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हवा में मौजूद कोरोना वायरस को मार गिराएंगी अल्ट्रा वॉयलेट किरणें

सेंटर ऑफ रेडियोलॉजिकल रिसर्च के डायरेक्टर डॉ. डेविड ब्रेनर का कहना है कि फार-यूवीसी किरणें जीवाणुओं और वायरस को खत्म करती हैं और ये इंसानों के शरीर को नुकसान भी नहीं पहुंचातीं हैं.

Updated on: 25 Apr 2020, 12:59 PM

नई दिल्ली:

अभी तक हॉलीवुड फिल्मों में वायरस से जनित बीमारी का अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से खात्मे की कहानी सुनी होगी लेकिन अब वैज्ञानिक इसी ओर कदम बढ़ा रहे हैं. हाल ही में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि एक खास तरह की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से हवा में मौजूद 99% कोरोनावायरस को खत्म कर सकती हैं. शोधकर्ता और सेंटर ऑफ रेडियोलॉजिकल रिसर्च के डायरेक्टर डॉ. डेविड ब्रेनर का कहना है कि फार-यूवीसी किरणें जीवाणुओं और वायरस को खत्म करती हैं और ये इंसानों के शरीर को नुकसान भी नहीं पहुंचातीं हैं.

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शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर किसी कमरे में वायरस मौजूद है तो उसकी संख्या कम करने का कोई सटीक तरीका नहीं है. अगर कोई करने में छींके तो हम क्या कर सकते हैं. ऐसे में अगर हवा में ही वायरस को मारना है तो किसी ताकतवर हथियार की जरूरत पड़ेगी. उन्होंने कहा कि चीन और साउथ कोरिया में यूवी लाइट का इस्तेमाल किया जा रहा है. कई स्थानों पर रोबोट इन्हीं किरणों की मदद से अस्पतालों, बसों और ट्रेनों को सैनेटाइज कर रहे हैं.

यूवी किरणें इंसान के लिए होती हैं खतरनाक
आमतौर पर जर्मिसाइडल अल्ट्रा वायलेट (यूवी) किरणों का इस्तेमाल अस्पताल और मेडिकल सेंटर की सफाई में किया जाता है. यह इंसान के शरीर को नुकसान पहुंचाती हैं लेकिन बैक्टीरिया और वायरस के डीएनए को डैमेज करती हैं. इनसे इंसानों को दूर रहने की सलाह दी जाती है क्योंकि ये किरणें स्किन कैंसर और मोतियाबिंद के खतरे को बढ़ा देती हैं. लेकिन वैज्ञानिकों ने अल्ट्रा वायलेट रेज के दूसरे रूप फार-यूवीसी किरणों से नए कोरोनावायरस को खत्म करने का दावा किया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि ये काफी पावरफुल किरणें हैं क्योंकि इनका इस्तेमाल क्लीनर की तरह किया जा सकता है.  

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वायरस की ऊपरी तरह होगी नष्ट
वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इन किरणों के इस्तेमाल से यूवी लाइट 95 फीसदी से अधिक असर के साथ कोरोना जैसे वायरस को खत्म कर सकती है. शोध में सामने आया कि वायरस की ऊपरी लेयर काफी पतली होती है जिसे अल्ट्रा वॉयलेट किरणें आसानी से तोड़ सकती हैं. रिसर्च करने वाली टीम ने उस समय दो तरह के वायरस पर इसका प्रयोग किया था जो सफल रहा था.