स्वदेशी का अर्थ है - अपने देश का, इस रणनीति के अन्तर्गत ब्रिटेन में बने माल का बहिष्कार करना तथा भारत में बने माल का अधिकाधिक प्रयोग करके ब्रिटेन को आर्थिक हानि पहुंचाना और भारत के लोगों के लिये रोज़गार सृजन करना था। स्वदेशी आन्दोलन (Swadeshi movement), महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के स्वतन्त्रता आन्दोलन का केन्द्र बिन्दु था। उन्होंने इसे स्वराज की आत्मा भी कहा था। बात 1903 की है जब दिसंबर महीने में एक बात पूरे देश में आग की तरह फैल गई। बात यह थी कि बंगाल का विभाजन किया जा रहा था। बात फैलते ही लोगों ने अलग-अलग जगह बैठकें करनी शुरू कर दी।
ढ़ाका और चेटगांव में कई बैठकें हुई। उस वक्त के बंगाल के नेताओं ने इस खबर की आलोचना की। सुरेंद्रनाथ बनर्जी, कृष्ण कुमार मिश्र समेत कई लोगों ने उस वक्त के अखबार 'हितवादी' और 'संजीवनी' में कई लेख बंगाल विभाजन के खिलाफ लिखा।
हर तरफ हो रही विरोध करते हुए सरकार ने इसके पीछे तर्क दिया कि बंगाल की विशाल आबादी के कारण प्रशासन का सुचारू रूप से संचालन कठिन हो गया है। ब्रितानियां हुकूमत के इस फैसले के बाद देश भर में विरोध तेज हो गय़ा।
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7 अगस्त 1905 को कोलकाता के 'टाउन हाल' में 'स्वदेशी आंदोलन' की घोषणा की गई तथा 'बहिष्कार प्रस्ताव' पास किया गया। इसके पश्चात राष्ट्रवादी नेताओं ने बंगाल के विभिन्न भागों का दौरा किया तथा लोगों से मैनचेस्टर के कपड़ों और लिवरपूल के बने नमक का बहिष्कार करने का आग्रह किया।
जल्द ही यह विरोध प्रदर्शन बंगाल से निकलकर भारत के अन्य भागों में भी फैल गया। बंबई में इस आंदोलन का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक ने किया जबकि पंजाब में लाल लाजपत राय एवं अजीत सिंह ने वहीं दिल्ली में सैय्यद हैदर रजा एवं मद्रास में चिदम्बरम पिल्लई ने आंदोलन का नेतृत्व प्रदान किया।
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स्वदेशी आंदोलन अपने तात्कालिक लक्ष्यों को पाने में असफल रहा क्योंकि इससे बंगाल विभाजन नहीं रुका मगर इसके दूरगामी लाभ निश्चित रूप से मिले। उदाहरण के लिए, भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिला तथा विदेशी वस्तुओं के आयात में कमी आई। ब्रिटिश सरकार ने जब आंदोलन का दमन करना चाहा तो उग्र राष्ट्रीयता की भावना का उदय हुआ।
स्वदेशी आंदोलन के लक्ष्यों की प्राप्ति के सम्बन्ध में महात्मा गांधी ने कहा कि 'भारत का वास्तविक शासन बंगाल विभाजन के उपरांत शुरू हुआ। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र-उद्योग, शिक्षा, संस्कृति, साहित्य और फैशन में स्वदेशी की भावना का संचार हुआ। हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के किसी भी चरण में इतनी अधिक सांस्कृतिक जागृति देखने को नहीं मिलती, जितनी की स्वदेशी आंदोलन के दौरान।'
Source : Sankalp Thakur