यूपी विधानसभा चुनाव: कांग्रेस-सपा गठबंधन चुनावों में रहा बड़ा फैक्टर, जिसने बदले राजनीतिक समीकरण

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन से दोनों पार्टियों की नई पीढ़ी राज्य में एक साथ आई, जिसने राज्य विरोधी दलों को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर किया।

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pradeep tripathi
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यूपी विधानसभा चुनाव: कांग्रेस-सपा गठबंधन चुनावों में रहा बड़ा फैक्टर, जिसने बदले राजनीतिक समीकरण

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और अब लोगों को चुनाव परिणाम आने का इंतजार है। हालांकि हर बार राज्य के चुनाव होते रहे हैं लेकिन इस बार का चुनाव काफी अलग रहा है। राज्य में कई ऐसी राजनीतिक घटनाएं भी हुई हैं जो राज्य के चुनाव में पहली बार हुआ है। इनमें सबसे बड़ी घटना रही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन। दोनों पार्टियों की नई पीढ़ी राज्य में एक साथ आई, जिसने राज्य विरोधी दलों को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर किया। 

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उत्तर प्रदेश में एक ऐसा राजनीतिक समीकरण बना जो राज्य के चुनावी इतिहास में पहली बार हुआ है। समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया जो अपने आप में एक बड़ी घटना है। समाजवादी पार्टी की पूरी राजनीति कांग्रेस के विरोध में रही है और कांग्रेस को धूल चटाकर ही मुलायम सिंह यादव 1989 में सूबे के मुख्यमंत्री बने थे।

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राज्य में हाशिये पर आ चुकी कांग्रेस भी इस गठबंधन के लिये आतुर दिख रही थी। अखिलेश को भी इस बात का अदाज़ा था कि सरकार विरोधी फैक्टर उनके खिलाफ जा सकते है तो वो भी गठबंधन करना चाह रहे थे। लेकिन कांग्रेस को इस गठबंधन की ज़रूरत ज्यादा दिख रही थी। सीटों को लेकर थोड़ी उठा-पटक के बाद कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया। राज्य के राजनीतिक समीकरण बदल चुके थे।

अखिलेश पहले भी कह चुके थे कि अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन होता है तो गठबंधन 300 से ज्यादा सीटें लेकर दोबारा सत्ता में आएगी। लेकिन कांग्रेस की तरफ से उस समय कोई बयान नहीं आया था। इधर समाजवादी पार्टी में पारिवारिक झगड़ा शुरू हो गया जिसमें ऐसा लग रहा था कि पार्टी दो फाड़ हो जाएगी। लेकिन पार्टी की कमान मुलायम सिंह के हाथ से अखिलेश के हाथ में आ गई और फिर कांग्रेस के साथ गठबंधन संभव हुआ।

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गठबंधन यूं ही नहीं हुआ, दोनों दलों के बीच गठबंधन करने की सलाह कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पार्टी को दी। ये वही प्रशांत किशोर है जिन्होंने 2014 में नरेंद्र मोदी की चुनावी रणनीति तैयार की थी। साथ ही उन्होंने बिहार चुनावों के लिये नीतीश कुमार की भी रणनीति बनाई। वो सफल भी रहे।

कांग्रेस वही पार्टी थी जिसने 80 के दशक में मुलायम सिंह यादव की हत्या कराने की कोशिश की थी। ये आरोप खुद मुलायम सिंह ने लगाए थे। मुलायम सिंह यादव ने भी 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया था। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसी बात को लेकर अखिलेश यादव पर तंज किया था।

लेकिन समय बदला है और राजनीतिक समीकरण भी बदले हैं। बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिये 2017 में मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है।

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दोनों युवा हैं और पार्टी की कमान उनके हाथ में है। अखिलेश राज्य की सत्ता संभाल रहे हैं और देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की बागडोर राहुल के हाथ में है।

राहुल गांधी और अखिलेश यादव दोनों रैली और रोड शो मिलाकर 10 से ज्यादा बार साथ दिखे। भीड़ भी जुटी दोनों युवराजों की सभाओं में। कांग्रेस और सपा दोनों ही इसे शुभ संकेत मान रहे हैं।  

चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि दोनों दलों और इस नई पीढ़ी का गठबंधन क्या गुल खिलाएगा। लेकिन ये तो तय है कि भविष्य में इस तरह के गठबंधनों से इनकार नहीं किया जा सकता।

हालांकि दोनों दलों के युवा चेहरों ने इस बात के संकेत दिये हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी गठबंधन होगा। लेकिन इसके साथ ही सवाल ये भी उठता है कि अगर उत्तप प्रदेश विधानसभा चुनाव में गठबंधन फेल हुआ तो दोनों नेता 11 मार्च के बाद क्या फैसला लेंगे।

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Source : Pradeep Tripathi

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