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सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी 10 साल की रेप पीड़िता को गर्भपात कराने की इजाजत

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 10 साल की बलात्कार पीड़िता की गर्भपात कराने की याचिका को खारिज कर दिया।

Updated on: 28 Jul 2017, 09:41 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 10 साल की बलात्कार पीड़िता की गर्भपात कराने की याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि अब बहुत देर हो चुकी है। गर्भपात कराने पीड़िता की जान को खतरा हो सकता है। पीड़िता 32 सप्ताह की गर्भवती है। इस मामले की सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला सुनाया।

गर्भवती बच्ची के परीक्षण के लिए चंडीगढ़ के पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) में मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था। इसके मुताबिक, गर्भपात से पीड़िता के जीवन को खतरा हो सकता है।

रिपोर्ट के आधार पर पीठ ने कहा, 'गर्भावस्था 32 सप्ताह की है। 10 वर्षीय बालिका के लिए यह बड़ा जोखिम है। यह प्रारंभिक गर्भावस्था नहीं है।' कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति देने के संबंध में बच्ची के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया था।

यह आदेश वकील आलोक श्रीवास्तव की याचिका पर आया है। उन्होंने पहले चंडीगढ़ की जिला अदालत में याचिका दायर की थी, जो 18 जुलाई को खारिज हो गई। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।

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याचिका खारिज करते हुए खंडपीठ ने कहा कि बच्ची को उचित देखभाल और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। यह भी कहा गया कि बच्चे के प्रसव के संबंध में चिकित्सक सर्वश्रेष्ठ विकल्प अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं।

याचिकाकर्ता ने 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971' के अधिनियम 3 में संशोधन की मांग की है, जिसके तहत 20 हफ्ते से ज्यादा समय के गर्भ को गिराया नहीं जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने तीन जुलाई को कोलकाता की 26 सप्ताह की एक गर्भवती महिला को गर्भपात की अनुमति हालांकि दे दी थी। न्यायालय ने यह अनुमति शहर के प्रमुख अस्पताल एसएसकेएम की उस रिपोर्ट के आधार पर दी थी, जिसमें कहा गया है कि भ्रूण गंभीर रूप से विकृत हो चुका है।

IANS के इनपुट के साथ

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