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शरद पवार का यह डर रोके है अजित पवार पर कार्रवाई करने से

शरद पवार के साथ साये की तरह चलने वाले अजित पवार ऐसे कई राज जानते हैं, जो राहें अलग-अलग होने से सीनियर पवार के लिए बड़ी 'मुसीबतें' खड़ी कर सकते हैं.

Updated on: 25 Nov 2019, 05:00 PM

highlights

  • शरद पवार के कई राज दफन है अजित पवार के सीने में.
  • कुनबे के साथ-साथ एनसीपी पार्टी में भी हो जाएंगे दो फाड़.
  • महाराष्ट्र की मराठा राजनीति में बने रहने के लिए अजित जरूरी.

Mumbai:

यह सवाल राजनीतिक हलकों में अब खुलेआम पूछा जा रहा है कि आखिर एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद भतीजे अजित पवार के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं? इसके कई जवाब हैं, जो ऊपर से देखने में ही नजर आते हैं. इसमें भी सबसे पहला जवाब है पवार कुनबे में फूट और महत्वाकांक्षा की लड़ाई. हालांकि असल जवाब यह है कि सीनियर पवार एक ही पत्थर से कई पक्षियों का शिकार करने की आसान राह खोज रहे हैं. उनका सबसे बड़ा डर अजित पवार का 'भतीजा' होना ही है. शरद पवार के साथ साये की तरह चलने वाले अजित पवार ऐसे कई राज जानते हैं, जो राहें अलग-अलग होने से सीनियर पवार के लिए बड़ी 'मुसीबतें' खड़ी कर सकते हैं. यही वजह है कि सोमवार को भी अजित पवार को 'मनाने' की कोशिशें जारी रहीं.

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पार्टी से निष्कासन का फैसला नहीं कर पा रहे शरद पवार
ऊपरी तौर पर माना जा रहा है कि शनिवार को एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना के नीचे से जमीन खींच लेने वाले घटनाक्रम में बीजेपी के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को समर्थन देकर डिप्टी सीएम की शपथ लेकर अजित पवार ने शरद पवार को खुलेआम ब्लैकमेल कर दिया है. भले ही उसके बाद डैमेज कंट्रोल में जुटे सीनियर पवार ने बीजेपी को समर्थन देना जूनियर पवार का निजी निर्णय करार दिया, लेकिन उसी क्षण से अजित पवार को मनाने की कोशिशें चालू हो गई थीं. शाम तक एनसीपी विधायक दल से उन्हें हटाकर जयंत पाटिल की नियुक्ति हो जाने के बावजूद अजित पवार को न ता पार्टी से निकाला गया और ना ही किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई की कोई संस्तुति की गई. शरद पवार अजित को लेकर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं कर पा रहे हैं. इसके पीछे हानि-लाभ की वह गणित है, जो सीधे तौर पर खुद शरद पवार को, पवार कुनबे को और महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित करती है.

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कुनबे के बाद एनसीपी में हो जाएंगे दो फाड़
2004 के महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम के बाद से अजित पवार की महत्वाकांक्षाएं बढ़नी शुरू हुईं और इसके बाद के 2009 लोकसभा चुनाव से पवार के कुनबे से सुप्रिया सुले का उदय हुआ. 2004 में एनसीपी को कांग्रेस से दो सीटें अधिक मिलने के बावजूद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर कांग्रेस के विलासराव देशमुख की ताजपोशी हुई थी. 71 एमएलए होने के बावजूद अजित पवार का तब सूबे के सीएम बनने का सपना टूटा था. उस वक्त शरद पवार की 'राजनीतिक ताकत' इतनी नहीं थी वह केंद्र में कांग्रेस नीत सरकार पर दबाव डाल अपनी बात मनवा लेते. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले का प्रवेश हुआ. धीरे-धीरे सुप्रिया सुले के फेर में अजित पवार हाशिये पर जाने लगे. यहां तक कि शरद पवार ने अपने परिवार के रोहित पवार के रूप में तीसरी पीढ़ी के सिर पर अपना हाथ रख दिया, बजाय अजित पवार के बेटे पार्थ के. ऐसे में शरद पवार के साये से निकलना अजित के लिए जरूरी हो गया और उन्होंने यह कदम उठा लिया. अब अगर सीनियर पवार अजित को पार्टी से निष्कासित करते हैं, तो कुनबे के साथ-साथ पार्टी में भी दो फाड़ हो जाएंगे. इसका असर मराठा राजनीति में पवार के कुल प्रभाव पर पड़ेगा. यह डर भी शरद पवार को रोके हुए है.

