सुषमा स्वराज ने लंबे राजनीतिक जीवन में कई यादगार और ओजमयी भाषण दिए, जिनकी लोग अकसर चर्चा करते रहते हैं. 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जब गिरी थी, तब सुषमा स्वराज ने ओजस्वी भाषण से विरोधियों को चित्त कर दिया था. 11.06.1996 को सुषमा स्वराज के उस भाषण को आज भी याद किया जाता है. उस भाषण के कुछ अंश पढ़िए:
“मैं यहां विश्वासमत का समर्थन करने के लिए खड़ी हुई हूं. अध्यक्ष जी, ये इतिहास में पहली बार नहीं हुआ है, जब राज्य का सही अधिकारी राज्याधिकार से वंचित कर दिया गया हो. त्रेतायुग में यही घटना राम के साथ घटी थी. राजतिलक करते-करते उन्हें वनवास दे दिया गया था. द्वापर में यही घटना धर्मराज युद्धिष्ठिर के साथ घटी थी, जब धुर्त शकुनी की दुष्ट चालों ने राज्य के अधिकारी को राज्य से बाहर कर दिया था.
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अध्यक्ष जी, जब एक मंथरा और एक शकुनी, राम और युद्धिष्ठिर जैसे महापुरुषों को सत्ता से बाहर कर सकते हैं तो हमारे खिलाफ तो कितनी मंथराएं और कितने शकुनी सक्रिय हैं. हम राज्य में बने कैसे रह सकते थे? अध्यक्ष जी, शायद रामराज और स्वराज की नियति यही है कि वो एक बड़े झटके के बाद मिलता है और इसीलिए मैं पूरे विश्वास से कहना चाहती हूं कि जिस दिन 28 तारीख को दोपहर मेरे आदरणीय नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सदन में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा की थी, उस दिन हिन्दुस्तान में रामराज की भूमिका तैयार हो गई थी. हिंदुस्तान में उस दिन स्वराज की नीव पड़ गई थी.
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अध्यक्ष जी, हम सांप्रदायिक हैं. हां, हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि हम वंदे मातरम् गाने की वकालत करते हैं. हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि हम राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान के लिए लड़ते हैं. हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि हम धारा 370 को खत्म करने की मांग करते हैं. हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि हम हिंदुस्तान में गो रक्षा की वकालत करते हैं. हां, अध्यक्ष जी हम सांप्रदायिक हैं क्योंकि हम हिंदुस्तान में समान नागरिक संहिता बनाने की बात करते हैं. अध्यक्ष जी ये सब लोग हैं, ये धर्मनिरपेक्ष हैं, दिल्ली की सड़कों पर 3000 सिखों का कत्ल-ए-आम करने वाले.”
Source : News Nation Bureau