logo-image

World Disability Day 2019: पढ़ें अपनी कमजोरी पर जीत पाने वाली ज्योति-दीया और अहमद रजा की कहानी

आज यानी कि 3 दिसंबर को विश्व दिव्यांग दिवस (World Disability Day 2019) मनाया जा रहा है. ऐसे में हम आज आपको ऐसी ही तीन प्रेरणादायक लोगों की कहानी के बारें में बताने जा रहे है, जिनके सपनों के बीच में उनकी दिव्यांगता भी नहीं आ पाई.

Updated on: 03 Dec 2019, 02:12 PM

नई दिल्ली:

कहते है हौंसले अगर बुलंद हो तो आप किसी भी मुकाम पर पहुंच सकते है. अगर आप मजबूत इरादें रखतें है तो फिर किसी भी तरह को मुश्किल आपकी मंजिल की रोड़ा नहीं बन सकती है. आज यानी कि 3 दिसंबर को विश्व दिव्यांग दिवस (World Disability Day 2019) मनाया जा रहा है. ऐसे में हम आज आपको ऐसी ही तीन प्रेरणादायक लोगों की कहानी के बारें में बताने जा रहे है, जिनके सपनों के बीच में उनकी दिव्यांगता भी नहीं आ पाई. 

और पढ़ें: पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान से दिव्यांगों के लिए किया 3-व्हीलर्स का निर्माण, Tweet कर की सरकार से लोन की उम्मीद

दीया श्रीमाली 

दिव्यांगता के साथ जीना और जीवन की सभी कठिनाइयों का सामना करना सबके लिए आसान नहीं है. अपना भविष्य खुद लिखते हुए दीया श्रीमाली सबके लिए ऐसे सबक पेश करती है, जिसे भूलना आसान नहीं होता. राजस्थान उदयपुर की रहने वाली दीया श्रीमाली, जिनके हाथ पूरी तरह से विकसित नहीं हैं. जन्म के साथ ही उनकी उंगलियां आपस में चिपकी हुई थीं. एक निजी विद्यालय में नौवीं कक्षा की छात्रा है .

दीया का सपना है कि डांस के लिए अपने जुनून को राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर करना है. एक धार्मिक परिवार में जन्मी, दीया के पिता एक पुजारी हैं, और उनकी मां एक गृहिणी हैं. टेलीविजन या इंटरनेट से नृत्य सीखने वाली एक स्व-शिक्षित डांसर दीया कहती हैं कि उनका परिवार न केवल उसकी दिनचर्या को सुचारू रखने में मदद करने करता है बल्कि उसके कौशल को विकसित करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हुए उसे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करता है.

मेरी मां और मेरी बड़ी बहन मेरा बहुत साथ देती है और मुझे उन अवसरों के लिए तैयार करती हैं, जहां मैं अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकूं. शहर से बाहर मेरी हर परफॉर्मेंस पर मेरी मां और बड़ी बहन मेरे साथ जाती हैं. दीया का छोटा भाई, उनके उनके नियमित कामों में मदद करने के साथ-साथ नृत्य के लिए दीया के समर्पण को बनाए रखने में मदद करता है.

ज्योति मस्तेकर 

मुंबई की रहने वाली 29 वर्षीय कलाकार ज्योति मस्तेकर नारायण सेवा संस्थान द्वारा मुंबई में 10 नंवबर करायें गए 14वें दिव्यांग टैलेंट शो के दौरान नृत्य प्रदर्शन किया है जो देश भर के कई युवाओं के लिए आज प्रेरणा बन चुकी हैं. मुंबई की तंग बस्ती के गलियारों में पली-बढी के दूसरे से हाथ छोटा होने के बाद भी ज्योति का नृत्य को लेकर उत्साह जिंदा है. जब से ज्योति स्कूल जाने लगी तब से उसने नृत्य सीखना व कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू कर दिया था. जैसे-जैसे ज्योति, उम्र की दहलीज लांघती गई, वैसे-वैसे उसकी प्रतिभा और निपुणता और निखरती गई. ज्योति को सबसे ज्यादा धक्का तब लगा जब उसके पिता ने इसी साल करीब 7 महीने पहले दुनिया को अलविदा कह दिया.

ये भी पढ़ें: पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान से दिव्यांगों के लिए किया 3-व्हीलर्स का निर्माण, Tweet कर की सरकार से लोन की उम्मीद

अहमद रज़ा

अहमद रज़ा ने नारायण सेवा संस्थान द्वारा मुंबई में 10 नंवबर करायें गए 14वें दिव्यांग टैलेंट शो के दौरान नृत्य प्रदर्शन किया है . राजस्थान के नागौर जिले में मकराना शहर में रहने वाले फरहान अहमद के घर 16 जून 2014 को अहमद ने जन्म लिया था. ऱजा की किलकारियों ने घर में खुशियां ला दिया था लेकिन जब अहमद के माँ-बाप को इस बात का मालूम हुआ कि उनका नवजात बच्चा दोनों हाथ और एक पैर की विकृत अवस्था के साथ पैदा हुआ है तो इस बात का उन्हें बहुत गहरा सदमा लगा. इस स्थिति को देखकर पिता के रिश्तेदारों ने उस बच्चें को अस्पताल में ही छोड़ देने की सलाह दी.

अपने रिश्तेदारों के द्वारा दबाव बनाने के बाद भी बच्चे के पिता फरहान अहमद ने किसी भी तरह की सलाह से प्रभावित हुए बिना अपने बच्चे को आगे बढ़ाया. अपने बेटे के दिव्यांग होने के बावजूद फरहान ने उसे एक हीरा-जैसा रत्न बनाने का फैसला किया, ताकि उसका बेटा दुनिया की नज़र में एक दिव्यांग की भूमिका में रहते हुए कभी खुद को लाचार ना समझें. अपने बच्चे के जीवन को बेहतर और सुखद बनाने के लिए कड़ी मेहनत की.

आज वो बच्चा अहमद रज़ा है, जो एक प्रसिद्ध नृतक है, आश्चर्य की बात यह है कि अहमद रज़ा की उम्र मात्र 5 वर्ष है, लेकिन इस छोटे से हीरे ने पूरे देश को मनोरंजित करने के साथ सभी का मनोबल भी बढ़ाया है.

और पढ़ें: Divyang talent show 2019: अपनी हैरत अंगेज स्टेज परफॉर्मेंस से दिव्यांग हिरोज ने लोगों को किया हैरान

नारायण सेवा संस्थान के प्रेसीडेंट प्रशांत अग्रवाल ने कहा कि इन दिव्यांगों की हिम्मत देखकर हमारा संकल्प ज्यादा मजबूत और सुदृढ़ हो जाता है. जो हमें दिव्यांगों के लिए प्रति सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे हम अपने बेहतर प्रयासों से ज्यादा से ज्यादा दिव्यांगों को मुख्यधारा में लाए. समाज को प्रेरित करने के लिए कई जागरुकता अभियानों को चलाते है जिससे दिव्यांगों को सुरक्षित और स्थापित करियर दिया जा सके.