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बिजली, सड़क, मोबाइल से वंचित जिस गांव में गरजती थीं बंदूकें, वहां छा रहा हॉकी का जादू

बिजली, सड़क, मोबाइल से वंचित जिस गांव में गरजती थीं बंदूकें, वहां छा रहा हॉकी का जादू

Updated on: 04 Jan 2022, 12:55 AM

रांची:

झारखंड के बेहद पिछड़े सिमडेगा जिले के जिन गांवों में आज तक सड़क और बिजली नहीं पहुंची है, वहां लोगों के रग-रग में हॉकी का जुनून किस तरह दौड़ता है, इसकी एक और मिसाल सामने आयी है। सिमडेगा जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर जंगलों-पहाड़ों से घिरे केरसई ब्लॉक के रुंघुडेरा गांव में कुछ समय पहले तक उग्रवादियों की बंदूकें गरजती थीं, लेकिन 2022 की पहली तारीख को वहां हॉकी के जरिए बदलाव की एक नई शुरूआत हुई है। सिमडेगा जिला हॉकी एसोसिएशन के पदाधिकारियों और स्थानीय ग्रामीणों ने दो दिनों तक श्रमदान कर जंगल-झाड़ को साफ कर हॉकी का एक ग्राउंड तैयार कर लिया। अब इसी महीने के अंत में या अगले महीने यहां एक टूर्नामेंट कराने की तैयारी चल रही है।

गांव के आसमान मांझी ने हॉकी ग्राउंड के लिए अपनी जमीन दी है। हॉकी सिमडेगा के प्रमुख मनोज कोनबेगी और आसमान मांझी ने गांव के लोगों के साथ बैठक की। तय हुआ कि गांव और आस-पास के बच्चों-युवाओं को हॉकी के लिए तैयार किया जाये। फिर क्या था, शनिवार और रविवार को ग्रामीण कुदाल, फावड़ा, कुल्हाड़ी और टोकरी लेकर इकट्ठा हुए और जंगल-झाड़ को साफ कर मैदान में तब्दील कर दिया।

रुंघुडेरा गांव में आज तक न तो बिजली पहुंची है और न ही सड़क। मोबाइल का नेटवर्क भी नहीं है। पक्की सड़क से उतरने के बाद लगभग 6-7 किलीमीटर पथरीले रास्ते पर चलने के बाद लोग गांव पहुंचते हैं। 50 आदिवासी परिवारों वाले इस गांव की जनसंख्या लगभग 250 है। पेयजल के लिए गांव के लोग कच्चे कुओं और तालाबों पर निर्भर हैं। जंगलों से घिरे इस गांव में हाथी भी जब-तब तबाही मचाते हैं। सिमडेगा में कुछ साल पहले तक जब उग्रवादी संगठनों की धमक गांव-गांव में थी, तब यहां उग्रवादियों के हथियारबंद दस्ते पनाह लेते थे। गांव में एक स्कूल है, लेकिन वहां पहुंचने के लिए भी बच्चों को जोखिम उठाना पड़ता है।

गांव और स्कूल के बीच एक गहरा पहाड़ी नाला है, जिसे पार कर बच्चे स्कूल पहुंचते हैं। शिक्षक भी कभी-कभार ही पहुंचते हैं। ऐसे में पिछले 2 जनवरी को गांव में जब हॉकी का मैदान बनकर तैयार हुआ तो यहां के बच्चों और युवाओं का उत्साह देखते बन रहा था। हॉकी सिमडेगा के प्रमुख मनोज कोनबेगी बताते हैं कि बच्चों-युवाओं को हॉकी के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा और एक से डेढ़ महीने के अंदर आसपास के गांवों के बच्चों के बीच हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन कराया जायेगा। इसमें जो बेहतर खिलाड़ी निकलेंगे, उन्हें आगे डिस्ट्रिक्ट लेवल पर खेलने का मौका दिलाने का प्रयास होगा।

