भारत अपने इतिहास के सबसे खराब जल संकट से जूझ रहा है. राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना (एनआरडीडब्ल्यूपी) की नई रिपोर्ट में खामियों पर प्रकाश डाला गया है. रिपोर्ट में अधूरे और छोड़े गए कामों के कई उदाहरण दिए गए हैं, जोकि 'अप्रभावी' परियोजना का प्रस्तुतीकरण कर रहे हैं. वित्त वर्ष 2016 से ही एनआरडीडब्ल्यूपी के लिए आवंटन कम हो गया, क्योंकि सरकार का ध्यान स्वच्छता कवरेज बढ़ाने पर था. इसके परिणामस्वरूप अधूरे छोड़ दिए गए कार्यो के कई उदाहरण हैं.
जेएम फाइनेंशियल की रिपोर्ट में कहा गया है, 'ऑपरेशन और मैनेजमेंट प्लान की कमी के कारण कई राज्यों के गांवों में पेजयल योजनाएं प्रभावहीन हो गईं.'
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रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्यक्रम के तहत 2017 तक गांवों के 50 फीसदी घरों में पीने का पानी उपलब्ध कराना था जिसमें 35 फीसदी घरों में कनेक्शन के जरिए पानी पहुंचाया जाना था. मगर 2017 तक महज 17 फीसदी ग्रामीण परिवारों को ही पीने योग्य पानी या पाइपलाइन से पानी का कनेक्शन मिल सका.
जेएम फाइनेंशियल रिपोर्ट में कहा गया है कि नियंत्रक एवं महा-लेखापरीक्षक (सीएजी) की 2012-17 की रिपोर्ट में कई चुनौतियों को प्रदर्शित किया है. रिपोर्ट में अप्रभावी निगरानी, जल स्रोतों के नियोजन की कमी और सामुदायिक भागीदारी की कमी सहित कार्यक्रम के निष्पादन में कई चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है.
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नीति आयोग की एक रिपोर्ट ने पहले ही इस संकट को उजागर किया था, जिसमें 2030 तक देश में पानी की मांग दोगुनी होने का अनुमान है.