भारत के वो आम बजट जिन्होंने बदली देश की दशा और दिशा!
एक नज़र भारत के उन वित्त मंत्रियों और प्रधानमंत्रियों पर जिनकी दूरदर्शिता ने भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूती दिलाई।
नई दिल्ली:
बजट 2017 का आगाज़ 1 फरवरी से हो रहा है, देश के 27वें वित्त मंत्री अरुण जेटली आज़ाद भारत का 84वां आम बजट पेश करेंगे। आम बजट का इतिहास और वो ख़ास बजट जिन्होंने देश की आर्थिक नीतियों को नई दिशा दी।
ब्रिटिश सरकार की चंगुल से निकल आज़ाद हवा में सांस लेने को बेताब भारत जैसे बड़े देश की अर्थव्यवस्था के पहियों को किस प्रकार गति मिली और किस प्रकार ग़रीब देश भारत की बदलीं आर्थिक नीतियों पर यकायक विश्व की आंखे भारत की ओर टिकीं।
इसमें भारत के किन वित्त मंत्रियों की और प्रधानमंत्रियों की दूरदर्शिता ने बड़ी भूमिका निभाई।
एक नज़र इन घटनाक्रमों पर -
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भारत का पहला बजट 18 फरवरी 1869 में जेम्स विल्सन ने पेश किया था। जेम्स विल्सन इंडिया काउंसिल के वित्तीय टीम के सदस्य थे।
आज़ाद भारत का पहला आम बजट पहले वित्त मंत्री आर के शनमुखम चेट्टी ने पेश किया। आर के शनमुखम चेट्टी ने साढे सात साल के लिए बजट पेश किया। पहला वित्तीय बजट का अनुमानित राजस्व मात्र 171.15 करोड़ रुपये आंका गया था जबकि वित्तीय घाटे का अनुमान 24.59 करोड़ रुपये आंका गया था। (प्रधानमंत्री - जवाहर लाल नेहरु)
चेट्टी के बाद वित्त मंत्री बने जॉन मथाई और उन्होंने 1949-50 में गणतंत्र भारत के लिए पहला बजट पेश किया था। जॉन मथाई ने सदन में पूरा बजट पढ़ने के बजाए महंगाई और आर्थिक नीतियों पर एक छोटा बजट भाषण दिया। सदन के सदस्यों को बजट की बारिकियों के बारे में श्वेत पत्र के ज़रिए अवगत कराया गया। जॉन मथाई ने योजना आयोग और पंचवर्षीय योजना अपनाने का प्रस्ताव दिया था ।(प्रधानमंत्री - जवाहर लाल नेहरु)
इसके बाद वित्त मंत्री बने सीडी देशमुख। देशमुख के सामने सबसे बड़ी चिंता थी योजनाओं के लिए रकम जुटाने की। जिसका मतलब था कर की ऊंची दरें लागू करना। अपने बजट भाषण में उन्होंने इस समस्या का हल एक कहानी के ज़रिए निकाला। (प्रधानमंत्री - जवाहर लाल नेहरु)
13 फरवरी 1958 से 13 फरवरी 1928 तक प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने वित्त मंत्रालय संभाला । 1950 से सरकार का लगातार ज़ोर राजस्व को बढ़ावा देने के लिए विदेश मदद के ज़रिए राजस्व जुटाने पर रहा था। यूएसएसआर और उसके सहयोगी देश चेकोस्लोवाकिया, रोमानिया की मदद से साल 1959 में भिलाई स्टील प्लांट प्रोजेक्ट बना। । (प्रधानमंत्री - जवाहर लाल नेहरु)
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के बाद वित्त मंत्री बने मोरारजी देसाई। उन्होंने 1968 के आम बजट में करों के प्रति अपनी सहमति जताई और सदन में ज़ोरदार भाषण दिया। मोरारजी देसाई ने अब तक सबसे ज़्यादा 10 आम बजट सदन में पेश किए हैं। (प्रधानमंत्री - इंदिरा गांधी )
वित्त मंत्री वी पी सिंह ने 1986 में पेश आम बजट में ग़रीबों की उन्नति पर ज़ोर दिया। उन्होंने रेलवे में कुलियों का प्रस्ताव दिया, रिक्शा चालकों, मोचियों और छोटे कारखाने उद्योग के विकास के लिए सब्सिडी के साथ बैंक लोन का प्रस्ताव दिया। इसके अलावा सफाई कर्मचारियों के लिए दुर्घटना बीमा का भी प्रस्ताव दिया था। (प्रधानमंत्री - राजीव गांधी)
1991 में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक विकास को गति देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। वित्त मंत्री के रुप में मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए आयात कर को 50% तक घटा दिया। इसके अलावा 1994 के बजट में मनमोहन सिंह ने ख़ास सेक्टर्स की ग्रोथ को रोकने के लिए सर्विस टैक्स लगाया। (प्रधानमंत्री - पी वी नरसिंहा राव)
साल 2000 तक आम बजट ब्रिटिश सरकार द्वारा तय समय शाम 5 बजे तक ही पेश होता रहा। इस प्रथा को तोड़ा वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने और साल 2001 में पहली बार आम बजट सुबह 11 बजे पेश हुआ। इसके बाद से आम बजट सुबह ही पेश किया जाता है। (प्रधानमंत्री - अटल बिहारी वाजपेयी)
वित्त वर्ष 2005-06 के बजट में नेशनल रुरल हेल्थ मिशन और नरेगा जैसी योजनाएं लॉन्च हुई। इस दौरान वित्त मंत्री का पदभार पी चिंदबरम संभाल रहे थे। (प्रधानमंत्री- मनमोहन सिंह)
2009 से 2012 तक वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी ने कई टैक्स रिफॉर्म पेश किए। उन्होंने फ्रिंज बैनेफिट टैक्स और कमोडिटी ट्रांसेक्शन टैक्स को ख़त्म किया और जीएसटी को लागू करने का प्रस्ताव भी किया। प्रणब मुखर्जी के बजट में शिक्षा प्रसार, हेल्थ केयर, बिजलीकरण जैसे मुद्दों पर ज़ोर रहा। (प्रधानमंत्री- मनमोहन सिंह)
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