बता दें कि सिमडेगा जिले ने देश को अब तक देश को पचास से भी ज्यादा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी दिये हैं। रुंघुडेरा गांव जिस केरसई प्रखंड के अंतर्गत आता है, उसी प्रखंड की बासेन पंचायत को हॉकी का गढ़ माना जाता है। ज्यादातर खिलाड़ी बासेन पंचायत स्थित आरसी उत्क्रमित मध्य विद्यालय करंगागुड़ी से निकले हैं और इसके पीछे इस स्कूल में 13 वर्षो तक सेवा देने वाले स्कूल के पूर्व प्राचार्य बेनेडिक्ट कुजूर का अहम भूमिका रही है।

बासेन पंचायत की अल्का डुंगडुंग बेल्जियम दौरे में भारतीय टीम में शामिल रही हैं। अल्फा केरकेट्टा बैंकाक, संगीता कुमारी, बैंकाक, आस्ट्रेलिया, तजाकिस्तान, ब्यूटी डुंगडुंग आस्ट्रेलिया, दीपिका सोरेंग हालैंड तथा अंजना डुंगडुंग केन्या दौरे के दौरान भारतीय हॉकी टीम की सदस्य रहीं और देश को पदक दिलाने में महवपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं रजनी सोरेंग, प्रमिला सोरेंग, रंजीता मिंज, इभा केरकेट्टा तथा रेशमा सोरेंग ने भी अलग-अलग उम्र वर्ग की भारतीय टीम के लिए खेलने का गौराव हासिल किया है।

सिमडेगा के खेतों-गांव में खेलकर देश-विदेश में सैकड़ों टूर्नामेंट्स में जौहर दिखाने वाले खिलाड़ियों की एक बड़ी फेहरिस्त है। सिमडेगा के जिस हॉकी खिलाड़ी को इंडियन नेशनल टीम में सबसे पहले जगह मिली थी, वो थे सेवईं खूंटीटोली निवासी नॉवेल टोप्पो। वह 1966-67 में देश के लिए खेले। इसके बाद 1972 में ओलंपिक खेलने वाली भारतीय पुरुष टीम में यहां के माइकल किंडो शामिल रहे।

इस ओलंपिक में भारतीय टीम ने ब्रांज मेडल जीता था। फिर 1980 के ओलंपिक में भारतीय टीम ने जब गोल्ड जीता तो उसमें सिमडेगा के सिल्वानुस डुंगडुंग का अहम रोल रहा। 2000 में कॉमनवेल्थ में सिमडेगा की बेटी सुमराई टेटे, मसीरा सुरीन और कांति बा भारतीय महिला टीम में शामिल रहीं। सुमराई टेटे 2006 में भारतीय महिला टीम की कप्तान भी रही थीं। सिमडेगा की असुंता लकड़ा भी 2011-12 में भारतीय महिला टीम की कप्तानी कर चुकी हैं। उनकी अगुवाई में देश ने कई टूर्नामेंट जीते। 2018 यूथ ओलम्पिक में भारतीय महिला टीम की कप्तानी सिमडेगा की बेटी सलीमा टेटे के हाथ में रहीं। वह टोक्यो ओलंपिक में खेलने वाली भारतीय टीम की भी अहम कड़ी रहीं।

इसी तरह जूनियर इंडियन महिला टीम में सिमडेगा की सुषमा, संगीता और ब्यूटी शामिल रही हैं। बिमल लकड़ा, वीरेंद्र लकड़ा, मसीह दास बा, जस्टिन केरकेट्टा, एडलिन केरकेट्टा, अल्मा गुड़िया, आश्रिता लकड़ा, जेम्स केरकेट्टा, पुष्पा टोपनो जैसे अनेक खिलाड़ी यहां से निकले, जिन्होंने नेशनल-इंटरनेशनल टूर्नामेंट में अपनी स्टिक का मैजिक दिखाया है।

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