तालिबान राजः कश्मीर ही नहीं बांग्लादेश से भी भारत के लिए खतरा बढ़ा
बांग्लादेश (Bangladesh) में तालिबान राज से आतंकी संगठन जमात ए मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) को सिर उठाने में मदद मिल सकती है.
highlights
- तालिबान राज से जमात ए मुजाहिदीन बांग्लादेश फिर सिर उठाएगा
- बर्बर इस्लामिक कानूनों का बड़ा पैरोकार है यह आतंकी संगठन
- इस लिहाज से बांग्लादेश के रास्ते भी आतंक का खतरा बढ़ा
नई दिल्ली:
लगभग दो दशकों बाद अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान राज की वापसी पर कई देशों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच आई हैं. इनमें अमेरिका समेत भारत प्रमुख हैं. सामरिक मामलों के जानकार मान रहे हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) के शासन से सिर्फ कश्मीर से ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश की तरफ से भी भारत (India) के लिए खतरा बढ़ गया है. एक तरफ तो पाकिस्तान (Pakistan) तालिबान की मदद से भारत के लिए साजिश रचने में कोई परहेज नहीं करेगा. दूसरी तरफ बांग्लादेश (Bangladesh) में तालिबान राज से आतंकी संगठन जमात ए मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) को सिर उठाने में मदद मिल सकती है. गौरतलब है कि जुलाई में ही पूर्वी कोलकाता से पुलिस ने जेएमबी से कथित जुड़ाव के चलते तीन बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा था
अफगान युद्ध से जुड़ी हैं जेएमबी की जड़ें
गौरतलब है कि जमात ए मुजाहिदीन की जड़ें अफगान युद्ध से जुड़ी हैं. अफगान लड़ाकों के ही प्रश्रय से जेएमबी का निर्माण हुआ था. इसी आतंकी संगठन ने इस सदी के पहले दशक में बांग्गादेश को आतंक की आग में झोंक दिया था. जेमबी का मकसद भी तालिबान से ही मिलता-जुलता है यानी दक्षिण एशिया में मध्ययुगीन काल की वापसी. दूसरे शब्दों में कहें तो शरिया और इस्लामिक कानूनों को कट्टरता के साथ लागू करना. ऐसे में जेएमबी को तालिबान राज से फिर से खाद-पानी मिलने की संभावना बढ़ गई है. कहना सही होगा कि भारत समेत बांग्लादेश के लिए यह बहुत बड़ी चिंता की बात है.
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जेएमबी बांग्लादेश का चाहता है अफगानिस्तान बनाना
सामरिक जानकारों के मुताबिक जेएमबी के संस्थापक और अफगान युद्ध में लड़ चुके शेख अब्दुल रहमान को 2007 में बांग्लादेश में मार दिया गया था. फिर संगठन का नेतृत्व संभालने वाले मौलाना सैदुर रहमान को तीन साल बाद जेल की सजा हुई थी. अब सलाहुद्दीन अहमद संगठन की कमान संभाल रहा है और उसके भारत-बांग्लादेश सीमा के क्षेत्र में छिपे होने की आशंका है. गौरतलब है कि ऐसा खबरें सामने आई थीं कि 1990 के दशक में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में तालिबान ने लड़ाकों को शामिल किया था. इन बांग्लादेशी मूल के आतंकियों ने बीते पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथी विचारों को और विस्तार ही दिया है. उन दिनों इन लड़ाकों की अफगानिस्तान से वापसी पर बांग्लादेश की सड़कों पर सशस्त्र प्रदर्शन आम थे. इनमें नारे लगाते थे- 'आमरा सोबै होबो तालिबान, बांग्ला होबे अफगानिस्तान.' इसका अर्थ होता था कि हम सब तालिबान में शामिल होंगे, बांग्लादेश अफगानिस्तान बन जाएगा.
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अफगान लड़ाकों की वापसी बनेगी भारत-बांग्लादेश के लिए चिंता
अफगानिस्तान में हालिया घटनाक्रम को रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों ने अपनी-अपनी रिपोर्ट में बताया है कि काबुल को घेरने वाली तालिबान लड़ाकों की फौज में विदेशी चेहरों की उपस्थिति भी देखी गई है. पूर्व भारतीय राजदूत और लेखक राजीव डोगरा ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा दुनियाभर से आए विदेशी लड़ाके तालिबान में शामिल हैं. ऐसे में डर है कि वह जब लौटेंगे तो चरमपंथी विचारधारा भी अपने साथ वापस घर लाएंगे. यानी अफगान युद्ध समाप्त होने के बाद यह लड़ाके अपने मूल देश लौट कर स्थानीय असंतुष्ट चरमपंथियों की विचारधारा के प्रचार-प्रसार में ही मदद करेंगे.
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