उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मिली अप्रत्याशित जीत से ज्यादा योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने का फैसला चौंकाने वाला रहा।
403 सीटों वाले विधानसभा में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को मिली 325 सीटों के बाद सियासी हलकों में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह के विश्वासपात्र रहे गाजीपुर के सांसद मनोज सिन्हा का नाम सबसे आगे था, लेकिन आखिरी वक्त में गोरखपुर से सांसद रहे योगी आदित्यनाथ को बीजेपी के विधायक दल का नेता चुन लिया गया।
विधायक दल की बैठक से कुछ घंटों पहले तेजी से बदलते घटनाक्रम में अचानक योगी आदित्यनाथ सीएम पद की रेस में सबसे आगे निकलते हुए विधायक दल का नेता चुन लिए गए।
योगी की छवि कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने वाले नेता की रही है। 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन का केंद्र रहा यूपी ध्रुवीकरण की राजनीति का केंद्र रहा है। यही वजह रही कि 2017 के चुनाव में भले ही पार्टी ने 'विकास' और मोदी के 'सबका साथ-सबका विकास' के नारे पर चुनाव लड़ा लेकिन वह घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण का जिक्र करना नहीं भूली।
योगी बीजेपी की इस राजनीति में फिट बैठते हैं। इसके अलावा पूर्वांचल की 100 से अधिक सीटों पर उनकी काफी मजबूत पकड़ मानी जाती है। हिंदू युवा वाहिनी जैसा संगठन पूर्वांचल में योगी की मजबूत पकड़ को आधार देता है। योगी की पूरी राजनीति हिंदुत्व की छवि के इर्द-गिर्द घूमती रही है, औऱ उनके मुख्यमंत्री बनने में इसकी बड़ी भूमिका रही है।
उत्तर प्रदेश जैसे जातीय रुप से जटिल राज्य में योगी आदित्यनाथ की जाति भी उनके लिए मददगार रही। आदित्यनाथ ठाकुर जाति से आते हैं, जो बीजेपी का कोर वोटर रहा है। वहीं केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा की जाति उनके लिए सबसे बड़ी रूकावट बनकर सामने आई।
सिन्हा जाति से भूमिहार है, लेकिन उत्तर प्रदेश में यह जाति संख्याबल के लिहाज से ब्राह्मण और ठाकुरों के मुकाबले कहीं नहीं टिकती है। वहीं संगठन में कमजोर पकड़ और जन नेता की छवि योगी आदित्यनाथ के लिए मददगार साबित हुई।
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योगी के लिए सबसे मददगार उनकी छवि साबित हुई, जिसके लिए वह जाने जाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में संघ की मजबूत पकड़ उसकी लंबी रणनीति का हिस्सा रहा है, जिसके लिए योगी आदित्यनाथ सबसे मुफीद साबित होंगे। सिन्हा, मोदी और शाह की पसंद होने के बावजूद मुख्यमंत्री की रेस से बाहर हो गए, क्योंकि उन्हें संघ का साथ नहीं मिला।
दरअसल जो बातें सिन्हा के पक्ष में जाती दिखाई दे रही थी, वहीं बातें आखिरी वक्त में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गईं। मसलन सिन्हा की जाति उत्तर प्रदेश में प्रभावी मतदाता नहीं है, इसलिए उनका मुख्यमंत्री बनना एक तरह से जातीय रूप से जटिल यूपी में न्यूट्रल स्थिति होती, लेकिन यही दांव उन पर भारी पड़ गया।
वहीं संघ के साथ सभी नेताओं से एक समान रिश्तों का समीकरण भी सिन्हा के काम नहीं आया, जबकि शुरुआती स्तर पर पिछड़ते योगी अचानक से ही यूपी के सीएम की रेस में सबसे आगे निकलने में सफल रहे।
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HIGHLIGHTS
- आखिरी वक्त में चौंकाने वाले सियासी घटनाक्रम के तहत योगी आदित्यनाथ यूपी बीजेपी विधायक दल के नेता चुने गए
- योगी की पूरी राजनीति हिंदुत्व की छवि के इर्द-गिर्द घूमती रही है, औऱ उनके मुख्यमंत्री बनने में इसकी बड़ी भूमिका रही है
Source : Abhishek Parashar