जानें भीमा कोरे गांव में क्यों हुई थी हिंसा, क्या है इसका इतिहास...

कोरेगांव-भीमा, दलित इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वहां करीब 200 साल पहले एक बड़ी लड़ाई हुई थी, जिसमें पेशवा शासकों को एक जनवरी 1818 को ब्रिटिश सेना ने हराया था।

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Deepak Kumar
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जानें भीमा कोरे गांव में क्यों हुई थी हिंसा, क्या है इसका इतिहास...

जानें भीमा कोरेगांव का इतिहास (पीटीआई)

महाराष्ट्र पुलिस ने मंगलवार को कई राज्यों में वामपंथी कार्यकर्ताओं के घरों में छापा मारा और माओवादियों से संपर्क रखने के संदेह में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। हैदराबाद में तेलुगू कवि वरवर राव, मुंबई में कार्यकर्ता वेरनन गोन्जाल्विस और अरूण फरेरा, फरीदाबाद में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और दिल्ली में सिविल लिबर्टीज के कार्यकर्ता गौतम नवलखा के आवासों में तकरीबन एक ही समय पर तलाशी ली गयी। तलाशी के बाद राव, भारद्वाज, फरेरा समेत पांचो आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।

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अपुष्ट रिपोर्ट के मुताबिक जिन अन्य लोगों के आवास में छापे मारे गए, उनमें सुसान अब्राहम, क्रांति टेकुला, रांची में फादर स्टान स्वामी और गोवा में आनंद तेलतुंबदे शामिल हैं।

गौरतलब है कि कोरेगांव-भीमा, दलित इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वहां करीब 200 साल पहले एक बड़ी लड़ाई हुई थी, जिसमें पेशवा शासकों को एक जनवरी 1818 को ब्रिटिश सेना ने हराया था। अंग्रेजों की सेना में काफी संख्या में दलित सैनिक भी शामिल थे। इस लड़ाई की वर्षगांठ मनाने के लिए हर साल पुणे में हजारों की संख्या में दलित समुदाय के लोग एकत्र होते हैं और कोरेगांव भीमा से एक युद्ध स्मारक तक मार्च करते हैं।

पिछले साल 31 दिसंबर को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव-भीमा गांव में दलितों और उच्च जाति के पेशवाओं के बीच हिंसा हुई थी। इस संघर्ष में एक युवक की मौत हो गई थी और चार लोग घायल हुए थे। जिसके बाद हिंसा की आंच महाराष्ट्र के 18 जिलों तक फैल गई। 

बता दें कि दलित समुदाय के पांच लाख से ज्यादा लोग शौर्य दिवस मनाने के लिए उस ख़ास जगह पर एकत्र हुए थे। इसी दौरान कुछ लोगों ने भीमा-कोरेगांव विजय स्तंभ की तरफ जाने वाले लोगों की गाड़ियों पर हमला कर दिया। जिसके बाद हिंसा भड़क गई और एक व्यक्ति की मौत हो गई।

जिसके बाद दलित संगठनों ने इस हिंसा के विरोध में बंद बुलाया जिसमें मुंबई, नासिक, ठाणे, पुणे, अहमदनगर, औरंगाबाद और सोलापुर सहित राज्य के एक दर्जन से अधिक शहरों में दलित संगठनों ने जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की थी।

पुलिस के मुताबिक इस लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ मनाए जाने से एक दिन पहले 31 दिसंबर को एल्गार परिषद कार्यक्रम में दिए गए भाषण ने हिंसा भड़काई। 

वहीं, आज का घटनाक्रम जून में की गई छापेमारी के ही समान है जब हिंसा की इस घटना के सिलसिले में पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था।

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एल्गार परिषद के सिलसिले में जून में गिरफ्तार किए गए पांच लोगों में एक के परिसर में ली गई तलाशी के दौरान पुणे पुलिस ने एक पत्र बरामद होने का दावा किया था, जिसमें राव के नाम का जिक्र था। विश्रामबाग थाने में दर्ज एक प्राथमिकी के मुताबिक इन पांच लोगों पर माओवादियें से करीबी संबंध रखने का आरोप है।

राव को हैदराबाद में गांधी नगर स्थित उनके आवास से पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया। पुलिस ने इससे पहले उनकी दो बेटियों के आवासों की भी तलाशी ली।

यहां एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि राव की दो बेटियों और एक पत्रकार सहित अन्य के आवासों में पुलिस टीम ने तलाशी ली।

पुलिस उपायुक्त (मध्य क्षेत्र) विश्व प्रसाद ने बताया, 'पुणे पुलिस ने हमारी मदद मांगी। हमने तलाशी करने और गिरफ्तारी में मदद के लिए स्थानीय बल मुहैया किया। उन्हें (राव को) ...एक अदालत में पेश किया जाएगा और ट्रांजिट वारंट पर पुणे ले जाया जाएगा।'

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वहीं सीपीएम ने आरोप लगाते हुए कहा कि हिंसा पीड़ितों के मुकदमे लड़ रहे वकीलों और इनकी मदद कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरूद्ध गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून की विभिन्न धाराओं के तहत फर्जी मामले दर्ज किये जा रहे हैं।

Source : News Nation Bureau

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