पेगासस आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने विशेषज्ञ पैनल का गठन किया (लीड-1)
पेगासस आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने विशेषज्ञ पैनल का गठन किया (लीड-1)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले में स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पेगासस जासूसी केस की जांच तीन सदस्यीय समिति करेगी।शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि सच्चाई का पता लगाने के लिए उसे इस मुद्दे को उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि लोगों की जासूसी किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है और जांच करने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया है।
इस समिति की निगरानी शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. वी. रवींद्रन करेंगे, जिन्हें पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और डॉ. संदीप ओबेरॉय द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।
प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत का प्रयास राजनीतिक चक्कर में पड़े बिना, कानून के शासन को बनाए रखना है। उन्होंने देश के नागरिकों पर पेगासस के कथित उपयोग को गंभीर चिंता का विषय बताया।
पीठ में सीजेआई रमना के अलावा न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल रहे। पीठ ने कहा कि जहां प्रौद्योगिकी लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक उपयोगी उपकरण है, वहीं इसका इस्तेमाल किसी व्यक्ति की निजता को भंग करने के लिए नहीं किया जा सकता है।
पीठ ने आगे कहा, गोपनीयता पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की एकमात्र चिंता नहीं है। भारत के प्रत्येक नागरिक को गोपनीयता के उल्लंघन के खिलाफ संरक्षित किया जाना चाहिए। यह अपेक्षा है, जो हमें अपने पंसद, स्वतंत्रता और स्वाधीनता का प्रयोग करने में सक्षम बनाती है।
इससे पहले सीजेआई रमना, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने 13 सितंबर को मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह केवल यह जानना चाहती है कि क्या केंद्र ने नागरिकों की कथित जासूसी के लिए अवैध तरीके से पेगासस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया या नहीं?
पीठ ने मौखिक टिप्पणी की थी कि वह मामले की जांच के लिए तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन करेगी।
वहीं इस मामले में केंद्र ने तर्क दिया था कि पेगासस स्पाइवेयर के उपयोग पर विवरण का खुलासा करने से राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे शामिल हैं, क्योंकि उसने किसी भी विवरण को प्रकट करने से इनकार कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि केवल राज्य द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ाने से वह इस मुद्दे को उठाने से नहीं रोकेगा। पीठ ने कहा कि केंद्र ने एक सीमित हलफनामा दायर किया, जिसमें बार-बार यह कहने के बावजूद कि अदालत को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है, कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ।
पीठ ने जोर देकर कहा, हम सूचना के युग में रहते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण है, लेकिन निजता के अधिकार की रक्षा करना और भी महत्वपूर्ण है। पीठ ने आगे कहा, न केवल पत्रकार और अन्य, बल्कि गोपनीयता सभी नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण है।
8 सप्ताह के बाद मामले पर आगे की सुनवाई होगी।
अदालत ने कहा, निजता के अधिकार में हस्तक्षेप तभी होना चाहिए जब वह आनुपातिक हो और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं हितों की रक्षा के लिए नितांत आवश्यक हो। राज्य को राष्ट्रीय हितों की रक्षा और नागरिकों की निजता के उल्लंघन के के बीच संतुलन हासिल करने का प्रयास करना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने केंद्र की इस आशंका को खारिज करते हुए कहा कि पेगासस मुद्दे पर किसी भी खुलासे से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होगी, शीर्ष अदालत ने कहा, प्रतिवादी संघ द्वारा दायर किए गए सीमित हलफनामे में केवल एक सर्वव्यापी और अस्पष्ट इनकार है, जो पर्याप्त नहीं हो सकता है।
पत्रकारिता की स्वतंत्रता के संरक्षण के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा कि स्टेट को ऐसा माहौल नहीं बनाना चाहिए जिसका प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रभाव हो, जो प्रेस की महत्वपूर्ण सार्वजनिक-प्रहरी भूमिका पर हमला है।
अदालत के आदेश के अनुसार, न्यायमूर्ति रवींद्रन तकनीकी समिति के कामकाज की देखरेख करेंगे और उन्हें आलोक जोशी, पूर्व आईपीएस अधिकारी और डॉ. संदीप ओबेरॉय, अध्यक्ष, उप समिति (अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन/अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग/संयुक्त तकनीकी समिति) द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।
तकनीकी समिति के तीन सदस्य हैं - डॉ. नवीन कुमार चौधरी, प्रोफेसर (साइबर सुरक्षा और डिजिटल फोरेंसिक) और डीन, राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गांधीनगर, गुजरात; डॉ. प्रभारण पी., प्रोफेसर (इंजीनियरिंग स्कूल), अमृता विश्व विद्यापीठम, अमृतापुरी, केरल; और डॉ अश्विन अनिल गुमस्ते, इंस्टीट्यूट चेयर एसोसिएट प्रोफेसर (कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे, महाराष्ट्र।
पीठ ने समिति को अपनी रिपोर्ट तेजी से जमा करने का निर्देश दिया और मामले को आठ सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए निर्धारित किया।
शीर्ष अदालत का आदेश वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और शशि कुमार, एडिटर्स गिल्ड और अन्य व्यक्तियों की याचिकाओं पर सामने आया है, जिन्होंने कथित जासूसी का शिकार होने का दावा किया है।
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