हरिहरपुर में दिखा योग और शास्त्रीय संगीत का अद्भुत संगम
हरिहरपुर में दिखा योग और शास्त्रीय संगीत का अद्भुत संगम
आजमगढ़:
योग और शास्त्रीय संगीत का अद्भुत संगम गुरुवार को आजमगढ़ में देखने को मिला। स्थान था जिला मुख्यालय से सटा हरिहरपुर गांव। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब यहां आए, तो लगा निर्गुण भक्ति में लीन कोई संन्यासी मां सरस्वती से संवाद करने उनके द्वार पहुंचा हो। हुआ भी वही, सीएम योगी जब यहां पहुंचे, तो हरिहरपुर घराने के संगीत के छात्रों ने सजा दो घर को गुलशन सा मेरे सरकार आए हैं। भजन गाकर उनका स्वागत किया।भगवान राम पर आधारित इस भजन को पूरी तल्लीनता के साथ सुनते हुए सीएम योगी मुस्कुराते रहे। इसके बाद बारी थी हरिहरपुर के स्थानीय कलाकारों की। उन्होंने राग तुरी एक ताल पर अभय बाबा भूतनाथ शम्भू पशुपतिनाथ विश्वनाथ गोरखनाथ नाथ गाया तो सीएम योगी निर्गुण भक्ति में लीन हो गए।
कार्यक्रम आगे बढ़ा और आयोजकों की तरफ से हरिहरपुर घराने का परिचय दिया गया और मंच पर विभिन्न वाद्य यंत्रों के साथ हरिहरपुर के ही कुछ अन्य कलाकार आए। इस बार कलाकारों ने तबले की धुन और राम रस में डूबी लुप्त होते सन्तों के साज सारंगी की प्रस्तुति दी, तो पूरा सभागार राम भक्ति के रस में डूब गया।
आसमान में हल्के बादल और खुशनुमा मौसम के बीच संगीत का यह कार्यक्रम अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका था। सावन के मौसम में अब बारी कजरी गायन की थी। मंच पर संगीतकार अजय मिश्र के नेतृत्व में कलाकारों ने झूला फिर से झुलाओ अवध बिहारी, कृष्ण मुरारी न गाया तो सीएम समेत पूरा सभागार भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में रम गया।
इसके बाद आयोजकों की तरफ से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भगवान गणेश के चित्र का मोमेंटो भेंट किया गया। वहीं मुख्यमंत्री योगी ने हरिहरपुर के संगीत के नन्हें-मुन्ने कलाकारों को स्कूल बैग दिया। साथ संगीत का समां बांधने वाले कलाकारों को शाल भेंटकर उन्हें सम्मानित किया।
हरिहरपुर घराना 500 वर्ष से अधिक पुराना है। इस घराने में चारों विधाएं ठुमरी, दादरा, कजरी और फगुआ गई जाती है। यहां के कलाकार गायकी, संगीत, तबला-वादन में देश ही नहीं, विदेश में भी अपनी कला का डंका बजा रहे हैं। पद्मविभूषण से अलंकृत पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म 1936 में यहीं हुआ था। हरिहरपुर घराना संगीत संस्थान के माध्यम से लगभग 25 वर्षों से हरिहरपुर कजरी महोत्सव का आयोजन कर रहा है। यहां के बच्चों में संगीत इतना रच-बस गया है कि घर-घर में सुबह-शाम रियाज करते देखे जा सकते हैं। वहीं युवक खेतों में काम करते हुए भी इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।
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