दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा शुक्रवार 1 अक्टूबर को घोषित की गई पहली कटऑफ के मुकाबले ईडब्ल्यूएस श्रेणी की कटऑफ सिर्फ 0.50 से 0.75 प्रतिशत कम है। दिल्ली विश्वविद्यालय की इस हाई कटऑफ लिस्ट का सीधा सीधा प्रभाव ईडब्ल्यूएस श्रेणी के छात्रों पर पड़ रहा है।
पिछले साल दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा जारी की कई कटऑफ और विशेष अभियान के बावजूद, दिल्ली विश्वविद्यालय में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस छात्रों के कोटे की 5.6 फीसदी सीटें खाली रह गई थी। विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसर इसका प्रमुख कारण उच्च कटऑफ को मानते हैं।
ऊंची कटऑफ रहने के कारण ईडब्ल्यूएस उम्मीदवारों की अनुपलब्धता रही। इस साल भी लगभग यहीं स्थिति बनती दिख रही है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, डॉ हंसराज सुमन ने बताया कि हिंदू कॉलेज में, इतिहास (ऑनर्स) में सामान्य कटऑफ 99.5 फीसदी है। वहीं ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए यह 98 फीसदी है और ओबीसी के लिए 98.5 फीसदी है। पिछले साल ईडब्ल्यूएस और ओबीसी के लिए यह कटऑफ 97.5 प्रतिशत थी।
प्रोफेसर सुमन ने कहा कि कोरोना महामारी के कारण 12वीं बोर्ड में अंक देने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया का कुछ स्कूलों ने दुरुपयोग किया, और अपने यहां पढ़ने वाले छात्रों की परफॉर्मेंस को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया। डॉ हंसराज सुमन भी दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले की प्रक्रिया पूरी तरह बदले जाने के पक्षधर हैं।
उन्होंने मांग की है कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत प्रवेश परीक्षा के आधार पर छात्रों को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दाखिला मिलना चाहिए। इसमें 12वीं कक्षा में हासिल किए गए अंकों को भी महत्व दिया जा सकता है। इससे कटऑफ के आधार पर दाखिले का नियम बदल सकेगा।
डॉ सुमन ने कहा की बड़ी संख्या में ऐसे छात्र हैं जो 12वीं कक्षा में शत प्रतिशत या उसके आसपास अंक लाने में कामयाब रहते हैं किंतु कॉलेज में सालाना स्कोर 70 फीसदी के आसपास रहता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में वर्ष 2020 के साथ साथ 2019 में कुछ ऐसी ही स्थिति थी। तब भी अंडरग्रेजुएट कोर्स के लिए दाखिले में शामिल किए गए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटे के तहत सीटें खाली रह गई थीं।
दरअसल बीते वर्षों में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आवश्यक उच्च कट ऑफ रहने के कारण ईडब्ल्यूएस कैटेगरी कोटे के तहत कम छात्रों का दाखिला हो पाया।
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Source : IANS