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सुप्रीम कोर्ट( Photo Credit : (फाइल फोटो))
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अयोध्या मामले में शनिवार को हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों ने अपने लिखित जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए.
सुप्रीम कोर्ट( Photo Credit : (फाइल फोटो))
अयोध्या मामले में शनिवार को हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों ने अपने लिखित जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए. कोर्ट ने 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रखते हुए सभी पक्षकारों को 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' को लेकर तीन दिन में लिखित जवाब दाखिल करने को कहा था. यानी उनको कोर्ट को बताना था कि अगर कोर्ट उनकी ज़मीन पर मालिकाना हक़ को लेकर मुख्य मांग को खारिज कर देता है तो विकल्प के तौर पर वो किस राहत की उम्मीद कोर्ट से करते हैं.
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रामलला विराजमान का जवाब
रामलला विराजमान ने ज़मीन पर किसी समझौते की गुंजाइश से साफ़-साफ़ इंकार करते हुए कहा है कि पूरी ज़मीन उसे राममंदिर निर्माण के लिए मिलनी चाहिए. वहां किसी मंदिर या मूर्ति के न रहते हुए भी वो पूरी ज़मीन श्रीराम का जन्म स्थान होने के नाते हमेशा पूजनीय रही है. उस पवित्र ज़मीन पर विवादित ढांचा खड़े करने वाला और ढांचे के नीचे मंदिर की बात को झुठलाता रहा मुस्लिम पक्ष किसी तरह की कोई राहत का अधिकारी नहीं है. 'श्रीरामजन्मस्थान' के न्यायिक व्यक्ति का दर्जा दिए जाने पर सवाल करने वाले निर्मोही अखाड़े का भी ज़मीन पर कोई हक़ नहीं बनता.
पक्षकार गोपाल सिंह विशारद का जवाब
अयोध्या मामले में पक्षकार रहे गोपाल सिंह विशारद के बेटे की ओर दाखिल जवाब में भी कहा गया है कि श्रीरामजन्मभूमि पर पूरी तरह से अधिकार सिर्फ हिंदुओं का है. इस जगह को लेकर हिंदुओं की अनंत काल से अगाध आस्था है. इस ज़मीन को मुस्लिम पक्ष के साथ बांटा जाना नाइंसाफ़ी ही होगी.
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हिंदू महासभा और रामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति का जवाब
हिन्दू महासभा ने कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए हिन्दू पक्ष को ज़मीन देते वक़्त सुप्रीम कोर्ट वहां मन्दिर के निर्माण, प्रबंधन के लिए एक ट्रस्ट बनाने का निर्देश दे सकता है. जिसका प्रशासक कोर्ट ख़ुद नियुक्त कर सकता है या फिर प्रशासक नियुक्त करने का जिम्मा सरकार को दिया जा सकता है. रामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति ने भी लगभग यही बात कही है. उन्होंने इसके साथ ही कोर्ट से मध्यस्थता कमेटी के निष्कर्षों पर गौर करने को कहा है.
निर्मोही अखाड़े का लिखित जवाब
निर्मोही अखाड़े ने लिखित जवाब में कहा है कि अगर कोर्ट रामलला विराजमान को भी ज़मीन का मालिकाना हक़ देता है तो भी सेवादार का हक़ निर्मोही अखाड़े का बनता है और अगर सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए विवादित जमीन का बाहरी और भीतरी हिस्सा श्रीराम का जन्म स्थान माना जाता है तो सेवादार निर्मोही अखाड़े को पूरी जगह का कब्जा दिया जाना चाहिए. ऐसी सूरत में मुस्लिम पक्षकार अपने हिस्से आई ज़मीन को लंबी अवधि के लिए निर्मोही अखाड़े को लीज पर दे, ताकि अखाड़ा वहां मंदिर का निर्माण कर सके और इसके एवज में विवादित ज़मीन को छोड़कर अयोध्या में किसी दूसरी जगह पर मस्जिद बनाने के लिए ज़मीन वक्फ बोर्ड को दी जा सकती है.
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मुस्लिम पक्षकारों का जवाब
मुस्लिम पक्षकारों ने सीलबंद कवर में लिखित जवाब दाखिल किया है. माना जा रहा है कि उन्होंने कोर्ट में रखी दलीलों के मुताबिक विवादित ढांचा विध्वंस (6 दिसंबर 1992 से ) पहले की स्थिति बहाल करने की मांग की है.
सुन्नी वक्फ बोर्ड का जवाब
इस मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड के अलावा 6 और मुस्लिम पार्टी भी है और बोर्ड के चेयरमैन ज़फर फ़ारूक़ी का रुख बाकी मुस्लिम पक्षकारों से अलग नजऱ आ रहा है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील शाहिद रिजवी ने न्यूज़ नेशन को फोन पर बताया कि 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ को लेकर हमने जवाब दाखिल किया गया है. हमने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को पूरा अधिकार है कि वो चाहे तो पक्षकारों की मुख्य मांग को 'मोल्ड' कर कर सकता है. अपने आप में ये उपयुक्त केस है, जहां कोर्ट इस अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है. हमने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट 'देशहित' में फैसला ले और उपयुक्त लगे तो जमीन पर मालिकाना हक़ पर हमारी मुख्य मांग से अलग भी हमें कोई दूसरी राहत दे सकता है.
शिया वक्फ बोर्ड का जवाब
शिया वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल लिखित जवाब में कहा गया है कि विवादित ज़मीन पर राममंदिर का निर्माण किया जाए. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जो ज़मीन मुस्लिम पक्षकारों दी है, उस पर सुन्नी का नहीं, बल्कि शिया वक्फ बोर्ड का अधिकार बनता है और वो ज़मीन वहां श्रीराम का मंदिर बनाने के लिए हिंदू पक्षकारों को दे दी जाए.
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मुस्लिम पक्षकारों के सीलबंद जवाब पर हिंदू पक्ष की आपत्ति
रामलला विराजमान और हिन्दू महासभा ने मुस्लिम पक्ष के "मोल्ड़िंग ऑफ रिलीफ़ पर" सीलबंद कवर में लिखित जवाब देने पर आपत्ति जताई. सुप्रीम कोर्ट के सेकेट्री जरनल को पत्र लिखकर ये शिकायत की गई है. शिकायत में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहीं नहीं कहा कि लिखित जवाब सील कवर में दाखिल किया जाए, ना ही कोर्ट से ऐसी कोई मांग की गई. सीलबंद कवर में जवाब देना ग़लत है और ये दूसरे पक्षकारों से दलीलों को छुपाना होगा. ऐसे में मुस्लिम पक्षकारों के जवाब को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.