Advertisment

तस्वीरों में पलायन की कहानी कहता एक कश्मीरी फोटोग्राफर

तस्वीरों में पलायन की कहानी कहता एक कश्मीरी फोटोग्राफर

author-image
IANS
New Update
Vijay kaul

(source : IANS)( Photo Credit : (source : IANS))

Advertisment

एक फोटो जर्नलिस्ट और एक कलाकार के ²ष्टिकोण से कश्मीर से पंडितों के पलायन में वे सभी तत्व मौजूद थे, जो पत्रकारिता के लिहाज से ठीक थे लेकिन जब आप खुद उसके शिकार हों और एक शरणार्थी के रूप में रहे हों तो वह दर्द तस्वीरों में अपनी जगह बना लेता है।

विजय कौल के साथ भी यही हुआ। उनके लिये पलायन का आघात कभी कम नहीं होगा। वह अपने दर्द को अपनी उन ढेर सारी तस्वीरों में बयां करते हैं ,जिन्हें उन्होंने पलायन की अवधि के दौरान खींचा था या उन्हें कैनवास पर उकेरा था।

उनकी तस्वीरें उन असहाय लोगों की कहानी पेश करती हैं, जो रातों-रात अपने ही देश में शरणार्थी बन गये। उन्होंने फटे-पुराने तंबू, हताश चेहरों, कष्टों और संघर्षों को तब भी क्लिक किया जब वे स्वयं शिविर में हजारों लोगों के बीच रहने की जगह खोजने की कोशिश कर रहे थे।

उन्होंने कही, मैं दिसंबर 1989 के अंत में जम्मू चला गया। मैंने जम्मू में काम खोजने की बहुत कोशिश की और फिर मैं दिल्ली चला गया। मेरे पास सिर्फ 100 रुपये थे, जिसमें से मैंने 75 रुपये में ट्रेन का टिकट खरीदा। तीन महीने के संघर्ष के बाद मुझे एक अखबार में फोटोग्राफर और कलाकार के रूप में नौकरी मिल गयी और मेरा पहला असाइनमेंट था-जम्मू शरणार्थी शिविर।

कौल ने कहा, मैंने मुट्ठी परखू शिविर का दौरा किया और फटे हुए जर्जर तंबुओं की तस्वीरें लीं। मुट्ठी बहुत ही खराब जगह पर था। लोग वहां पानी और बिजली के बिना दयनीय स्थिति में रह रहे थे।

उन्होंने कहा, लोगों को जिस तरह से भागना पड़ा था, उसके कारण अधिकांश के पास न तो अतिरिक्त कपड़े थे, न बिस्तर, न बर्तन और न ही पैसे। खाना पकाने के लिये कोई चूल्हा नहीं था और न ही शौचालय। जम्मू में लोगों ने बहुत मदद की। शिविरों में महिलाओं ने उन मिट्टी के टीले और डंडियों पर खाना बनाना सीखा। जब बारिश होती थी तो चारों ओर कीचड़ हो जाता था। एक रात में ही बड़े घरों में रहने वाले, बाग और बगीचों वाले लोग भिखारी बन गये थे। यह दयनीय था।

कौल कहते हैं, महिलाओं का रूदन, बुजुर्ग, जिन्हें 45 डिग्री तापमान में रहना मुश्किल हो रहा था, उनकी पीड़ा, उपचार की कमी। उन शिविरों में नरक था .. कई लोगों ने दम तोड़ दिया तो कई ने मानसिक संतुलन खो।

उन्होंने कहा,लेकिन सबसे उल्लेखनीय माता-पिता का अपने बच्चों को शिक्षित करने का ²ढ़ संकल्प था क्योंकि जीवन में आगे बढ़ने का यही एकमात्र तरीका था।

कौल कहते हैं, मेरी तस्वीरें पलायन, तंबू के संघर्ष, रोष क्रोध और दर्द, शिविरों से उत्थान और पलायन के बारे में बोलती हैं। मैंने डोडा जिले में चापनारी हत्याकांड को भी क्लिक किया। वहां 19 जून 1998 को पच्चीस हिंदू ग्रामीणों की हत्या की गयी थी।

19 जनवरी, 1990 को सामूहिक पलायन शुरू होने से एक महीने पहले ही कौल घाटी से भाग गये थे।

वह कहते हैं, मैं अकेला व्यक्ति था, जो उस समय कश्मीर में सिल्क स्क्रीन प्रिंटिंग जानता था। जो समूह आतंकवाद का समर्थन कर रहे थे, वे चाहते थे कि मैं बड़े पैमाने पर जेकेएलएफ का लोगो और कुछ तस्वीरें टी-शर्ट पर छापूं।

उन्होंने कहा,मुझे पता था कि अगर मैंने यह किया, तो सरकार मुझे नहीं छोड़ेगी लेकिन अगर मैंने ऐसा नहीं किया, तो आतंकवादी मेरे परिवार को मार डालेंगे। जेकेएलएफ का एक एरिया कमांडर मेरे पास आया था और उसने ही मुझसे प्रिटिंग करने के लिये कहा था। मैंने मना नहीं किया क्योंकि उसके पास एके 47 थी। मैंने उसे विनम्रता से कहा कि वह मुझे दिल्ली से टीशर्ट की प्रिंटिंग के लिये स्याही लाने के लिये कुछ समय दे, जिस पर वह सहमत हो गया। अगले दिन, मैं अपने परिवार के साथ भाग गया। जेकेएलएफ के अलावा भी कई अन्य समूह थे, जो टी-शर्ट की छपाई चाहते थे। कुछ मकबूल भट की बहुत बड़ी तस्वीर और होडिर्ंग चाहते थे। मुझे भागना ही पड़ा।

कई वर्षों के बाद कौल ने कश्मीर पर चित्रों की एक श्रृंखला जारी की, जिसे दिल्ली के हैबिटेट सेंटर में प्रदर्शित किया गया था।

कौल द्वारा खींची गयीं तस्वीरों और कैनवास पर उस पीड़ा को देखा जा सकता है, जिसे काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया गया है।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Source : IANS

Advertisment
Advertisment
Advertisment