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फाइल फोटो
गुजरात में गिर का जंगल पूरे विश्व में शेर के लिए प्रसिद्ध है काफी संख्या में यहां शेर पाए जाते हैं. लेकिन भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने गिर के जंगल से संबंधित चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की है. वैज्ञानिकों के मुताबिक शेर अपना प्राकृतिक स्वभाव छोड़कर अब मनुष्य पर निर्भर होता हुआ नजर आ रहा है. देश के जाने माने वैज्ञानिक और भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ वाई वी झाला का कहना है कि गिर के जंगल में नेशनल पार्क के भीतर जो शेर मौजूद है, उनमें महज 20 फीसदी शेर ही प्राकृतिक रूप से शिकार कर रहे हैं.
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वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ वाई वी झाला का कहना है कि प्रकृति ने शेर को इस तरह का बनाया है कि वह जंगल में चीतल, हिरण और सांभर जैसे अन्य वन्यजीवों का शिकार करके अपना भरण-पोषण करें, लेकिन गिर के जंगल की रिपोर्ट्स में यह सामने देखने को मिला है कि गिर में करीब 70 से 80 फीसदी शेर मनुष्यों के मवेशियों का शिकार कर रहे हैं या मरे हुए जानवरों का मांस खा रहे हैं. इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि शेर अपने प्राकृतिक परिवेश को भूल रहे हैं और जंगल की चुनौतियां के लिए कमजोर हो रहे हैं.
डॉ झाला का कहना है कि गिर के जंगल में पर्याप्त क्षेत्रफल ना होने के चलते भी शेर ऐसा कर रहे हैं. नेशनल पार्क में सिर्फ 15 से 16 शेर ही रह सकते हैं. ऐसे में पार्क की जगह कम होने के चलते रिजर्व फॉरेस्ट से बाहर भी शेर भोजन की तलाश कर रहे हैं और सॉफ्ट टारगेट के रूप में वे पालतू मवेशियों और मरे हुए जानवरों का शिकार कर रहे हैं, जो कहीं ना कहीं चिंताजनक है और शेर की ग्रोथ को लेकर भी काफी चिंताजनक है.
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भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि जिस तरह कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के पास एक बहुत बड़ा क्षेत्रफल मौजूद है और पर्याप्त संख्या में जानवर भी शिकार के लिए मौजूद हैं. ऐसे में वे अपने प्राकृतिक स्वभाव के अनुसार ही अपना शिकार करते हैं, लेकिन गिर के जंगल में ठीक इसके विपरीत हो रहा है. मनुष्य की ओर शेर के बढ़ते आकर्षण शेर के अस्तित्व के लिए भी खतरनाक है. क्योंकि रिजर्व फॉरेस्ट में शेर सुरक्षित रह सकते हैं और वन्यजीव तस्करों से भी उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं होती है. लेकिन इस तरह मनुष्यों पर निर्भर होने के चलते शेरों की संख्या बढ़ना भी मुश्किल नजर आता है.
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