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भोपाल के एमसीयू में छात्र पढ़ेंगे बाल अधिकारों के बारे में

भोपाल के एमसीयू में छात्र पढ़ेंगे बाल अधिकारों के बारे में

Updated on: 19 Nov 2021, 01:10 AM

भोपाल 18 नवंबर:

मध्य प्रदेश की राजधानी के माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को बाल अधिकारों के बारे में भी पढ़ाया जाएगा, ताकि बाल अधिकारों के प्रति मीडिया की भूमिका को बढ़ाया जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस (20 नवंबर) और बाल अधिकार संरक्षण सप्ताह के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय और यूनिसेफ ने मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यक्रम में पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति केजी सुरेश ने कहा कि बाल अधिकारों के प्रति मीडिया की भूमिका को बढ़ाने के लिए पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में बाल अधिकारों को शामिल किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम तैयार करने लिए विश्वविद्यालय प्रशासन, महिला एवं बाल विकास विभाग और यूनिसेफ के प्रतिनिधि मिल कर विमर्श करेंगे।

बाल अधिकार और मीडिया विषय पर आयोजित इस कार्यशाला में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि कोविड 19 महामारी के दौरान अध्ययन जरूर बंद था लेकिन विश्वविद्यालय ने स्वास्थ्य सम्बन्धित मुद्दों पर जागरूकता के लिए अनेक वेबिनार और कार्यक्रम आयोजित किए।

विश्वविद्यालय को पत्रकार और समाज के बीच सेतु बताते हुए प्रो. सुरेश ने कहा कि पत्रकारिता का अंतिम लक्ष्य व्यवहार परिवर्तन है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को यूं तो बाल अधिकारों के बारे में पढ़ाया जाता है लेकिन अब बाल अधिकारों को व्यवस्थित रूप से पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा।

कार्यक्रम में बतौर विशेष अतिथि मौजूद महिला एवं बाल विकास विभाग के अतिरिक्त संचालक विशाल नाडकर्णी ने कहा कि बच्चों के लिए कोरोना काल बड़ी मुसीबत साबित हुआ है। विभाग ने बच्चों को राहत पहुंचाने का हर संभव प्रयास किया है। प्रदेश में मुख्यमंत्री कोविड-19 बाल सेवा योजना में कोरोना काल में माता-पिता को खो देने वाले बच्चों की आर्थिक सहायता के साथ उन्हें नि:शुल्क शिक्षा और नि:शुल्क राशन दिए जाने का प्रावधान किया गया है।

बाल अधिकार विशेषज्ञ के रूप में मौजूद मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान ने बाल अधिकारों पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि आयोग ने बच्चों अधिकारों के मामलों को गंभीरता से सुना है। यही कारण है कि प्रदेश में बाल अधिकारों के उल्लंघन की लंबित शिकायतों की संख्या 100 से भी कम है। उन्होंने कहा कि मीडिया को बाल अधिकारों के उल्लंघन और शोषण के मामलों की रिपोटिर्ंग संवेदनशीलता और जिम्मेदारी से काम करना चाहिए।

यूनिसेफ के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी ने बाल अधिकारों और उनसे जुड़े कानूनों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पाक्सो और जेजे एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि बाल अधिकार उल्लंघन या शोषण की खबरों में किसी भी तरह से बच्चे की पहचान उजागर करना अपराध है। यहां तक कि नवजात शिशुओं के लिए मां के दूध के विकल्प के रूप में किसी भी सामग्री का प्रचार प्रसार भी अपराध है। यदि किसी को ऐसी जानकारी मिलती है तो उसे तुरंत प्रशासन की जानकारी में लाना चाहिए।

कार्यशाला में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने सुझाव दिया कि सरकार की ओर से बच्चों को दी जाने वाली कॉपियों में बाल अधिकारों को प्रकाशित करना चाहिए। इसी तरह पाठ्यपुस्तकों में चाइल्ड हेल्प लाइन के नंबर प्रकाशित करना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

कार्यशाला का संचालन विश्वविद्यालय के कुलसचिव अविनाश वाजपेयी ने किया।

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