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राइट टू प्राइवेसी: क्या है पूरा मामला और कैसे शुरू हुआ विवाद, जानिए

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के आधार से कई सेवाओं को जोड़ने से लेकर कई मुद्दों पर बहस हुई और अब कोर्ट का फैसला कई विवादों पर विराम लगा सकता है।

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vineet kumar
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राइट टू प्राइवेसी: क्या है पूरा मामला और कैसे शुरू हुआ विवाद, जानिए

राइट टू प्राइवेसी पर बहस (फाइल फोटो)

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सुप्रीम कोर्ट राइट टू प्राइवेसी यानि निजता के अधिकार को लेकर अहम फैसला सुना सकता है। हाल ही में आठ दिनों की सुनवाई के बाद 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इस सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के आधार से कई सेवाओं को जोड़ने से लेकर कई मुद्दों पर बहस हुई और अब कोर्ट का फैसला कई विवादों पर विराम लगा सकता है। आईए, समझते हैं, क्या है ये पूरा मामला और और कैसे यह चर्चा में आया।

आधार से गर्माया मुद्दा

आधार कार्ड को कई योजनाओं, स्कीम और सेवाओं के लिए जरूरी बनाए जाने के बाद राइट टू प्राइवेसी का मामला तेजी से चर्चा में आया।

आधार कार्ड बनवाने के दौरान बायोमेट्रिक्स सहित कई व्यक्तिगत जानकारियां ली जाती हैं। साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं फाइल की गईं जिसमें आाधार को प्राइवेसी का उल्लंघन बताया गया।

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साथ ही याचिका में कहा गया कि आधार के लिए पंजीकरण कराना मतलब अपनी व्यक्तिगत डाटा को लीक करना है।

इस पर सरकार ने तर्क दिया कि कुछ 'उच्च लोगों' के 'राइट टू प्राइवेसी' को जनसाधारण के हित से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। एक विकासशील देश के लिए आधार जरूरी है।

सरकार ने साथ ही कहा कि इस आधार योजना से लाखों गरीबों को मदद पहुंच रही है और भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग से भी लड़ने में भी यह मददगार है।

प्राइवेसी किसी का मौलिक हक है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय की गंभीरता को देखते हुए 9 जजों की बेंच को सौंप दिया।

सरकार तर्क दे रही है कि राइट टू प्राइवेसी की बात स्पष्ट रूप से संविधान में नहीं कही गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि संविधान निर्माताओं ने इसे 'मौलिक अधिकार' के तहत संविधान में जोड़ने से इंकार कर दिया था।

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हालांकि, याचिकाकर्ताओं का यही कहना है एक समृद्ध समाज में निजता को मौलिक आजादी के तौर पर देखा जाना जरूरी है। यहां राज्य या प्राइवेट प्लेयर्स के किसी के व्यक्तिगत डाटा में हस्तक्षेप को सही नहीं माना जा सकता।

निजता के अधिकार पर बहस क्यों जरूरी

सुप्रीम कोर्ट डाटा कलेक्शन पर चिंता जता चुका है कि इससे डाटा के प्राइवेट प्लेयर्स के हाथ में जाने का खतरा रहता है। 9 जजों की बेंच में से एक जस्टिस चंद्रचूड ने कहा था- 'मैं अपनी व्यक्तिगत जानकारियां किन्ही 2000 सर्विस प्रदाताओं के साथ साझा नहीं करना चाहूंगा जो मुझे व्हाट्सएप मैसेज भेजकर किसी कॉस्मेटिक या एयर कंडिशन लेने की बात करें। यह चिंता का विषय है। प्राइवेट कंपनियों के लिए किसी की व्यक्तिगत जानकारी कमर्शियल रूप से अहम हो जाती है।'

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HIGHLIGHTS

  • आधार कार्ड के कई योजनाओं और सेवाओं में जरूरी बनाए जाने के बाद उठा मुद्दा
  • सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की संवैधानिक बेंच की सुनवाई, संविधान में राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं

Source : News Nation Bureau

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