कोरोना वायरस से बचने के लिए दुनिया की आधी आबादी बचाव के लिए लॉकडाउन में जी रही है. अनुमान है कि कोरोना वायरस खत्म होने के बाद दुनिया तेजी से आर्थिक मंदी की ओर बढ़ेगी. ऐसे में एक नई बहस चल पड़ी है कि अगर लोग साबित कर सकें कि वायरस उनका कुछ नहीं कर सकता तो क्या ऐसे लोगों को कोई सर्टिफिकेट या इम्युनिटी पासपोर्ट जारी कर देना चाहिए ताकि वह निकल कर काम कर सकें.
क्या है इम्युनिटी पासपोर्ट
इम्युनिटी पासपोर्ट या सर्टिफिकेट के जरिए ये पता चल सकेगा कि फलां शख्स को कोरोना वायरस से कोई खतरा नहीं है. क्योंकि उन्हें यह पहले हो चुका है. इस पासपोर्ट के मालिक को बाहर घूमने या काम करने की अनुमति मिल सकती है. जर्मनी में इस पर रिसर्च हो रही है कि क्या Covid-19 भी दूसरे वायरस की तरह काम करता है.
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यानी एक बार शरीर उससे इफेक्ट हो जाए तो उसकी पर्याप्त एंटीबॉडीज बन जाती हैं. वैसे सार्स जो कि कोरोना वायरस का एक प्रकार है उसमें एक अलग ही प्रभाव देखने को मिला है. इस वायरस की एंटीबॉडी बनी तो लेकिन एक समय बाद वह निष्प्रभावी हो गईं.
इम्युनिटी सर्टिफिकेट पर कई देश कर रहे काम
कई देश इस समय इम्युनिटी सर्टिफिकेट पर काम कर रहे हैं. जैसे हाल ही में ब्रिटेन के हेल्थ सेक्रेटरी Matt Hancock ने कहा कि देश के वे लोग जो एक बार कोरोना संक्रमित हो चुके हैं. अब वे वायरस के लिए काफी इम्युन हो चुके हैं. यानी बीमारी का उन पर पहले जैसा असर नहीं होगा.
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ऐसे में उन्हें इम्युनिटी सर्टिफिकेट जारी हो तो वो आराम से काम कर सकें. ये हेल्थ सेक्रेटरी हाल ही में कोरोना संक्रमण से ठीक होकर वापस आए हैं.
हो सकते हैं कई खतरे
हालांकि इम्युनिटी सर्टिफिकेट की ये स्कीम कितनी कारगर होगी इसके बारे में पता नहीं है. क्योंकि कोविड-19 एकदम नया वायरस है. इसलिए फिलहाल वैज्ञानिक भी महीं जानते कि एक बार के बाद ये वायरस दोबारा होने का कितना खतरा है. या फिर इसका संक्रमण कितना गंभीर हो सकता है. ऐसे में एंटीबॉडी के आधार पर लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग की छूट देना खतरनाक हो सकता है.
Source : News Nation Bureau