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वर्ष 2022 : भाजपा के लिए गुजरात का गढ़ बचाने और उत्तर प्रदेश को दोबारा जीतने की बड़ी चुनौती (भाग-2)

वर्ष 2022 : भाजपा के लिए गुजरात का गढ़ बचाने और उत्तर प्रदेश को दोबारा जीतने की बड़ी चुनौती (भाग-2)

Updated on: 28 Dec 2021, 02:25 AM

नई दिल्ली:

उत्तराखंड : 5 वर्षों में 3 सीएम बनाने वाली भाजपा के लिए दोबारा जीतना बड़ी चुनौती :

उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश की जनता ने किसी एक पार्टी की सरकार को लगातार दूसरी बार जनादेश नहीं दिया है। इस ट्रेंड को तोड़कर राज्य में लगातार दूसरी बार सरकार बनाना भाजपा के लिए 2022 की बड़ी चुनौतियों में से एक है । 2017 के विधान सभा चुनाव में राज्य की सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़कर 46.5 प्रतिशत मत के साथ भाजपा को 56 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि 33.5 प्रतिशत वोट पाने के बावजूद कांग्रेस को महज 11 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। राज्य की जनता के मूड को देखते हुए 5 वर्षों के अंदर ही भाजपा को 3 बार अपना मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। 2017 में चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम बनाया। मार्च 2021 में उन्हे हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया और कुछ ही महीनो बाद प्रदेश की कमान पुष्कर सिंह धामी को थमा दी। उत्तराखंड में भाजपा का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से ही होना है इसलिए इस राज्य में दोबारा जीत हासिल कर भाजपा 2024 के लिए भी एक संदेश देना चाहती है कि कांग्रेस का पुनर्जीवित होना मुश्किल है।

मणिपुर को दोबारा जीत कर पूर्वोत्तर में लोकप्रियता साबित करने की चुनौती

पूर्वोत्तर भारत में भाजपा की लोकप्रिता को साबित करने के लिए भाजपा 2022 में एक बार फिर से मणिपुर में सरकार बनाने के लक्ष्य को लेकर चल रही है। 2017 के विधान सभा चुनाव में मणिपुर में भाजपा को राज्य की कुल 60 विधान सभा सीटों में से केवल 21 सीट पर ही जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस के खाते में भाजपा से ज्यादा 28 सीट आई थी। दोनों के बीच मतों का अंतर एक प्रतिशत से भी कम था। लेकिन अन्य दलों के सहयोग से मणिपुर में भाजपा ने पहली बार सरकार बनाई और 5 साल चलाई भी। अब अपनी सरकार के कामकाज और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बल पर भाजपा फिर से इस पूर्वोत्तर राज्य में कमल खिलाना चाहती है।

गोवा में सत्ता की हैट्रिक बनाना , भाजपा का लक्ष्य

2022 में गोवा में भाजपा लगातार तीसरी बार सरकार बनाकर सत्ता की हैट्रिक करना चाहती है। मणिपुर की तरह ही 2017 में गोवा में भी भाजपा को कांग्रेस से कम सीटों पर जीत हासिल हुई थी लेकिन अन्य दलों के सहयोग से भाजपा ने उस समय प्रदेश में अपनी सरकार बना ली थी। 2017 के चुनाव में राज्य की कुल 40 विधान सभा सीटों में से सबसे ज्यादा 17 सीटें ( 28.35 प्रतिशत मत) कांग्रेस के खाते में गई थी जबकि कांग्रेस से ज्यादा मत प्रतिशत ( 32.48 ) पाने के बावजूद भाजपा को केवल 13 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था लेकिन राजनीतिक तत्परता दिखाते हुए भाजपा ने अन्य दलों का समर्थन हासिल कर कांग्रेस को मात देते हुए प्रदेश में लगातार दूसरी बार सरकार बनाई और 5 सालों तक चलाई भी। इस बार भाजपा अपने दम पर राज्य में बहुमत हासिल कर सरकार बनाना चाहती है। 40 सीटों वाले इस छोटे राज्य में इस बार दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई होने जा रही है। मुख्य मुकाबला भले ही भाजपा और कांग्रेस में होना तय माना जा रहा हो लेकिन गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी जैसे कई पुराने क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ इस बार टीएमसी , आम आदमी पार्टी, शिवसेना सहित कई अन्य दलों ने दम-खम के साथ विधान सभा चुनाव में ताल ठोंक कर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। इस बहुकोणीय लड़ाई की वजह से भाजपा गोवा जीतने को लेकर पूरी तरह से आशान्वित है लेकिन राज्य में पार्टी के दिग्गज नेता रहे मनोहर पर्रिकर की गैर-मौजूदगी में पहला चुनाव लड़ने जा रही भाजपा के लिए यह अपने आप में किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

