नोटबंदी के एक महीने के बाद के हालात पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। फैसले के अच्छे या बुरे होने से परे मसले की तहों पर भी काफी कुछ लिखा गया है। दूरगामी असर बेहतर होगा, यह एक पहलू है। फौरी असर खुली आँखों से देखा जा सकता है। कतार छोटी हुई है, इसमें कोई शक़ नहीं। कितनी छोटी हुई है, इस पर कोई आंकड़ा नहीं है। कतार कब तक लगी रहेगी, इसका किसी को पता नहीं है।
बहरहाल, आइये जानते हैं पिछले एक महीने में देश और विदेश के विशेषज्ञों ने नोटबंदी को कैसे देखा है।
जेएनयू में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर अरुण कुमार का मानना है कि नोटबंदी ऐसा है जैसे किसी के जिस्म से 85 फीसदी खून निकाल कर उसमें वापस 5 फीसदी पंप किया जा रहा हो। वो कहते हैं कि भारत में ऐसा कदम उठाने की ज़रुरत नहीं थी। एक वेबसाइट से बातचीत में अरुण कुमार ने कहा है कि जहां तक नकली नोटों से निजात पाने की बात है तो 10 लाख रुपये में से सिर्फ 400 रुपये ही नकली हैं। देश में कुल मिलाकर 400 करोड़ रुपये से ज्यादा के नकली नोट नहीं हैं। ये ऊँट के मुँह में जीरे जैसा है। और रही आतंकियों के द्वारा नकली नोट छापने की बात, तो वो नए नोटों के साथ भी ऐसा कर सकते हैं।
अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर रहे वेंकटेश आर्थ्रेय कहते हैं कि यह कदम निश्चित रूप से राजनीतिक है। प्रधानमंत्री के यह कहने कि दूसरे राजनीति दल खुश नहीं हैं क्योंकि वो तैयार नहीं थे, का एक मतलब यह भी समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री की पार्टी तैयार थी। जिस अर्थव्यवस्था में नब्बे फीसदी तक काम कैश में होता हो, उनको ये कहना कि डिजिटल हो जाओ, ना सिर्फ असंवेदनशील है बल्कि भयावह है।
लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में प्रोफ़ेसर मैत्रीश घटक का मानना है कि नोटों की वजह से आने वाले वक़्त में जल्दी और आसानी से काला धन जमा किया जा सकेगा। उनका कहना है कि काले धन की समस्या केवल एक चोट से ख़त्म नहीं होगी। नोटबंदी से काले धन पर काम असर पडेगा जबकि देश की अर्थव्यवस्था पर इसके दूरगामी असर होंगे।
इंडिया कौंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकनोमिक रिलेशन्स रजत कथूरिया कहते हैं कि यह बेहतरी की तरफ पहला कदम है। आने वाले वक़्त में नोटबंदी के अच्छे परिणाम आएंगे। कैश पर निर्भरता कम होगी और भविष्य में डिजिटल ट्रांजेक्शन होंगे।
दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में प्रोफ़ेसर परीक्षित घोष मानते हैं कि नोटबंदी से होने वाले फायदे के मद्देनज़र क्या कीमत चुकानी होगी, इसका ध्यान नहीं रखा गया है। कृषि, विनिर्माण और टेक्सटाइल सेक्टर पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा है और बनारस, लुधियाना, तिरुपुर जैसी जगहों पर वीरानी छाई है। लिक्विडिटी जल्द नहीं आई तो परिणाम और गंभीर होंगे।
युवा अर्थशास्त्री विस्मय बसु का मानना है कि अगली तिमाही और भी भयावह होगी। लोग निवेश करने से डर रहे हैं, उनमें भय है और इसका असर युवाओं के रोज़गार पर पड़ेगा। इनफॉर्मल इकॉनमी तबाही के कगार पर है। नोटबंदी बैंकों के लिए राहत की बात हो सकती है क्योंकि उनका कैश रिज़र्व रेश्यो सुधर गया है। ये संकट में चल रहे बैंकिंग सेक्टर के लिए बेल आउट की तरह है।
Source : Ashish Bhardwaj