ने बड़ी-बड़ी इमारतों को खड़ा करने के लिए पेड़ों को पराया कर दिया। लगातार अलग-अलग कारणों से हम पेड़ काटते रहे, जिसकी वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग का स्तर बढ़ा। इससे भौगोलिक और पर्यावरणीय असंतुलन पैदा हो गया है।
लगातार अपनी सुविधा और हित के लिए हम पेड़ को काट रहें है। पेड़ कह रहा है- पेड़ हूं मैं जानता हूं प्रकृति के नियम को, काटते हो जब मुझको तो काटते हो तुम स्वयं को।
हमने कभी पेड़ों की या नदियों की चेतावनी नहीं सुनी। गुरु ग्रंथ साहिब में लिखा है 'पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत' अर्थात हवा को गुरु, पानी को पिता और धरती को मां का दर्जा दिया गया है।
लेकिन हम अधिक विकास की रफ्तार के चलते तेजी से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। पृथ्वी पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन और उन संसाधनों के दोहन के अनुपात में अत्यधिक अंतर है। अत्यधिक दोहन के चलते शीघ्र ही प्राकृतिक संसाधनों के भंडार समाप्ति के कगार पर पहुंच जाएगा।
लगातार बढ़ती गाड़ियों की संख्या से वायू प्रदूषण बढ़ गया है। सांस लेना मुश्किल हो गया है। वन्य जीवों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। बार-बार आग लगने के कारण छोटे वनस्पतियों की कई प्रजातियां ही समाप्त हो गई है। खेतों में भारी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भूमि बंजर होती जा रही है। परंपरागत खादों का उपयोग लगभग बंद हो गया है।
भू-जल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। भूमि में हो रहे बोर पंप के कारण भूगार्भिक जल का स्तर तेजी से घटता जा रहा है।
ऐसे में 5 जून यानी आज पूरी दुनिया में जब विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है तो हमें सोचने की जरूरत है कि आखिर हमे शुद्ध पानी हवा और शांत वातावरण को नुकसान पहुंचाकर विकास चाहिए या नहीं।
इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी भारत कर रहा है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने बताया है कि विश्व पर्यावरण दिवस 2018 का विषय ‘बीट प्लॉस्टिक पॉल्यूशन’ होगा।खानों की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिको में सबसे खतरनाक फॉर्मलडिहाइड नामक रसायन से कैंसर होने की संभावना सबसे अधिक होती है। इसके अलावा प्लास्टिक की थैलियों और बोतलों को जगह-जगह फेंक देने से पर्यावरण को बहुच नुकसान पहुंचता है इसलिए जरूरी है कि इस मौके पर पर्यावरण मंत्री पूरे देश को बताएं कि हमें प्रकृति से कैसे रिश्ता बनाना चाहिए ताकी वह हमेशा हमारे संरक्षण के लिए रहे।
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