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राफेल सौदे पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के दावे को कांग्रेस ने बताया झूठ

कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, 'यह सफेद झूठ है और सरासर बकवास किया जा रहा है, वह भी दुर्भाग्यवश रक्षा मंत्रालय और कानून मंत्री द्वारा.'

Updated on: 23 Sep 2018, 07:15 AM

नई दिल्ली:

कांग्रेस ने शनिवार को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि फ्रेंच कंपनी, दसॉ एविएशन ने ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट के क्रियान्वयन के लिए मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के साथ 2012 में एक करार किया था. कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, 'यह सफेद झूठ है और सरासर बकवास किया जा रहा है, वह भी दुर्भाग्यवश रक्षा मंत्रालय और कानून मंत्री द्वारा.'

उन्होंने कहा, 'दसॉ एविएशन और मुकेश अंबानी की कंपनी के बीच कभी भी इस तरह का कोई सहमति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं हुआ.'

सुरजेवाला ने कहा, 'उनके पास रिकार्ड हैं. हम कानून मंत्री और रक्षामंत्री (निर्मला सीतारमण) को चुनौती देते हैं कि वे इस तरह का कोई दस्तावेज सार्वजनिक कर के दिखाएं. चूंकि कोई दस्तावेज है ही नहीं, तो झूठ बेनकाब हो जाएगा.'

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सुरजेवाला की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई, जब इसके पहले प्रसाद ने 2006 से समझौते का इतिहास उधेड़ते हुए कहा कि यह दिखाने के लिए सबूत मौजूद हैं कि ऑफसेट साझेदार के रूप में रिलायंस की एक कंपनी का चयन मोदी के प्रधानमंत्री बनने से काफी पहले संप्रग सरकार के दौरान 2012 में ही किया गया था.

उन्होंने कहा, 'इस बात का सबूत उपलब्ध है कि दसॉ एविएशन और रिलायंस इंडस्ट्री के बीच एक एमओयू 13 फरवरी, 2013 को हुआ था, यानी हमारे सत्ता में आने से चार महीने पहले.'

प्रसाद ने कहा कि ऑफसेट के नियम संप्रग ने 2012 में बनाए थे और एचएएल के स्थान पर निजी कंपनी को चुनने का पूरा अधिकार दसॉ को था. उन्होंने कहा, 'वास्तव में संप्रग ने एचएएल को दरकिनार किया.'

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प्रसाद फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे को लेकर पैदा हुए विवाद पर प्रतिक्रिया दे रहे थे. उन्होंने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है, जब मीडिया रपटों में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने दावा किया है कि राफेल ऑफसेट करार के लिए निजी कंपनी को भारत सरकार ने सुझाया था.

सुरजेवाला ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर हमला बोलते हुए कहा, 'सच्चाई यह है कि दसॉ एविएशन और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच एक वर्क-शेयर अरेंजमेंट हुआ था. और यह वार्षिक रपट 2013-14 में साबित हुआ है, जिसमें दसॉ के सीईओ एरिक ट्रेपीयर कहते हैं कि हमारा मुख्य साझेदार एचएएल है.'

उन्होंने कहा कि 25 मार्च, 2015 (10 अप्रैल, 2015 को मोदी द्वारा 36 राफेल खरीदने की घोषणा के मात्र 17 दिनों पहले) दसॉ के सीईओ ने भारतीय वायुसेना प्रमुख और एचएएल के चेयरमैन की उपस्थिति में कहा था कि एचएएल के साथ बातचीत अंतिम चरण में है और करार को जल्द ही अंतिम रूप दे दिया जाएगा और उसपर हस्ताक्षर हो जाएगा.

सुरजेवाला ने कहा, '13 मार्च, 2014 को एचएएल और दसॉ एविएशन के बीच एक वर्क-शेयर समझौते पर हस्ताक्षर हुआ.'

उसके आद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में 36 राफेल खरीद सौदे की घोषणा की और 2016 में इस सौदे पर हस्ताक्षर हुआ.

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संप्रग सरकार इसके पहले 126 राफेल विमान खरीदने के लिए बातचीत कर रही थी, जिसमें से 18 तैयार स्थिति में आने थे, और बाकी 108 विमान एचएएल द्वारा विनिर्मित किए जाने थे.

मोदी सरकार बार-बार कह रही है कि भारतीय ऑफसेट साझेदार चुनने का अधिकार दसॉ के पास था और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है.