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पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ( फाइल फोटो)
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1980 के दशक भारतीय राजनीति में तूफान मचाने वाले बोफोर्स घोटाले को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है।
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ( फाइल फोटो)
1980 के दशक भारतीय राजनीति में तूफान मचाने वाले बोफोर्स घोटाले को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। स्वीडन ने बोफोर्स घोटाले की जांच को इसलिए बंद कर दिया था ताकि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को शर्मिंदगी ना उठानी पड़े।
ये खुलासा अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA की उस रिपोर्ट से हुआ है जिसे हाल ही में सीआईए ने गुप्त सूची से हटाया है।
रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि उस वक्त प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी की स्टॉकहोम यात्रा के बाद साल 1988 में स्वीडन ने बोफोर्स मामले की जांच पर पूरी तरह विराम लगा दिया था। इस घोटाले में स्वीडन की कंपनियों के अधिकारियों के खिलाफ भी जांच हो रही थी।
भारतीय सेना के लिए खरीदे जाने वाले बोफोर्स तोप के लिए स्वीडन की कंपनी बोफोर्स पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी समेत कई लोगों को पैसे देने के आरोप लगे थे। हालांकि 2004 में कोर्ट ने कहा था कि बोफोर्स घोटाले में राजीव गांधी के घूस लेने का कोई भी सबूत नहीं है।
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सीआईए के रिपोर्ट के मुताबिक स्वीडन ने जांच सिर्फ इसलिए बंद कर दिया था ताकि भारतीय अधिकारियों के घूस लेने की बात साबित होने के बाद उस वक्त प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी को शर्मिंदगी ना हो।
सीआईए के रिपोर्ट के मुताबिक साल 1987 में हुए ऑडिट से इस बात की जानकारी मिली थी कि बोफोर्स घोटाले में लगभग 4 करोड़ डॉलर्स बतौर घूस बिचौलियों को दिए गए थे।
केंद्र सरकार ने भारतीय सेना को तोपों से लैस करने के लिए करीब 120 करोड़ डॉलर की लागत से बोफोर्स कंपनी से तोपों का सौदा किया था। लेकिन सौदे में घोटाला सामने आने के बाद सरकार ने इस डील को बीच में ही रद्द कर दिया था।
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सीआईए की रिपोर्ट में कहा गया है कि रिश्वत की बात लीक हो जाने के बाद प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी को और तोपों की आपूर्ति करने वाली कंपनी को इसकी वजह से कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े इसलिए दोनों पक्षों ने एक दूसरे की बात मानी जिसके बाद जांच को बंद कर दिया गया था।
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Source : News Nation Bureau