रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर हैं. इस दौरान भारत और रूस के बीच 20 करार पर हस्ताक्षर होने हैं. लेकिन अमेरिका समेत पूरी दुनिया की नज़र इस बात पर है कि क्या भारत और रूस के बीच S-400 ट्राइम्फ एयर डिफेंस सिस्टम की खरीद पर सहमति होगी या नहीं. अगर 5 बिलियन डॉलर यानी करीब 40 हज़ार करोड़ का ये सौदा हो जाता है तो भारत रूस और चीन के बाद दुनिया का तीसरा देश होगा जिसके पास सबसे एडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम होगा. लेकिन अमेरिका इस डील को लेकर पहले से ही खफा है. अमेरिका को नाराज़गी की परवाह किए बिना भारत क्यों S-400 ट्रायम्फ खरीदने को बेताब है और इससे भारत की सैन्य क्षमता किस तरह मजबूत होगी बताते हैं आपको.
S-400 सिस्टम की दुनिया इतनी मुरीद क्यों है ?
वॉरफेयर की तकनीक के लिहाज से दूसरा विश्वयुद्ध एक नए और खतरनाक दौर की शुरुआत थी. असॉल्ट राइफल बनाने के साथ साथ फाइटर एयरक्राफ्ट पर ज़ोर दिया जाने लगा और हार जीत आसमान से तय होने लगी. दुनिया के ताकतवर देशों ने फाइटर एयरक्राफ्ट बना लिए थे जो चंद सेकेंड में बम बरसा कर किसी भी देश में तबाही मचा दे. अब जरूरत पड़ी फाइटर एयरक्राफ्ट्स को रोकने की.
इससे पहले तक आसमान में उड़ रहे प्लेन को गिराने के लिए गन का ही इस्तेमाल होता था. इसीलिए 1950 के दशक में सरफेस टू एयर मिसाइल तकनीक पर काम ज़ोर शोर से शुरू हुआ. इसमें सबसे बड़ी कामयाबी रूस को मिली जिसने S-75 Dvina बनाकर अमेरिका की हालत खराब कर दी थी. S-75 Dvina ने सबसे पहले चीनी सीमा में 20 किलोमीटर ऊपर उड़ रहे ताइवान के Martin RB-57D Canberra एयरक्राफ्ट को मार गिराया था. साल 1960 में USSR के ऊपर से उड़ रहे U2 विमान का क्रैश भी इसी एयरक्राफ्ट डिफेंस सिस्टम के तहत अंजाम दिया गया था जो उस दौर में बहुत चर्चित हुआ था.
अब 50 साल बाद की कहानी सुनिए. 2007 में रूस ने अपने सेना में ऐसा एंटी मिसाइल और एंटी एयरक्राफ्ट सिस्टम शामिल किया जो सबसे ज्यादा एडवांस्ड था. इसका नाम था S-400 जो S-75 Dvina का ही सबसे ज्यादा विकसित रूप है. ये सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम के जरिए एयरक्राफ्ट और बैलिस्टिक मिसाइल को रोकने का सबसे ताकतवर सिस्टम है.
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इसके सामने अमेरिका का THAAD सिस्टम भी बौना लगता है. इसकी ट्रैकिंग क्षमता 600 किलोमीटर है तो 400 किलोमीटर दूर 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक ये किसी भी मिसाइल या एयरक्राफ्ट को टारगेट कर सकता है.
S-400 मोबाइल सिस्टम है जिसमें मल्टीफंक्शन राडार और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम लगा है. ये सिर्फ 5 मिनट में तैनात किया जा सकता है और कई परतों में सुरक्षा के लिए इससे तीन तरह की मिसाइल लॉन्च होती हैं. ये एक बार में 100 टारगेट ट्रैक कर सकता है और उनमें से 6 को एक साथ नेस्तनाबूद कर सकता है.
भारत को इसका कितना फायदा होगा ?
आप इसकी अहमियत इस तरह से समझिए कि अगर साल 1945 में जापान के पास एयर डिफेंस सिस्टम होता तो हीरोशिमा और नागासाकी तबाह नहीं होते. यानी अगर आपके पास अच्छा एयर डिफेंस सिस्टम है तो देश की सरहद में बिना अनुमति के ना तो दुश्मन का कोई एयरक्राफ्ट घुस पाएगा और ना कोई मिसाइल घुस पाएगी.
मसलन अगर S 400 दिल्ली में तैनात कर दिया जाए और पाकिस्तान या चीन से कोई मिसाइल दिल्ली को टारगेट करके दागी जाए तो वो S-400 सिस्टम उसको 600 किलोमीटर पहले ही ट्रैक कर लेगा और 400 किलोमीटर पहले मार गिराएगा.
अगर चीन और पाकिस्तान की तरफ से एक साथ कई मिसाइल भी दागी जाएं तो भी S 400 उनसे निबट सकता है. पाकिस्तान के पास अभी सबसे ताकतवर फाइटर एयरक्राफ्ट F 16 वो भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है अगर S-400 सिस्टम तैनात हो तो.
भारत पाकिस्तान की सीमा में ही एयरक्राफ्ट को मार गिरा सकता है. चीन के पास करीब 1700 फाइटर जेट हैं वो भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते. यहां तक अमेरिका का सबसे ताकतवर F-35 फाइटर एयरक्राफ्ट S-400 के सामने बौना साबित होगा.
अमेरिका का क्या रोल है ?
अमेरिका की ट्रंप सरकार ने 2017 में काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शन्स एक्ट यानी CAATSA बनाया जिसके तहत कोई भी अगर रूस, कोरिया और ईरान के साथ बड़े सौदे करता है तो उस पर अमेरिका सैंक्शन लगाएगा. भारत का कहना है कि उसके ख़रीद फरोख्त के फैसलों में कोई दूसरा मुल्क दखल नहीं दे सकता है.
दूसरी बात, भारत अमेरिका को ये भी समझाने की कोशिश में लगा है कि S-400 होने से भारत शक्ति का संतुलन करेगा जो अमेरिका के भी हित में है. इस तरह CAATSA के तहत अमेरिका भारत को छूट दे सकता है. हालांकि अभी इस पर अमेरिका ने कोई ऐलान नहीं किया है.
लेकिन साथ ही अमेरिका को ये भी डर है कि रूस का ये सिस्टम ज्यादा देशों के पास हो जाएगा उसके F35 लड़ाकू विमानों की कदर नहीं रहेगी. फिलहाल सऊदी अरब, तुर्की और कतर भी ये सिस्टम लेने के लिए लाइन में हैं. चीन के पास पहले से S-400 सिस्टम है.
S-400 की क्षमता की वजह से भारत अमेरिका की नाराजगी के बावजूद भी इस एयर डिफेंस सिस्टम को खरीदना चाहता है. उम्मीद है पुतिन-मोदी की मुलाकात के दौरान इस पर मुक्कल बातचीत हो.
Source : Suresh Kumar Bijarniya