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जरूरत थी या मजबूरी....जानिए केंद्र सरकार ने क्यों बदली वैक्सीन पॉलिसी?

कोरोना महामारी को रोकने के लिए वैक्सीन ही एक हथियार है और इस हथियार को लेकर देश में कुछ दिनों से केंद्र और राज्य सरकारों में जंग छिड़ी है, जिसका अंत सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दिया.

Updated on: 08 Jun 2021, 07:26 AM

highlights

  • वैक्सीन नीति में बदलाव का ऐलान
  • वैक्सीन की खरीद सिर्फ केंद्र ही करेगा
  • राज्यों का काम केवल वैक्सीनेशन का

नई दिल्ली:

कोरोना महामारी को रोकने के लिए वैक्सीन ही एक हथियार है और इस हथियार को लेकर देश में कुछ दिनों से केंद्र और राज्य सरकारों में जंग छिड़ी है, जिसका अंत सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दिया. कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार की शाम राष्ट्र को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने वो बड़ा ऐलान कर दिया, जो समय के लिहाज से जरूरी भी था और मजबूरी भी. क्योंकि इससे जहां एक तरफ लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीन मिल सकेगी तो दूसरी तरफ राजनीतिक टकराव भी खत्म होगा. देश के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने फिर से भारत में लागू वैक्सीन नीति में बदलाव का ऐलान किया है. पीएम मोदी ने जो ऐलान किया, उसके तहत राज्यों के पास 25 प्रतिशत वैक्सीन की जिम्मेदारी दी थी, उसे केंद्र सरकार अपने पास ले रही है.

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मतलब अब फिर से वही होगा कि वैक्सीन की खरीद सिर्फ केंद्र सरकार ही करेगी, जबकि राज्यों का काम केवल वैक्सीनेशन का रहेगा. यानी राज्य सरकारों को अब खुद वैक्सीन की खरीद नहीं करनी पड़ेगी. कोरोना संकट के बीच राज्यों के लिए वैक्सीन की खरीद करना मुश्किल हो रहा था. इस पर जमकर राजनीति भी देखने को मिली थी. केंद्र और राज्य सरकारें आमने सामने आ गई थीं. सोमवार को पीएम ने ऐलान किया कि राज्यों के पास वैक्सीनेशन से जुड़ा 25 प्रतिशत काम था, जिसकी जिम्मेदारी अब केंद्र सरकार उठाएगी. उन्होंने कहा कि ये व्यवस्था अगले दो हफ्ते में लागू हो जाएगी.

कैसे बदल गए राज्यों के सुर

मगर सोमवार को मिली राज्यों को राहत से पहले उनकी भी वैक्सीनेशन नीति को समझना जरूरी है कि कैसे कुछ ही दिनों में उनके सुर बदले गए और पता चल गया कि वैक्सीन की खरीद कितना टेढ़ा काम था. मालूम हो कि देश में पहले से ही केंद्र सरकार की देखरेख में वैक्सीनेशन अभियान चल रहा था. युद्ध स्तर पर लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही थी. मगर वैक्सीन पर श्रेय के साथ वोट केंद्र सरकार को न मिल जाए, इसलिए राज्यों ने भी खुद के लिए जिम्मेदारी मांगी थी. राज्यों ने कहा था कि अपने अपने राज्यों में वैक्सीन का काम वह खुद करेंगे. हां उनकी इस बात को माना भी गया और एक मई से राज्यों को 25 प्रतिशत काम दिया गया.

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जिसके बाद राज्यों ने काम शुरू किया और इसे पूरा करने की कोशिश की. मगर जल्द ही राज्यों को भी समझ आने लग गया कि इस बड़े काम में बहुत कठिनाई है, जिससे पार पाना उनके बस की बात नहीं. इसी बीच देश में वैक्सीन की कमी होने लगी तो ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ा जाने लगा. दो हफ्ते बाद कुछ राज्यों ने कहना शुरू कर दिया कि पहले वाली व्यवस्था अच्छी थी यानी केंद्र ही वैक्सीन की खरीद करे. कई और राज्य भी उस काम से छुटकारा पाने के लिए इस मांग का समर्थन करने लग गए. राज्य सरकारों को पता चल गया कि वैक्सीन की खुद से खरीद आसान नहीं हैं. हालांकि केंद्र सरकार भी समझ गई कि कोई भी टकराव वैक्सीनेशन मिशन में ब्रेकर बन जाएगा. इसलिए सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने इस टकराव का अंत कर दिया.

प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर कंट्रोल

वैक्सीनेशन में रुकावट के बीच यह फैसला इसलिए भी अहम है कि इससे अब प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन की मनमानी कीमत पर लगाम लगेगी. पीएम मोदी ने साफ किया कि प्राइवेट अस्पताल वैक्सीन की कीमत के ऊपर केवल 150 रुपये ही सर्विस चार्ज ले सकेंगे. फिलहाल वैक्सीन निर्माताओं से केंद्र को कोविशील्ड की एक डोज 150 रुपये में मिल रही है, जबकि राज्यों को 300 रुपये और निजी अस्पतालों को 600 रुपये में मिल रही है.

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इसके अलावा कोवैक्सीन की केंद्र के लिए 150 रुपये प्रति डोज तो राज्यों के लिए 400 रुपये और निजी अस्पतालों के लिए 1200 रुपये है. मगर निजी अस्पतालों में एक टीके की अधिकतम कीमत तय नहीं है. ऐसे में कहीं कोविशील्ड 800 रुपये में तो कहीं उसी कोविशील्ड का एक टीका 1800 रुपये में दिया जाता है. लेकिन अब वैक्सीन के बेस प्राइस से 150 रुपये ज्यादा ही लिए जा सकेंगे. कोवैक्सीन अधिकतम 1350 रुपये में तो कोविशील्ड अधिकतम 750 रुपये में ही लगाई जा सकती है.