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जमीयत ने कहा, तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला शरीयत के खिलाफ, यह चिंता का विषय

तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थन के बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसे शरियत के खिलाफ करार दिया है।

Updated on: 24 Aug 2017, 03:01 PM

highlights

  • जमीयत ने कहा, तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला शरीयत के खिलाफ
  • मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक करार दिया था

नई दिल्ली:

तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थन के बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसे शरीयत के खिलाफ करार दिया है।

प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत ने कहा, 'धार्मिक अधिकार संविधान में दिए मौलिक अधिकारों का हिस्सा हैं और इनको लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता।'

जमीयत ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस्लामिल शरियत के खिलाफ है और यह मुस्लिम समुदाय के लिए चिंता का विषय है।'

आपको बता दें की मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीन बार तलाक बोलकर निकाह तोड़ दिए जाने को 'असंवैधानिक' व 'मनमाना' करार दिया और कहा कि यह 'इस्लाम का हिस्सा नहीं' है।

चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस नजीर, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, जस्टिस यू.यू. ललित और जस्टिस कुरियन जोसेफ वाली संसदीय पीठ ने अपने 395 पृष्ठ के फैसले में कहा, 'तमाम पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 3:2 के बहुमत से तलाक-ए-बिदत (एक ही बार में तीन तलाक दिया जाना) को रद्द किया जाता है।'

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जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के सदस्य महमूद मदनी ने कहा, 'कोर्ट के फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकारों में शामिल है और भारतीय संविधान इसकी सुरक्षा की गारंटी देता है।'

मदनी ने कहा, 'एक साथ तीन तलाक पर फैसले के संबंध में नकारात्मक आशंकाओं के मद्देनजर जमीयत यह स्पष्ट कर देना चाहती है कि भारतीय संविधान में दिए गए धार्मिक अधिकारों, जो हमारे मौलिक अधिकारों का भाग है, पर किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। इसके लिए हमारा यह संघर्ष हर स्तर पर जारी रहेगा।'

उन्होंने मुस्लिम समुदाय से अपील करते हुए कहा कि वे अनिवार्य परिस्थितियों के अलावा तलाक न दें, क्योंकि शरीयत की दृष्टि से तलाक बहुत बुरी चीज है।'

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