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तमिलनाडु: पलानिसामी को अस्थाई राहत, बड़ी बेंच भेजा जाएगा विधायकों की सदस्यता रद्द करने का मामला

तमिलनाडु के 18 विधायकों की सदस्यता रद्द करने के मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया। कोर्ट की दो जजों की बेंच ने विभाजित फैसला दिया।

Updated on: 15 Jun 2018, 07:51 AM

नई दिल्ली:

मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सरकार को राहत देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने गुरुवार को बागी 18 विधायकों की अयोग्यता के मामले में खंडित फैसला सुनाया।

मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी ने तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष पी धनपाल द्वारा 18 विधायकों को अयोग्य करार देने के आदेश को बरकरार रखा, जबकि उनके साथ न्यायमूर्ति एम सुंदर ने अध्यक्ष के फैसले को अवैध करार दिया।

न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा कि फैसलों में विरोधाभास के मद्देनजर मामले को अब तीसरे न्यायाधीश के पास भेजा जाएगा। प्रधान न्यायाधीश ने स्पष्ट कर दिया कि वह तीसरे न्यायाधीश पर फैसला नहीं करेंगी और फैसला वरिष्ठ न्यायाधीश द्वारा लिया जाएगा। यह वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलुवडी रमेश हो सकते हैं।

स्थिति को बनाए रखते हुए अदालत ने यह भी कहा कि जब तक मामले पर अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक उपचुनाव पर प्रतिबंध और विधानसभा में शक्ति परीक्षण पर रोक लगाने वाला अंतरिम आदेश वैध रहेगा।

फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए बागी नेता टी टी वी दिनाकरण ने कहा, 'जन विरोधी सरकार का कार्यकाल कुछ महीनों के लिए और बढ़ गया। यह हमारे लिए कोई धक्का नहीं है। हमने 50 फीसदी जीत हासिल कर ली है।'

प्रधान न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि अध्यक्ष के निर्णय को अतर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता और अदालत को उसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है।

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वहीं दूसरी तरफ, न्यायामूर्ति सुंदर ने कहा कि वह प्रधान न्यायाधीश से अलग राय रखते हैं और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उच्च न्यायालय उस वक्त अध्यक्ष के फैसले में हस्तक्षेप कर सकता है, जब वह फैसला कानून की सीमाओं के बाहर हो।

अगर अयोग्यता को बरकरार रखने या अध्यक्ष के आदेश को अलग करने का फैसला आता है तो अन्नाद्रमुक सरकार को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

अगर अदालत अयोग्यता को बरकरार रखती है तो 18 निर्वाचन क्षेत्रों में उप-चुनाव होंगे। अगर द्रमुक सभी उपचुनाव में जीत हासिल करती है तो सरकार अल्पमत में आ जाएगी।

दूसरी तरफ, अगर अदालत अध्यक्ष द्वारा अयोग्यता के आदेश को रद्द कर देती है, तब भी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ सकता है, अगर द्रमुक सदन में प्रस्ताव लाती है तो।

सत्तारूढ़ दल को अब दिनाकरन धड़े में शामिल 18 विधायकों से जीतने की कोशिश करनी होगी।

तमिलनाडु की 234 सदस्यीय विधानसभा में अन्नाद्रमुक के 116 सदस्य, द्रमुक के 89, कांग्रेस के आठ, आईयूएमएल से एक, एक निर्दलीय, अध्यक्ष और 18 सीटें खाली हैं। इसके अलावा सदन में एक नामित सदस्य भी है।

पीएमके के संस्थापक एस. रामदौस ने कहा कि राज्य सरकार मुख्य रूप से कानूनी देरी और अन्य लोगों के कारण बची हुई है और के. पलानीस्वामी सरकार के पास सत्ता में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है उसे तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए।

तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष धनपाल ने राज्यपाल से मिलने के बाद 18 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था और मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी के बहुमत खोने को चिंता व्यक्त करते हुए एक ज्ञापन सौंपा था। धनपाल ने राज्यपाल से एक नया मुख्यमंत्री नियुक्त करने का भी अनुरोध किया था।

अध्यक्ष की कार्रवाई के खिलाफ अयोग्य विधायकों ने सितंबर, 2017 में मामला दाखिल किया था, जो उच्च न्यायालय के समक्ष तभी से लंबित है। अदालत ने 24 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था।

तमिलनाडु के वकील जनरल विजय नारायणन ने फैसले से कुछ घंटे पहले पलानीस्वामी से मुलाकात की थी।

अयोग्य घोषित किए गए विधायकों के नाम थंगा तमिल सेलवन, आर मुरुगन, मारियुप कन्नेडी, के काथीरकमू, सी जयंती पद्मनाभन, पी पलानीअप्पन, वी सेंथिल बालाजी, सी मुथैया, पी वेत्रिवेल, एन जी पार्थीबन, एम कोठांदपाणि, टी ए एलुमलै, एम रंगासामी, आर थंगादुराई, आर बालासुब्रमणि, एस जी सुब्रमण्यम, आर सुंदरराज और के उमा महेरी शामिल हैं।

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