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कांग्रेस से बगावत करने के बाद सचिन पायलट ने क्या-क्या खोया?, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

दिसंबर 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलने के बाद से ही सचिन पायलट को उम्मीद थी कि वह मुख्यमंत्री बनेंगे. सीएम पद की ये चाह आज उन पर इतनी भारी पड़ गई है कि न वो सरकार के डिप्टी सीएम रहे और न ही राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे.

Updated on: 14 Jul 2020, 06:34 PM

नई दिल्ली:

दिसंबर 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलने के बाद से ही सचिन पायलट को उम्मीद थी कि वह मुख्यमंत्री बनेंगे. सीएम पद की ये चाह आज उन पर इतनी भारी पड़ गई है कि न वो सरकार के डिप्टी सीएम रहे और न ही राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे. यानी उनके पास दो बड़े पद थे जिनमें, से अब एक भी उनके पास नहीं है.

ऐसा नही है कि सिर्फ इन दो पदों पर ही पायलट को नुकसान सहना पड़ा. पायलट के प्रति गांधी परिवार की जो नजदीकियां थीं, उसे भी चोट पहुंची है. कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा तीनों ही पायलट के करीबी रहे हैं. सचिन पायलट पर गांधी परिवार हममेशा से सॉफ्ट कॉर्नर भी रहा. मंगलवार को जब कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने का ऐलान किया तो उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया.

सुरजेवाला ने बताया कि सचिन पायलट को 26 साल की उम्र में सांसद, 32 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री, 34 साल की उम्र में प्रदेश अध्यक्ष और 40 साल की उम्र में उपमुख्यमंत्री बनाकर बहुत कम उम्र में राजनीतिक ताकत दी गई. सुरजेवाला ने कहा कि सोनिया गांधी और राहुल गांदी के विशेष आशीर्वाद के कारम उन पर इतनी कृपा संभव हुई. ऐसे में पायलट का कांग्रेस सरकार को गिराने की साजिश में शामिल होने बेहद दुख की बात है.

इसके अलावा सचिन पायलट ने उन विधायकों और मंत्रियों का समर्थन भी खो दिया है, जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते थे. पायलट खेमे के दानिश अबरार और रामनारायण मीणा समेत छह विभाग गहलोत की बैठक में शामिल हुए हैं. इसके अतिरिक्त 22 विधायक सचिन पायलट के साथ हैं, उनके बारे में भी ये कहा जा रहा है कि अगर सचिन पायलट बीजेपी में जाते हैं तो 10 ऐसे विधायक हैं जो इसके लिए तैयार नहीं होंगे. ये विधायक सचिन पायलट के प्रति वफादार जरूर हैं, लेकिन बीजेपी में वो उनके साथ जाने को राजी नहीं है. हालांकि पायलट खुद भी कह चुके हैं कि वह बीजेपी में नहीं जाएंगे.

दूसरी तरफ बीजेपी भी सचिन पायलट के विधायकों की संख्या को लेकर अभी विश्वास में नहीं है. पार्टी का कहना है कि जब तक विधायकों की संख्या पर स्थिति स्पष्ट नहीं होती है तब तक फ्लोर टेस्ट की मांग भी नहीं करेंगे.

ऐसे में जो समीकरण फिलहाल बनते नजर नहीं आ रहे हैं. उसमें बीजेपी से पायलट को संजीवनी बूटी मिल पाए, ऐसे समीकरणर भी देखने को नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में यही माना जा सकता है कि सचिन पायलट ने सिर्फ खोया है और पाया कुछ नहीं है. लेकिन एक कहावत है कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. क्या पता ये वही खोना हो.