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कौन हैं ब्रिटिश शासन को हिला कर रख देने वाले वीर सावरकर, जिनके नाम पर राजस्थान में मचा है हंगामा

हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय भी सावरकर को ही जाता है. वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे जिन्होने ब्रटिश शासन को हिला डाला था

Updated on: 29 May 2019, 10:04 AM

नई दिल्‍ली:

वीर सावरकर को लेकर राजस्थान की सियासत गरमाई हुई है. दरअसल कांग्रेस सरकार ने वीर सावरकर को लेकर स्कूल के पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव किए हैं जिसपर बीजेपी ने आपत्ति जताई है. कांग्रेस ने पाठ्यक्रम में बताया है कि वीर सावरकर न तो देशभक्त थे और ना ही वीर, बल्कि उन्होंने जेल से बचने के लिए अंग्रेजों से दया मांगी थी. साथ ही नए पाठ्यक्रम में सावरकर को पुर्तगाल का पुत्र बताया गया है. बीजेपी लगातार इसका विरोध जता रही है. वीर सावरकर पर जारी इस पूरे बवाल के बीच ये जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर वीर सावरकर थे कौन.

कौन थे वीर सावरकर?

वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था, भारतीय इतिहास में उनको न सिर्फ स्वाधितनता संग्राम का तेजस्वी सेनानी माना जाता है बल्कि उन्हे महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी राजनेता भी माना जाता है. इतना ही नहीं हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय भी सावरकर को ही जाता है. वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे जिन्होने ब्रटिश शासन को हिला डाला था.

उनका जन्म नासिक के भांगुर गांव में हुआ था. उनके दो भाई एक बहन थी. 1904 में उन्होंने एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की जिसका नाम रखा गया 'अभिनव भारत'. इसके 1905 में बंगाल विभाजन के बाद उन्होंने पुणे में विदेशी कपड़ों की होली जलाई. सावरकर रूसी क्रांतिकारियों से काफी प्रभावित थे. 10 मई, 1907 को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई. जून, 1907 में सावरकर की पुस्तक द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस 1857 तैयार हो गयी लेकिन इसके छपने में दिक्कत आई. बाद ये किताब गुप्त रूप से हॉलेंड में प्रकाशित की गई.

1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लंदन टाइम्स में एक लेख लिखा था. इसके बाद 13 मई 1910 को पेरिस से लंदन पहुंचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन जुलाई में वो भाग निकले. 24 दिसंबर को उन्हे उम्रकैद की सजा दी गई. 1911 में एक और मामले में सावरकर को उम्रकैद की सजा दी गई. इसके बाद नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत सावरकर को 11 अप्रैल को काला पानी की सजा दे दी गई.

10 साल भोगी काला पानी की सजा

इस दौरान उन्हें सेलुलर जेल भेज दिया गया. इस जेल में स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था. कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था. इतना ही नहीं उन्हें कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों और नारियल का तेल निकालना पड़ता था. इन सबके अलावा उन्हें जंगलों को साफ करना पड़ता खा. अगर कोई भी कैदी काम करते वक्त थक कर रुक जाता तो उसे कोड़ों से पीटा जाता. वहां मौजूद कैदियों को पेट भर खाना भी नहीं दिया जाता था. सावरकर इस जेल में 10 सालों तक रहे जिसके बाद 21 मई 1921 को उन्हें रिहा कर दिया गया. जेल से रिहा होने पर देश वापस लौटे और 3 साल फिर सजा काटी. इस दौरान जेल में उन्होंने हिंदुत्व पर शोध ग्रंथ भी लिखा. 26 फरवरी 1966 में 82 वर्ष की उम्र में उनका मुंबई में निधन हो गया था.