सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को शादी खत्म करने का सबसे घटिया तरीका बताया, पूछा- जो ख़ुदा की नजर में पाप, वो इंसानी कानून में वैध कैसे

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा , जो ख़ुदा की नजर में पाप, वो इंसान के बनाये कानून में वैध कैसे?

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Deepak Kumar
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सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को शादी खत्म करने का सबसे घटिया तरीका बताया, पूछा- जो ख़ुदा की नजर में पाप, वो इंसानी कानून में वैध कैसे

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को बताया घटिया तरीका

तीन तलाक़ पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा हैं कि जो खुदा की नजर में पाप हैं, वो इंसान के बनाये कानून में कैसे वैध हो सकता है।

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जस्टिस कुरियन जोसेफ ने ये टिप्पणी उस वक़्त की, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद कोर्ट में दलीले रख रहे थे। सलमान खुर्शीद ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की भी राय हैं कि ट्रिपल तलाक़ पाप हैं, लेकिन उसकी नजर में वो कानूनन वैध है।

इस पर जस्टिस कुरियन जोसेफ ने सवाल किया कि जो पाप है, वो  शरियत का हिस्सा कैसे हो सकता है। जो ईश्वर की नजर में पाप है वह इंसानों की ओर से बनाए गए कानून में कैसे वैध हो सकता है।

इस पर सलमान खुर्शीद ने कहा कि वो भी व्यक्तिगत तौर पर एक साथ तीन बार बोलकर दिए जाने वाले तलाक़ को पाप मानते हैं। हालांकि सलमान खुर्शीद ने बेंच से कहा कि इस मुद्दे की न्यायिक समीक्षा की जरूरत नहीं है और मुस्लिमों की शादी के निकाहनामे में एक शर्त डालकर महिलाएं तीन तलाक को ना भी कह सकती हैं।

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इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि भले ही इस्लाम की विभिन्न विचारधाराओं में तीन तलाक को वैध बताया गया हो, लेकिन यह शादी खत्म करने का सबसे घटिया  तरीका है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि ट्रिपल तलाक़ इस्लाम का मूल हिस्सा हैं या फिर परंपराओं से आया है? भारत के बाहर इसकी क्या स्थिति है?

सलमान खुर्शीद ने जवाब दिया कि ये परम्पराओं के जरिये भारत आया है और सिर्फ भारत में ही एक साथ तीन बार बोलकर तलाक देने की परंपरा है। जिसे राजनीतिक वजहों से अब तक खत्म नही किया जा सका है बेहतर होगा कि एक साथ तीन तलाक़ बोलने को एक बार तलाक़ बोलने का दर्जा दिया जाए।

सलमान खुर्शीद के आलावा दूसरे दिन कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी, कपिल सिब्बल मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से आरिफ मोहम्मद खान और याचिकाकर्ता  फरहा फैज ने भी अपनी-अपनी दलीले रखी।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा है

सुप्रीम कोर्ट  ने  याचिका कर्ता और दूसरे पक्षों से दो अहम जानकारी मांगी है। कोर्ट ने पूछा है कि ऐसे कौन से इस्लामिक देश है जहां ट्रिपल तलाक को खत्म किया जा चुका है? इसके अलावा अदालत ने इस्लाम की चार अलग अलग विचारधारा से जुड़े विद्वानों की सूची और ट्रिपल तलाक को लेकर उनकी राय भी पूछी है।

दरअसल कोर्ट ये  जानना चाहता है कि ट्रिपल तलाक को लेकर इस्लामिक विद्वान क्या कुछ सोचते हैं।

रामजेठमलानी ने ट्रिपल तलाक़ का विरोध किया

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने ट्रिपल तलाक का विरोध करते हुए कहा  कि ट्रिपल तलाक़ संविधान  के अनुच्छेद 14 में  समानता के मूल अधिकारों के खिलाफ है। क्योंकि इस्लाम में तलाक़ का हक़ सिर्फ मर्द को मिला है, औरत को नहीं।

राम जेठमलानी ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद साहब खुद एक बड़े समाज सुधारक थे और ट्रिपल तलाक परंपरा कुरान शरीफ़ और पैगंबर मोहम्मद साहब के दिखाए गए रास्ते के खिलाफ है।

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आरिफ मोहम्मद खान की दलील

मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए आरिफ मो. खान ने ज़ोरदार दलीलें रखी। उन्होंने कहा कि 3 तलाक के लिए इस्लाम में जगह नहीं है। ये कुरान में कही हर अच्छी बात के खिलाफ है। क़ुरान में ट्रिपल तलाक़ की प्रक्रिया साफ साफ लिखी हुयी है। 

एक साथ तीन तलाक बोलना इस्लाम के किसी भी स्कूल में मान्य नहीं है। ये प्रि इस्लामिक प्रैक्टिस है और ये औरत को जमीन में दफ़नाने के जैसा है। आरिफ के मुताबिक ट्रिपल तलाक़ इस्लाम का मूल तत्व नहीं है। कोई भी कानून जो अमानवीय हो, इस्लामिक नहीं हो सकता।

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याचिककर्ता की दलील

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता फरहा फैज़ ने ट्रिपल तलाक़ की मुख़ालफ़त करते हुए दलील दी कि इस्लाम में सारी समस्याओं की जड़ मौलवी और क़ाज़ी हैं। जो क़ुरान को तोड़ मरोड़कर अपने फायदे के हिसाब से समझाते हैं। ये समानान्तर कोर्ट चलाते हैं।

क़ुरान में ट्रिपल तलाक की व्यवस्था साफ़ साफ लिखी हुयी है। उसके अलावा किसी भी तरह से दिया गया तलाक गैर इस्लामी है। मुस्लिम कानून के कोडिफिकेशन की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। उम्मीद है, उस दिन अटॉर्नी जनरल सरकार की ओर से दलील रखेंगे।

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Source : Arvind Singh

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