देश के सबसे विवादित मुद्दों में से एक ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुबह अपना फैसला सुना दिया है। चीफ जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच सुबह 10.30 बजे फैसला दिया है। इसमें 3:2 से मेजोरिटी फैसले में ट्रिपल तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक करार दिया गया है।
केंद्र सरकार में काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाती रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी बीजेपी ने इस मुद्दे को उठाया था। पूरे देश की पिछले कई सालों से इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निगाहें अटकी हुई थी।
इस दौरान हम आपको बताने जा रहे हैं कब क्या हुआ और कैसे शुरू हुआ यह मामला:-
- 2014 के बाद दायर हुई कई याचिका
उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने 2016 सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर एकसाथ तीन तलाक कहने और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी।
बानो ने साथ ही मुस्लिमों की बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी थी। शायरा बानों ने डिसलूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेज ऐक्ट को भी यह कहते हुए चुनौती दी कि मुस्लिम महिलाओं को दो शादियों से बचाने में यह विफल रहा है। शायरा की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया कि इस तरह का तीन तलाक उनके संवैधानिक मूल अधिकार का उल्लंघन करता है और आर्टिकल 14 व 15 का उल्लंघन करता है।
इसके बाद कई अन्य याचिका दायर की गईं। शायरा बानो के मुकदमे का समर्थन करने कई संगठन सामने आए।
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की पैरवी करने वाले संगठन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) ने इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग का सहयोग मांगा।
बीएमएमए ने महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम को लिखे पत्र में कहा कि उसने अपने अभियान के पक्ष में 50,000 से अधिक हस्ताक्षर लिए हैं और सहयोग के लिए अलग-अलग प्रांतों के महिला आयोगों को भी लिख रहा हैं।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने कहा कि आयोग सुप्रीम कोर्ट में शायरा बानो के मुकदमे का समर्थन करेगा। देहरादून की रहने वाली शायरा ने 'तीन बार तलाक' के चलन को खत्म करने की सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है।
सहारनपुर की आतिया साबरी
तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली एक और पिड़िता थी सहारनपुर की आतिया साबरी। अतिया की शादी 2012 में पास के जसोद्दरपुर गांव निवासी सईद हसन के बेटे वाजिद से हुई थी।
अतिया के दो बेटी होने के बाद उनके पति ने कागज पर तीन बार तलाक लिखकर उनसे संबंध खत्म कर लिए थे। मदरसा दारुल उलूम देवबंद ने भी इस तलाक को वैध मानकर फतवा जारी किया था।
गुरुदास मित्रा की याचिका
इसके बाद गुरुदास मित्रा नाम के एक और व्यक्ति ने याचिका दायर की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दायर याचिका का निस्तारण करते हुए कहा, 'यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि लंबित याचिकाओं में आने वाला फैसला मौजूदा याचिका पर भी लागू होगा।'
Source : News Nation Bureau