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शर्म तो आंखों की ही होती है, जो वो छूट जाए तो नज़ारा शायद यही होता है,समाजवाद के जिस कुनबे को मुलायम ने अपने ख़ून-पसीने से सींचा अब उसकी धरती धरतीपुत्र के सामने ही डगमगा रही है। समाजवाद की टोपी यूं उछलेगी...सरेआम उछलेगी...किसी ने सोचा भी नहीं होगा लेकिन जंग अब खुलेआम है। कोई किसी की सुन नहीं रहा अपने-अपने गिले शिकवों के साथ घराने में घमासान जारी है।नौबत आरोप-प्रत्यारोपों की सीमा से आगे निकलकर हैसियत बताने और हाथापाई तक जा पहुंची है।
कार्यकर्ता तो कार्यकर्ता अखिलेश और शिवपाल के बीच भी माइक को लेकर छीना-झपटी की नौबत आ गई है। हालांकि बाद में पटकथा के सूत्रधार कहे जा रहे आशु मलिक खुद ही सफाई देने आए । समाजवाद के कुनबे में घमासान शांत करने के लिए मुलायम ने जो बैठक बुलाई वो अखाड़े में बदल गई। शिवपाल अखिलेश मंच पर ही भिड़ गएष। मुलायम ने बीच-बचाव किया भी तो शिवपाल की तरफदारी करते ही दिखे।
भाई को प्यार, बेटे को फटकार!
'क्या है तुम्हारी हैसियत, मैं जानता हूं। किसी को तुम गाली दोगे तो क्या वो तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा। तुम्हारे पैर छुएगा क्या, रोज़ाना गाली दे रहे हो....हम शिवपाल, अमर सिंह को नहीं छोड़ सकते' ये कहना किसी और का नहीं उत्तर प्रदेश के सीएम अखिलेश यादव के पिता और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का है। अब आप अंदाजा लगा सकते है पिता-पुत्र में राजनीतिक संघर्ष किस मुकाम तक पहुंच चुका है।
पावर गेम में जीत चाहे किसी की भी हो मुलायम की हार नज़र आ रही है।जिस परिवार को उन्होंने समाजवाद की छतरी में एकजुट किया था।उसका मतभेद अब मनभेद बन चुका है और मतभेद तो शायद दूर हो भी जाएं मनभेद ख़त्म होगा इसकी उम्मीद दूर तलक नज़र नहीं आ रही।
Source : News Nation Bureau