एम्स के बाहर लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं गंभीर चोटों से जूझ रहे पिता-पुत्री

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली (एम्स) के बाहर लगे तंबुओं में रोज जब एनजीओ के कर्मचारी खाना बांटने आते हैं तो 16 साल की स्नेहा मन ही मन यही सोच रही होती है कि खाने में आज खिचड़ी ही हो.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली (एम्स) के बाहर लगे तंबुओं में रोज जब एनजीओ के कर्मचारी खाना बांटने आते हैं तो 16 साल की स्नेहा मन ही मन यही सोच रही होती है कि खाने में आज खिचड़ी ही हो.

author-image
Yogendra Mishra
New Update
AIIMS

एम्स( Photo Credit : फाइल फोटो।)

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली (एम्स) के बाहर लगे तंबुओं में रोज जब एनजीओ के कर्मचारी खाना बांटने आते हैं तो 16 साल की स्नेहा मन ही मन यही सोच रही होती है कि खाने में आज खिचड़ी ही हो. ऐसा नहीं है कि उसे खिचड़ी हद से ज्यादा पसंद है, बल्कि उसका जबड़ा टूटा हुआ है और वह खिचड़ी या अन्य किसी तरल खाद्य के अलावा कुछ और नहीं खा पाती है.

Advertisment

लॉकडाउन के कारण 24 मार्च से ही इस तंबू मे रह रही स्नेहा कुमारी ने बताया, ‘‘मेरे जबड़े में बहुत दर्द रहता है, इस कारण मैं कुछ खा नहीं पाती. दर्द के कारण मैं सिर्फ जूस जैसी चीजें ही लेना पसंद करती हूं.’’ नेपाल के पारसा जिले से फरवरी में अपने टूटे जबड़े और टूटी हुई कमर (पिता) का इलाज कराने दिल्ली आए पिता-पुत्री 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा होने के कारण यहीं फंस गए हैं, अब ना तो उनका सर्जरी हो पा रही है और नाहीं वे घर लौट पा रहे हैं.

यह भी पढ़ें- पूर्ण लॉकडाउन से गरीब लोग बुरी तरह से प्रभावित होंगे: इमरान खान ने कहा

स्नेहा के जबड़े में एक ट्यूमर था जिसे दो साल पहले एम्स के डॉक्टरों ने सर्जरी करके निकाल दिया. उसी दौरान उन्होंने उसका जबड़ा निकाल कर उसकी जगह पर धातु की प्लेटें लगा दीं. स्नेहा के पिता नंद किशोर ने बताया, ‘‘नेपाल के एक कैंसर अस्पताल ने हमें एम्स, दिल्ली रेफर किया था जिसके बाद हम फरवरी 2018 में यहां आए. डॉक्टरों ने उसका जबड़ा निकाल दिया और उसकी जगह पर धातु की प्लेटें लगा दीं.

उन्होंने कहा था कि एक साल बाद वे स्नेहा के पैर की हड्डी निकाल कर उसे जबड़े में लगाएंगे.’’ किशोर (39) खुद भी कमर में लगी चोट के कारण छड़ी के सहारे के बिना नहीं चल सकते हैं, हालांकि इस चोट के लिए करीब चार साल पहले नेपाल में उनकी सर्जरी भी हुई थी. एम्स, दिल्ली में स्नेहा की सर्जरी पहले 25 फरवरी को होनी थी, लेकिन कई बार टलने के बाद अंतत: 24 मार्च को होनी तय हुई. किशोर ने कहा, ‘‘लेकिन 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) ने देश में लॉकडाउन लगा दिया. मैंने डॉक्टरों से बातचीत की और उन्होंने कहा कि जब तक लॉकडाउन लागू है, वे मेरी बेटी के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं.’’

यह भी पढ़ें- योगी सरकार के फैसले पर प्रियंका वाड्रा ने उठाए सवाल, DA काटने पर बोलीं - सरकार...

स्नेहा के जबड़े में लगी धातु की प्लेटें अपनी जगह से हट गयीं है, जिस कारण उसे हमेशा तेज दर्द रहता है और उसे तत्काल सर्जरी की जरुरत है. नेपाल में एक एनजीओ के साथ काम करने वाले किशोर ने बताया, ‘‘जब मैं नेपाल से चला था तो मेरे पास 15,000 रुपये थे और मझे लगा था कि 15 दिन तक काम चलाने के लिए इतना पर्याप्त होगा. लेकिन अब हम इतने दिन से यहां फंसे हैं, और पैसे भी खत्म हो गए हैं. हम अपने देश भी नहीं लौट सकते.’’

यह भी पढ़ें- 10 से 15 लाख लोगों को गांवों में ही मिलेगा रोजगार, सरकार बना रही योजना

लॉकडाउन के कारण किशोर और स्नेहा नेपाल वापस नहीं जा सकते. फिलहाल दोनों एम्स के बाहर तंबू में रहने और दिल्ली सरकार, पुलिस तथा विभिन्न एनजीओ द्वारा बांटा जा रहा खाना खाकर गुजारा करने को मजबूर हैं. स्नेहा का कहना है कि जिस दिन खाने में खिचड़ी होती है, मुझे अच्छा लगता है क्योंकि उस दिन मुझे भूखा नहीं रहना पड़ता. उसका कहना है, ‘‘अगर मैं दाल-चावल खाने की कोशिश करती हूं तो उसे चबाने में बहुत दर्द होता है.’’

बेटी की सर्जरी का कुछ पक्का पता नहीं होने के कारण किशोर अब घर लौटना चाहते हैं. वह कहते हैं, ‘‘जब लॉकडाउन खुलेगा तो वह नेपाल मे किसी से कहेंगे कि वह उनके खाते में कुछ पैसे डाले ताकि वह घर लौट सकें.’’

Source : Bhasha

lockdown corona-virus AIIMS
Advertisment