पंजाब में जनाधार बढ़ाने की चुनौती

2022 में जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से पंजाब भी एक महत्वपूर्ण राज्य है। हालांकि पंजाब में अकाली दल से अलग होकर पहली बार अपने दम पर बड़े भाई की भूमिका में चुनाव लड़ रही भाजपा के पास प्रदेश में खोने को कुछ नहीं और पाने को बहुत कुछ है। भाजपा , पंजाब में कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रह चुके अमरिंदर सिंह और अकाली दल के पूर्व नेता सुखदेव सिंह ढ़ींढसा के साथ मिलकर राज्य में विधान सभा चुनाव लड़ने जा रही है । पंजाब के राजनीतिक हालात का अंदाजा भाजपा को भी बखूबी है और इसलिए भाजपा के नेता राज्य में सरकार बनाने के दावे करने की बजाय यही कहते हुए नजर आते हैं कि प्रदेश में उनके बिना कोई भी सरकार नहीं बनेगी। हालांकि इसके साथ ही भाजपा सीमावर्ती राज्य होने और पाकिस्तान के साथ लगते इसके बॉर्डर की वजह से इस राज्य को संवेदनशील मान कर चल रही है और पंजाब की जनता से यह वादा कर रही है कि भाजपा सरकार ही पंजाब को सुरक्षा दे सकती है। आपको बता दें कि पंजाब की विधानसभा में कुल 117 सीटें हैं। 2017 में राज्य में भाजपा और अकाली मिलकर चुनाव लड़े थे । अकाली दल 94 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसे 25.24 प्रतिशत मतों के साथ 15 सीटों पर जीत मिली थी । जबकि अकाली के साथ मिलकर राज्य की 23 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा को 5.39 प्रतिशत मतों के साथ केवल 3 सीटों पर ही जीत मिली थी। 38.5 प्रतिशत मतों के साथ 77 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने प्रदेश में सरकार बनाई थी लेकिन उस समय कांग्रेस नेता के तौर पर पंजाब के मुख्यमंत्री बनने वाले अमरिंदर सिंह अब नई पार्टी का गठन कर 2022 में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश में दोबारा सरकार बनाना , भाजपा का बड़ा लक्ष्य

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी 1990 के बाद से किसी सरकार को लगातार दूसरी बार जनादेश नहीं मिला है। भाजपा के लिए राज्य में इस ट्रेंड को तोड़कर 2022 में लगातार दूसरी बार सरकार बनाना बड़ी चुनौती है। 2017 विधान सभा चुनाव की बात करें तो राज्य की कुल 68 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा को 48.79 प्रतिशत मतों के साथ 44 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं 41.68 प्रतिशत मतों के साथ कांग्रेस के खाते में 21 सीटें आई थी। राज्य में विधान सभा और लोक सभा के लिए हाल ही में हुए उपचुनाव ने भाजपा आलाकमान की चिंता बढ़ा दी है। भाजपा आलाकमान को भी इस बात का पूरा अहसास है कि राज्य की जनता का जनादेश दोबारा हासिल करने के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है लेकिन यह काफी कुछ क्या हो सकता है इसके लिए भी 2022 का ही इंतजार करना होगा।

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