logo-image

मेरठ : टूट चुका है सबा के सब्र का बांध, 27 साल से कह रही है बना दो हिन्दुस्तानी

दरअसल 1991 में पाकिस्तान के लाहौर से शादी के बाद आईं सबा फरहत भारत की नागरिकता लेने के लिए पिछले 27 सालों से लगातार कोशिश कर रही है.

Updated on: 16 Jan 2019, 04:47 PM

मेरठ:

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बीच आए दिन अजीबोगरीब किस्से सामने आ जाते हैं. जरा सोचिये, क्या अपने घर में कैद होकर आप कितने दिन जिंदगी जी सकते हैं? आजाद हिन्दुस्तान में एक महिला को पिछले 27 सालों से घुटने भरे कैद में रहना पड़ रहा है. ये कैद घर की चार दीवारी और मेरठ शहर की सरहदों तक सिमटी है. वो चाहकर भी मेरठ की सीमाओं से बाहर नहीं जा सकती है.

दरअसल 1991 में पाकिस्तान के लाहौर से शादी के बाद आईं सबा फरहत भारत की नागरिकता लेने के लिए पिछले 27 सालों से लगातार कोशिश कर रही है. इस लंबे अरसों में उनका वक्त घर पर कम और शासन-प्रशासन से लेकर लखनऊ और पाकिस्तानी एंबेसी में गुजरा है और अब भी गुजर रहा है. तमाम नियम और कायदे कानूनों को पूरा करने वाली सबा को आज भी भारत की नागरिकता नहीं मिली है.

अब सबा के बच्चे भी जवान हो गए, उनकी शादी-ब्याह की फिक्र हो रही है, लेकिन बड़ी परेशानी नागरिकता की है. सिस्टम की फाइलों में उलझी सबा को कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा, क्योंकि 27 सालों में प्रशासन से सुकून देने वाला कोई जवाब नहीं मिला.

सबा कहती है, 'हिन्दुस्तान की सलाहियत और हिन्दुस्तान की तहजीब में जीती हूं. देश से बेइंतहा प्यार है तो फिर मुझे हिन्दुस्तान की नागरिकता देने में देरी क्यों? लखनउ, दिल्ली और मेरठ में अधिकारियों के यहां चक्कर काटते-काटते 27 साल हो गए लेकिन भारत की नगारिकता देने में हर बार ना जाने क्यों नियमों का अड़ंगा लगा दिया जाता है.'

सबा बिना परमिशन के शहर से बाहर आ जा भी नहीं सकती है. नूरी वीजा पर वक्त-वक्त पर अपने मायके पाकिस्तान जाने वाली सबा के लिए अब सरहदों पर भी सवालों के पहरे लग गए हैं. अब बिना भारत की नागरिकता के उनको आने जाने नहीं दिया जाएगा.

और पढ़ें : पाकिस्तान के हजारों हिन्दू और सिख शरणार्थी इस वजह से हैं बेहद निराश

अब मां को नगारिकता दिलाने के लिए बच्चों ने कोशिशें शुरू की हैं. पीएम मोदी से लेकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक को ट्वीट किया है लेकिन कोई नतीजा नहीं आया. सबा कहती है कि आखिरकार उनकी गलती क्या है. सबा थक चुकी है, उनकी परेशानी से उनके पति भी सिस्टम के सामने बेबस नजर आते हैं. खुशी-खुशी 1991 में शादी करके आए फरहत मसूद 27 साल से चल रही कागजी कार्रवाई से आजिज आ चुके हैं.

और पढ़ें : क्या करतारपुर कॉरिडोर के बहाने भारत पाकिस्तान संबंधों में भी बनेगा गलियारा

बता दें कि कानून में 'सेक्शन (5) (1) (सी)' 7 साल के भीतर किसी दूसरे देश के नागरिक को शादी होने के बाद देश में आने पर नागरिकता का अधिकार देता है, लेकिन सबा को तो 27 साल में भी ये अधिकार मयस्सर नहीं हो सका है. लिहाजा देश में रहते हुए भी वो बेगानों की तरह एक ही शहर में जिन्दगी गुज़र बसर कर रही है. सवाल है कि कब वो कहलाएंगी हिन्दुस्तानी!