वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने अध्ययनों में पाया है कि गंगा नदी के निचले क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता काफी चित्ांाजनक है। इसी टीम ने इस क्षेत्र के लिए जल गुणवत्ता सूचकांक की सीमा निर्धारित की थी।
इस टीम ने इन क्षेत्रों में जल की गुणवत्ता में निरंतर कमी दर्ज की है। लगातार बढ़ती मानवीय गतिविधियों और जनसंख्या दबाव के कारण गंगा नदी में नगर निगमों और औद्योगिक सीवरेज को अशोधित ही डाला जा रहा है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस शोध का हवाला देते हुए कहाकोलकाता महानगर के समीप गंगा नदी के निचले क्षेत्रों में खासतौर से मानवीय गतिविधियों के कारण गंगा की स्थिति में काफी गिरावट दर्ज की गई है। गंगा नदी के दोनों किनारों पर जनसंख्या का दबाब अधिक पाया गया है और इसके चलते गंगा नदी के निचले क्षेत्रों में नगर निगमों तथा औद्योगिक कचरे को अशोधित ही प्रवाहित किया जा रहा है। इसके कारण सुंदरबन के मेंग्रोव वनों के पारिस्थतिकी तंत्र तथा गंगा नदी में पाई जाने वाली डाल्फिन मछली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
इस टीम की अगुवाई आईआईएसईआर,कोलकाता स्थित इंटीग्रेटिेड टेक्सानामी एंड माइक्रोबियल इकॉलाजी एंड रिसर्च ग्रुप (आईटीएमईआरजी) प्रोफेसर पुण्यास्कोले भादुडी ने की है और उनके दल ने गंगा नदी के 50 किलोमीटर के दायरे में नौ विभिन्न स्थानों पर पानी की गुणवत्ता का अध्ययन किया तथा दो वर्ष की अवधि तक यह शोध किया गया था। इसमें पानी में नाईट्रोजन की घुलित मात्रा और जैव परआक्साइड जैसे मानकों का आकलन किया गया तथा वहां की जल की गुणवत्ता का अध्ययन किया गया।
यह शोध एनवार्नमेंटल रिसर्च कम्युनिके शंस में हाल ही में प्रकाशित हुआ है और इसे विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग ने समर्थन दिया था।
इस टीम ने अपने अध्ययन में पाया कि इस क्षेत्र में गंगा नदी के विभिन्न स्थानों पर जल गुणवत्ता सूचकांक 14 से 52 के बीच में पाया गया , भले ही नमूने किसी भी सीजन में लिए गए हों और इसमें पानी की गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की गई थी। विभिन्न प्रदूषकों के अलावा नाइट्रोजन की किस्में भी जैव विविधता को प्रभावित करने वाले कारकों में शामिल की गई हैं।
बयान में कहा गया कि इस अध्ययन के परिणामों को गंगा नदी की पारिस्थतिकी में सुधार के लिए लंबी अवधि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें सेंसरों तथा मशीनों का इस्तेमाल कर गंगा नदी के निचले क्षेत्रों में निगरानी रखी जा सकती है।
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Source : IANS