तीन तलाक पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा- यह महिलाओं को संवैधानिक हक़ से वंचित रखता है
केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक मुद्दे पर कहा कि तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु विवाह मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर और गरिमा को प्रभावित करते हैं और उन्हें संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकारों से वंचित रखते हैं।
नई दिल्ली:
केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक मुद्दे पर कहा कि तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु विवाह मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर और गरिमा को प्रभावित करते हैं और उन्हें संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकारों से वंचित रखते हैं।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर ताजा अभिवेदन में अपने पिछले रुख को ही दोहराया और कहा है कि ऐसी प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं को उनके समुदाय के पुरुषों की तुलना में और दूसरे समुदायों की महिलाओं की तुलना में असमान और कमज़ोर बनाती है।
केंद्र ने अपना पक्ष रखते हुए यह बातें कही है। केंद्र ने कहा कि इस याचिका में जिन प्रथाओं को चुनौती दी गई है, उनमें ऐसे कई अतार्किक वर्गीकरण हैं, जो मुस्लिम महिलाओं को संविधान में प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का लाभ लेने से वंचित करते हैं।
बता दें कि इससे पहले 30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिमों में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु विवाह की प्रथाएं ऐसे अहम मुद्दे हैं, जिनके साथ भावनाएं जुड़ी हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक संवैधानिक पीठ इन्हें चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 11 मई को करेगी। केंद्र ने अपने लिखित अभिवेदन में इन प्रथाओं को पित सत्तात्मक मूल्य और समाज में महिलाओं की भूमिका के बारे में चली आने वाली पारंपरिक धारणाएं बताया है।
केंद्र ने कहा कि एक महिला की मानवीय गरिमा, सामाजिक सम्मान एवं आत्म मूल्य के अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत उसे मिले जीवन के अधिकार के अहम पहलू हैं।
अभिवेदन में कहा गया, लैंगिक असमानता का शेष समुदाय पर दूरगामी प्रभाव होता है। यह पूर्ण सहभागिता को रोकती है और आधुनिक संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को भी रोकती है।
इन प्रथाओं को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए सरकार ने कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में पिछले छह दशक से अधिक समय से सुधार नहीं हुए हैं और मुस्लिम महिलाएं तत्काल तलाक के डर से बेहद कमजोर बनी रही हैं। मुस्लिम महिलाओं की संख्या जनसंख्या का आठ प्रतिशत है।
केंद्र ने कहा है, यह कहना सच हो सकता है कि सिर्फ कुछ ही महिलाएं तीन तलाक और बहु विवाह से सीधे तौर पर या वास्तव में प्रभावित होती हैं लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि इस कथित कानून के दायरे में आने वाली हर महिला इन प्रथाओं का इस्तेमाल उसके खिलाफ किए जाने को लेकर डर एवं खतरे में जीतीं हैं। इसका असर उसके स्तर, उसके द्वारा चुने जाने वाले विकल्पों, उसके आचरण और सम्मान के साथ जीने के उसके अधिकार पर पड़ता है।
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