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Ravindra Singh Bhati( Photo Credit : social media)
72,000 वर्ग किलोमीटर में फैले बाड़मेर में कमाल हो रहा है. थार रेत के टीलों और रूखी झाड़ियों के बीच बसे इस क्षेत्र में सियासी रंगमंच नया आकार ले रहा है. यहां दांव पर है देशभर में सियासत का मोर्चा बुलंद करने वाली दो मुख्य पार्टियां भाजपा-कांग्रेस की साख, क्योंकि उनके मुकाबिल हैं लोकसभा चुनाव 2024 में बाड़मेर सीट से दावेदार रवींद्र सिंह भाटी... वही युवा नेता, जिसे मतदाताओं द्वारा वोट से पहले ही विजेता घोषित कर दिया गया है. जी हां.. ऐसा क्यों, कब, कैसे? चलिए इन सारे सवालों के जवाब जानें.
जमीनी स्तर का युवा नेता
रवींद्र सिंह भाटी, दरअसल एक ऐसे युवा नेता हैं, जो न सिर्फ लोगों के बीच, बल्कि सोशल मीडिया पर भी काफी मशहूर हैं. वह जमीनी स्तर पर मारवाड़ी भाषा में संवाद करते हैं, वह उन मुद्दों को उजागर करते हैं, जो जनता से जुड़े हैं. शैक्षिक अवसरों, रोजगार, सुलभ स्वास्थ्य सुविधाओं की मौजूदगी उनकी प्राथमिकताओं में स्पष्ट नजर आती है. उनके भाषणों में एनर्जी है, वो अलगाव की नहीं, बल्कि सौहार्दपूर्ण बाते करते हैं.
यूं शुरू हुई सियासी पारी
ज्ञात हो कि, भाटी ने 2023 के विधानसभा चुनावों में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपनी पार्टी समर्थित विरोधियों से जीत हासिल की थी. त्रिकोणीय मुकाबले में वह बाड़मेर के आठ विधान सभा क्षेत्रों में से एक शेओ में विजेता बनकर उभरे थे. बस यहीं से उनकी इस सियासी गाथा का आगाज हुआ.
ऐसा था भाटी का शुरुआती जीवन
1997 में एक स्थानीय स्कूल शिक्षक के घर जन्मे, भाटी 2019 से सियासत में सक्रिय हैं. यही वक्त था जब उन्हें जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनवीयूएसयू) का अध्यक्ष चुना गया था. भाजपा की छात्र शाखा, एबीवीपी द्वारा उदासीनता बरतने के कारण, वह विश्वविद्यालय के 57 साल के इतिहास में बिना किसी पार्टी संबद्धता के छात्र संघ के पहले निर्वाचित प्रमुख बने.
Source : News Nation Bureau