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पाकिस्तान के मुल्ला और सैन्य की सांठगांठ का परिणाम है 26/11 का हमला

अंतर्राष्ट्रीय और बहुपक्षीय मंचों पर पाकिस्तान के कई बार आतंकवादी समूहों के साथ घनिष्ठ संबंध साबित हुए हैं. सबसे प्रमुख तब था, जब अमेरिकी सेनाओं ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में उसके ठिकाने से मार गिराया था, जहां उसे पाकिस्तानी सेना और खुफिया विभा

Updated on: 26 Nov 2020, 11:54 PM

नई दिल्ली:

मुंबई में 2008 के आतंकवादी हमलों की गुरुवार को 12वीं वर्षगांठ है, जिसे 26/11 के नाम से भी जाना जाता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर कोई जानता है कि पाकिस्तान से आए दस लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के 10 आतंकवादियों ने मुंबई में कहर बरपाया था. यह आतंकवादी समुद्र के रास्ते मुंबई पहुंचे और इन्होंने 60 घंटों तक चले नरसंहार में कई जगहों पर गोलीबारी की और लोगों को बंधक बनाया. आतंकियों ने की गोलीबारी में 18 सुरक्षाकर्मियों सहित 166 लोगों की जान चली गई.

पाकिस्तान के सर्वोच्च जांच संगठन फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एफआईए) ने कबूल किया कि 26/11 के मुंबई हमलों में शामिल आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे. भारत का पश्चिमी पड़ोसी पाकिस्तान इस्लामिक आतंकवादियों का केंद्र बन गया है, जो इसे भारत के खिलाफ और अफगानिस्तान के खिलाफ एक राष्ट्र नीति के रूप में उपयोग करता है. अंतर्राष्ट्रीय और बहुपक्षीय मंचों पर पाकिस्तान के कई बार आतंकवादी समूहों के साथ घनिष्ठ संबंध साबित हुए हैं. सबसे प्रमुख तब था, जब अमेरिकी सेनाओं ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में उसके ठिकाने से मार गिराया था, जहां उसे पाकिस्तानी सेना और खुफिया विभाग द्वारा एक सुरक्षित स्थान पर रखा गया था.

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से कट्टरपंथी इस्लाम का सबसे बड़ा शिकार रहा है. पाकिस्तान ने अपनी उपस्थिति एक दुष्ट राष्ट्र के तौर पर साबित की है, जिसका अस्तित्व धर्म के आधार पर ही टिका हुआ है. भारत में दुनिया में मुसलमानों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, लेकिन देश के बहुसंख्यक हिंदुओं और अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच सामंजस्य और धर्म को राष्ट्र की नीति के रूप में उपयोग नहीं करने के कारण संबंध फिर भी सामंजस्यपूर्ण रहे हैं. इसका श्रेय भारत के मुसलमानों को भी जाता है, जिनमें से अधिकांश इस्लाम के सूफ वर्जन को अपनाते हैं.

वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस्लाम हावी है. पाकिस्तान अपने संबंधित आतंकी नेटवर्क के साथ, इस्लाम के नाम पर फंड इकट्ठा करता है और हिंसक गतिविधियों के लिए दान का भी इस्तेमाल करता है. हरकत-उल-मुजाहिदीन और जमात-उल-फुरकान, जो कि टीटीपी और अलकायदा से जुड़े दो प्रतिबंधित आतंकी संगठन हैं, उन्होंने खुद को दान के तौर पर ही स्थापित किया है. ये संगठन पाकिस्तानी मुसलमानों की उदारता का लाभ उठाते हैं, जो सालाना जकात और फितरा के हिस्से के रूप में अरबों रुपये का योगदान करते हैं. इनमें भोजन या धनराशि से जुड़े उपहार शामिल रहते हैं.

इन फंड्स का उपयोग डावा (उपदेश) और जिहाद के लिए किया जाता है, जिसमें आतंक के लिए भर्ती, प्रशिक्षण, उपकरण और हथियारों की खरीद शामिल है. हालांकि, कट्टरपंथी इस्लाम ने पाकिस्तान के प्रभाव और कई मदरसों की उपस्थिति के कारण भारतीय मुसलमानों के एक वर्ग के बीच भारत में भी लोकप्रियता हासिल की है, जो कि इस्लाम के वहाबी वर्जन (संस्करण) का प्रचार करते हैं.

एक विचारधारा के रूप में कट्टरपंथी इस्लाम एक या दो देशों के लिए नहीं बल्कि एक पूरी सभ्यता के लिए खतरा है और इसे उदार लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए भी खतरा माना जाता है, जो कई राष्ट्रों ने समय के साथ अपनाए हैं. यह विचारधारा एक सार्वभौमिक यूटोपियन अधिनायकवादी राष्ट्र में विश्वास करती है, जिसे ओम्मा कहा जाता है, जहां मुसलमान शासन करेंगे और अन्य धर्मों से संबंधित लोगों को या तो नष्ट कर दिया जाएगा या उन्हें तथाकथित यूटोपियन राष्ट्र में द्वितीय श्रेणी के नागरिकों के रूप में रहने के लिए छोड़ दिया जाएगा.

यह एक वैश्विक समस्या है, क्योंकि कई आतंकवादी संगठन इस वर्जन में विश्वास करते हैं. इस विचारधारा को मानने वाले कई बड़े आतंकी संगठन विश्वभर में मौजूद हैं, जिनमें आईएसआईएस, अलकायदा, अल शबाब, जेईएम, एलईएल या सिमी जैसे संगठन प्रमुख हैं. इनमें से कई संगठनों को भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए पाकिस्तानी प्रतिष्ठान द्वारा सक्रिय रूप से समर्थन दिया जाता है. इसी के तहत 2001 में भारत में संसद हमला, अक्षरधाम मंदिर हमला, जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला, 26/11 मुंबई हमला जैसी घटनाओं के साथ ही दिल्ली, वाराणसी और रामपुर में हुए धमाके किए गए थे. इसके अलावा भी पाकिस्तान प्रायोजित कई हिंसक घटनाएं देखने को मिलती रहती हैं.

पाकिस्तान न केवल एक असफल देश है, जिसकी अपनी खुद की समस्याएं ही खत्म नहीं होती हैं, बल्कि वह आतंकवाद का केंद्र भी है. पाकिस्तान अपने नागरिकों को बुनियादी आर्थिक और सामाजिक न्याय प्रदान करने में भी विफल रहा है. अपनी स्थिति को सुधारने के बजाय पाकिस्तानी सेना और वहां की जासूसी एजेंसी आईएसआई इन जिहादी समूहों का इस्तेमाल अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए करती रही है. निष्कर्ष निकाला जाए तो कहा जा सकता है कि आतंकवाद मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जहां जिहाद के नाम पर निर्दोष लोगों की जान ले ली जाती है और इस काम में पाकिस्तान वर्षों से लिप्त है.