पाकिस्तान के बालाकोट में किए गए एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई के रूप में भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश की तो उनके पीछे हमें मिग 21 लड़ाकू विमानों को उड़ाना पड़ा. द हिंदू की खबर के अनुसार, हमारे पास एसयू-30 (SU-30) होते हुए भी उसका इस्तेमाल नहीं कर पाए, क्योंकि इन विमानों को खरीदने के दो दशक बाद भी हम उसके लिए ब्लास्ट पेन ही विकसित नहीं कर पाए. 2017 में कैबिनेट ने इसे लेकर एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.
रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, नौकरशाही और लालफीताशाही के कारण हम एलओसी के पास Su-30 MKI के लिए ब्लास्ट पेन विकसित नहीं कर सके. इसलिए, इन विमानों को एलओसी के किनारे तैनात नहीं किया जा सकता था. सूत्र ने बताया, ''परियोजना को पूरा करने में तीन या चार साल लगेंगे, लेकिन निर्माण या लागत के लिए पेन की संख्या को कम करने से इनकार कर दिया."
27 फरवरी की सुबह, F-16, JF-17 और कुछ पुराने मिराज सहित 20 से अधिक PAF जेट विमानों ने संक्षिप्त रूप से LoC को पार किया और H4 ग्लाइड-बम को गिराने की कोशिश की, लेकिन मिग -21 बाइसन जेट ने उनकी कोशिशों को सफल नहीं होने दिया. हालांकि एक एफ -16 को गोली मार दी गई थी और भारतीय वायुसेना ने एक मिग -21 को खो दिया था.
बता दें कि भारतीय वायुसेना को 1996 में रूस से Su-30s की पहली खेप मिली थी और 272 विमानों का अनुबंध हुआ, जिनमें से 240 को शामिल किया गया है. ब्लास्ट पेन का निर्माण रूस के साथ मूल सौदे में शामिल नहीं था. रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने 2016 की रिपोर्ट में इस बाबत इशारा किया था.
ब्लास्ट पेन विमान को दुश्मन के जेट या मिसाइलों के हमले से बचाता है. पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध में, भारतीय वायुसेना ने कई विमान खो दिए थे, जबकि 1971 के युद्ध के दौरान इसे दोहराने से बचा लिया गया था.
Source : News Nation Bureau