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सुप्रीम कोर्ट ने 4 करोड़ राशन कार्ड रद्द किए जाने को बताया गंभीर मसला

अदालत का यह अवलोकन 11 साल की एक लड़की की मां कोइली देवी द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसकी कथित तौर पर 28 सितंबर, 2017 को भुखमरी से मौत हो गई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि इसे विरोधात्मक मामले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.

Updated on: 17 Mar 2021, 10:08 PM

highlights

  • बायोमीट्रिक प्रमाणीकरण से रद्द हुए 4 करोड़ राशन कार्ड
  • आधार नहीं है तो वैकल्पिक दस्तावेज भी दे सकते हैं
  • सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान में लिया मामला कहा गंभीर मसला

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को करीब चार करोड़ राशन कार्ड को आधार कार्ड से न जुड़े होने के कारण रद्द किए जाने का आरोप लगाने वाली याचिका पर केंद्र और सभी राज्यों से जवाब मांगा है. न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन के साथ प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, मामला बहुत गंभीर है. हमें इसे सुनना होगा. अदालत का यह अवलोकन 11 साल की एक लड़की की मां कोइली देवी द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसकी कथित तौर पर 28 सितंबर, 2017 को भुखमरी से मौत हो गई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि इसे विरोधात्मक मामले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.

याचिका में कहा गया है कि आधार और बायोमीट्रिक प्रमाणीकरण पर जोर किए जाने से देश में लगभग 4 करोड़ राशन कार्ड रद्द हो गए. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस ने कहा कि यह मामला एक बड़े मुद्दे से संबंधित है. पीठ ने उन्हें बताया कि मांगी गई राहत बहुत ही सर्वव्यापी है और इसने मामले के दायरे को बढ़ा दिया है. गोंसाल्विस ने दलील दी कि केंद्रीय स्तर पर तीन करोड़ से अधिक राशन कार्ड रद्द किए गए और प्रत्येक राज्य स्तर पर 10 से 15 लाख कार्ड रद्द किए गए हैं.

याचिका में दलील देते हुए कहा गया है, असली कारण यह है कि आइरिस पहचान, अंगूठे के निशान, पजेशन ऑफ आधार, ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट के कामकाज आदि पर आधारित तकनीकी प्रणाली के कारण संबंधित परिवार को नोटिस के बिना ही बड़े पैमाने पर राशन कार्ड रद्द कर दिए गए. वहीं दूसरी ओर, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए याचिका को गलत करार दिया.

लेखी ने कहा कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत शिकायत निवारण तंत्र मौजूद है और यदि आधार उपलब्ध नहीं है तो वैकल्पिक दस्तावेज भी तो प्रस्तुत किए जा सकते हैं. उन्होंने कहा, हमने स्पष्ट रूप से कहा है कि चाहे आधार हो या न हो, किसी को भी भोजन के अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा. अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी किया और 2018 से लंबित याचिका के संबंध में चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा. गोंसाल्विस ने उन स्थितियों का हवाला दिया, जहां आदिवासी क्षेत्रों में फिंगरप्रिंट या आइरिस स्कैनर काम नहीं करते हैं.