Lockdown 3.0 में शराब और पान मसाला की दुकानें क्यों खुलेंगी, जानें अर्थव्यवस्था के लिए कितनी है 'सेहतमंद'

मोदी सरकार ने लॉकडाउन 3.0 में शराब-पान और गुटखा जैसे उत्पादों की दुकानों को कुछ शर्तों के साथ खोलने का आदेश दिया है.

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Deepak Pandey
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Lockdown 3.0 में शराब और पान मसाला की दुकानें क्यों खुलेंगी( Photo Credit : फाइल फोटो)

मोदी सरकार ने लॉकडाउन 3.0 में शराब-पान और गुटखा जैसे उत्पादों की दुकानों को कुछ शर्तों के साथ खोलने का आदेश दिया है. देशभर के सभी जिलों में ये आदेश राज्य सरकारों की स्वीकृति के बाद लागू होगा. फिर चाहे वह रेड जोन में जिले हो, ऑरेंज जोन में हो या ग्रीन जोन में. मोदी सरकार के इस आदेश के बाद कई जगह से विरोध के स्वर भी उठ रहे हैं.

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हालांकि, इस आदेश के पहले कई राज्य सरकारों ने अपने प्रदेश में शराब की दुकानें खोलने की तैयारी कर ली थी, लेकिन अलग-अलग कारणों के चलते उन्हें पीछे हटना पड़ा. अब केंद्र के आदेश के बाद राज्य सरकारें 4 मई से शराब के साथ-साथ पान और गुटखा की दुकानें भी शर्तों के साथ खोल सकती हैं. आइये जानते हैं क्या है शराब और अर्थव्यवस्था का गणित?.

लॉकडाउन में भी शराब की दुकानें क्यों खुल रही है, इसको समझने के लिए शराब और अर्थव्यवस्था के गणित को समझना जरूरी है. अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो उसे हर साल आबकारी टैक्स से 20 हजार करोड़ से ज्यादा का राजस्व मिलता है. प्रदेश सरकार के कर्मचारियों को हर साल सिर्फ वेतन के मद में करीब 18 हजार करोड़ रुपये दिए जाते हैं. यानी केवल आबकारी टैक्स से राज्य सरकार कम-से-कम अपने कर्मचारियों को वेतन तो दे ही सकती है.

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ऐसा ही कुछ आंकड़ा मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) का है. एमपी में आबकारी टैक्स से करीब दस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की प्राप्ति होती है. एमपी सरकार के कर्मचारियों का वेतन भी इसी के आसपास है. हरियाणा सरकार को आबकारी से छह हजार करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है. यानी ऐसे माहौल में जब जीएसटी, पेट्रोल और डीजल पर सरकार को मिलने वाले टैक्स न के बराबर हैं तो सरकार के सामने शराब की दुकानें खोलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प शायद नहीं रहा होगा.

वर्तमान में टैक्स कलेक्शन जहां तेजी से घटा है तो वहीं सरकार का खर्च तेजी से बढ़ा है. केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, स्वास्थ्य के साथ-साथ मजदूरों के कल्याण के लिए सरकारें अपनी निधि से लगातार पैसे खर्च कर रही हैं.

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