वंदे मातरम् पर क्यों छिड़ा है विवाद, जानें राष्ट्रगीत का इतिहास
'वंदे मातरम्' को लेकर गहराती राजनीति ने मध्यप्रदेश सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, यही कारण है कि सरकार ने 'वंदे मातरम्' गान नए रूप में कराए जाने का ऐलान किया है.
नई दिल्ली:
मध्य प्रदेश में बीते 13 साल से चली आ रही 'वंदे मातरम्' गाने की परंपरा पर अघोषित रोक लगाए जाने के बाद गुरुवार को कमलनाथ सरकार को 'यूटर्न' लेना पड़ा. सरकार ने तय किया है कि अब यह कार्यक्रम हर माह के पहले कार्य दिवस को होगा. राज्य में बाबूलाल गौर के कार्यकाल में वर्ष 2005 से वल्लभ भवन के उद्यान में कर्मचारी हर माह की पहली तारीख को सामूहिक वंदे मातरम् गान करते आ रहे हैं, मगर सत्ता में बदलाव के बाद एक जनवरी को वंदे मातरम् गान नहीं हुआ. इस पर बीजेपी हमलावर हुई और बुधवार को सामूहिक 'वंदे मातरम्' गान किया. साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सात जनवरी को विधायकों के द्वारा सामूहिक 'वंदे मातरम्' गान किए जाने का ऐलान किया है.
'वंदे मातरम्' को लेकर गहराती राजनीति ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, यही कारण है कि सरकार ने 'वंदे मातरम्' गान नए रूप में कराए जाने का ऐलान किया है. आधिकारिक तौर पर गुरुवार को दी गई जानकारी के अनुसार, शासन द्वारा नए स्वरूप में भोपाल में 'वंदे मातरम्' गान की व्यवस्था की गई है.
नई व्यवस्था में हर माह के पहले कार्य दिवस को शौर्य स्मारक से सुबह 10.45 बजे शुरू होकर पुलिस बैंड राष्ट्रीय गीतों की धुन बजाते हुए वल्लभ भवन पहुंचेगा. आम जनता भी पुलिस बैंड के साथ चल सकेगी. पुलिस बैंड और आम जनता के वल्लभ भवन पहुंचने पर राष्ट्रीय गान 'जन-गण-मन' और राष्ट्रीय गीत 'वंदे-मातरम्' गाया जाएगा.
नए स्वरूप में वंदे मातरम् गाने का यह कार्यक्रम प्रत्येक माह के प्रथम कार्य दिवस को ही होगा. कार्यक्रम में राज्य मंत्रिपरिषद् के सदस्य शामिल होंगे.
नए स्वरूप में कार्यक्रम को आकर्षक बनाकर आम-जनता को भी इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. कहा गया है कि आम जनता की भागीदारी से 'वंदे मातरम्' गाने का यह कार्यक्रम भोपाल के आकर्षण के बिंदुओं में से एक बन सकेगा.
और पढ़ें- बीजेपी विधायक का विवादास्पद बयान, कहा- जिन्हें भारत में डर लगता है उन्हें बम से उड़ा देना चाहिए
वंदे मातरम् का इतिहास
वंदे मातरम् की रचना बंकिम चन्द्र चटर्जी ने 7 नवम्बर 1876 को बंगाल के कांतल पाडा गांव में किया था. इसे 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के निर्णय के बाद राष्ट्रीय गीत की मान्या मिली थी. भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस बात की घोषणा की थी. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस गीत की उल्लेखनीय भूमिका को देखते हुए यह फ़ैसला लिया गया था.
बता दें कि 'वंदेमातरम्' का स्थान राष्ट्रीय गान 'जन गण मन' के बराबर है. स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान यह गीत लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था. 1882 में बंकिमचंद्र के उपन्यास आनंद मठ में पहली बार इस गीत का प्रकाशन हुआ था. इस उपन्यास में यह गीत भवानंद नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है. इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनाई थी.
विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार और दार्शनिक रवीन्द्र नाथ टैगोर ने 1896 में पहली बार 'वंदे मातरम्' को बंगाली शैली में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में गाया. हालांकि मूलरूप से 'वंदे मातरम्' के शुरुआती दो पर संस्कृत में थे, जबकि शेष गीत बंगाली भाषा में. इस गीत का अंग्रेजी अनुवाद पहली बार अरविंद घोष ने किया था और उर्दू में आरिफ मोहम्मद ख़ान ने.
शुरुआत में यह गीत बंगाल में आज़ादी आंदोलन के दौरान होने वाली रैलियों में लोगों के अंदर जोश भरने के लिए गाया जाता था लेकिन आगे चलकर यह राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो गया. इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने इस पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया.
रवीन्द्र नाथ टैगोर के बाद चरनदास ने 1901 में कलकत्ता में एक अन्य अधिवेशन में यह गीत फिर से गाया. जिसके बाद 1905 में बनारस अधिवेशन में इस गीत को सरला देवी ने अपनी आवाज़ दी थी. इस अधिवेशन में गीत को राष्ट्रगीत का दर्ज़ा प्रदान किया गया. बंग-भंग आंदोलन के दौरान 'वंदे मातरम्' राष्ट्रीय नारा बन गया था.
साल 1923 में कांग्रेस अधिवेशेन के दौरान कुछ लोगों ने वंदे मातरम् का यह कहते हुए विरोध किया कि इस गीत से मूर्ती पूजा का बोध होता है. जिसके बाद 28 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेंद्र देव की समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए इस गीत के गायन की अनिवार्य बाध्यता को ख़त्म कर दिया. उन्होंने कहा कि इस गीत के शुरुआती दो पद ही प्रासंगिक हैं, इस समिति का मार्गदर्शन रवींद्र नाथ टैगोर ने किया था.
दरअसल समिति ने इस गीत के उन अंशों को छांट दिया, जिनमें बुतपरस्ती के भाव थे और गीत के संपादित अंश को राष्ट्रगीत के रूप में अपना लिया गया.
आज़ादी से एक दिन पहले यानी कि 14 अगस्त 1947 की रात संविधान सभा की पहली बैठक का आरंभ 'वंदे मातरम्' के साथ और समापन 'जन गण मन' के साथ हुआ. अगले दिन यानी कि 15 अगस्त, 1947 को सुबह 6:30 बजे पंडित ओंकारनाथ ठाकुर ने आकाशवाणी में 'वंदे मातरम्' गीत गाया जिसका सजीव प्रसारण भी किया गया था.
और पढ़ें- अजय माकन ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से दिया इस्तीफा, जल्द ही मिल सकती है नई जिम्मेदारी
1950 में संवैधानिक रूप से राष्ट्रीय गीत की मान्यता मिलने के बाद 'वंदे मातरम्' को दूरदर्शन और आकाशवाणी पर जिंगल्स के रूप में चलाया जाने लगा. 2002 मे बीबीसी की एक सर्वे में इसे सबसे लोकप्रिय गीत बताया गया था.
IANS इनपुट के साथ...
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Maa Laxmi Shubh Sanket: अगर आपको मिलते हैं ये 6 संकेत तो समझें मां लक्ष्मी का होने वाला है आगमन
-
Premanand Ji Maharaj : प्रेमानंद जी महाराज के इन विचारों से जीवन में आएगा बदलाव, मिलेगी कामयाबी
-
Aaj Ka Panchang 29 April 2024: क्या है 29 अप्रैल 2024 का पंचांग, जानें शुभ-अशुभ मुहूर्त और राहु काल का समय
-
Arthik Weekly Rashifal: इस हफ्ते इन राशियों पर मां लक्ष्मी रहेंगी मेहरबान, खूब कमाएंगे पैसा