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बहुत कुछ जानते हैं शरद पवार के बारे में अजित
यह सबसे बड़ा डर है. आईपीएल से जुड़े भ्रष्ट्चार के मामले में सुप्रिया सुले के पति सदानंद सुले का नाम आया था. इसके साथ ही प्रवर्तन निदेशालय की जांच भ्रष्टाचार के अन्य मामले में अजित पवार तक पहुंच गई है. इसकी जद में शरद पवार भी आए. इसके बावजूद शरद पवार का अजित के समर्थन में नहीं उतरना जूनियर पवार को कहीं गहरे आहत कर गया. उन्होंने बेहद भावुक अंदाज में इस दुख को सार्वजनिक भी किया था. ऐसे में तलवार लटकती देख अजित के पास बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस को समर्थन देना कहीं ज्यादा श्रेयस्कर लगा. गौरतलब है कि सोमवार को भी अजित पवार को मनाने की कोशिशें जारी थीं. एनसीपी विधायक दल के नेता चुने गए जयंत पाटिल तक खुद अजित को मनाने गए थे. इसके पहले शिवसेना के कई बड़े नेता अजित को मनाने के प्रयास जारी कर चुके हैं. सूत्र बताते हैं कि अजित इस बार अडिग हैं. इसके साथ ही उन्होंने चाचा को संदेश दे दिया है कि बीजेपी को समर्थन देना ही बेहतर है. शरद पवार के राजनीतिक जीवन में साये की तरह रहे अजित के सीने में ऐसे बहुत से राज दफन हैं, जो बाहर आ गए तो सीनियर पवार के लिए खासी मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. यह शरद पवार का सबसे बड़ा डर है.

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परिवार की एकता भी बड़ी वजह
राजनीतिक पंडितों के मुताबिक एनसीपी चीफ शरद पवार के इस दांव के पीछे यह भी वजह है. शरद पवार चाहते हैं कि अजित पवार परिवार में वापस आ जाएं और परिवार की एकता बनी रहे. उन्‍हें लग रहा है कि अजित पवार को वह अगर वापस लाने में सफल हो जाते हैं तो बीजेपी का दांव फेल हो जाएगा. दूसरी वजह यह है कि अगर एनसीपी अजित पवार को निकालती है तो वह एमएलए बने रहेंगे और पार्टी को एक विधायक का नुकसान उठाना पड़ेगा. इसलिए शरद पवार इंतजार कर रहे हैं कि अजित पवार पार्टी छोड़ें और उन्‍हें बर्खास्‍त किया जा सके. इससे अजित पवार की विधानसभा सदस्‍यता खत्‍म हो जाएगी. अजित पवार बारामती विधानसभा सीट से विधायक हैं जो शरद पवार का गढ़ है. शरद पवार अच्छे से जानते हैं सुप्रिया सुले पवार कुनबे का राजनीतिक कद अकेले दम संभालने में सक्षम नहीं हैं. रोहित पवार को अभी वक्त लगेगा. ऐसे में अजित का पवार कुनबे के साथ रहना ही महाराष्ट्र के सियासी भविष्य के लिहाज से अच्छा है. इन्हीं तमाम कारणों या कहें कि डर से सीनियर पवार अजित पवार को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं.