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क्या ‘रेवड़ी कल्चर’ पर लगेगी लगाम? आज SC में जनहित याचिका पर होगी सुनवाई 

भाजपा नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने रेवड़ी कल्चर पर पाबंदी लगाने की मांग की है. इस मामले में पिछली बार 26 जुलाई को सुनवाई हुई थी

Updated on: 03 Aug 2022, 09:48 AM

highlights

  • वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने 'रेवड़ी कल्चर' पर पाबंदी लगाने की मांग की
  • मामले में पिछली बार 26 जुलाई को सुनवाई हुई थी
  • सांसद कपिल सिब्‍बल से भी इस पर राय जाहिर करने को कहा

नई दिल्ली:

देश में राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले अपने मतदाता को रिझाने के लिए कई तरह की घोषणाएं करती हैं. इस दौरान मुफ्त बांटने का प्रचलन बढ़ जाता है. इसे आम भाषा में ‘रेवड़ी कल्चर’ कहा जाता है. इन मुफ्त उपहारों के वादे पर किस तरह से लगाम लगाई जाए, इसे लेकर आज एक बार दोबारा से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. इससे पहले जनवरी में इस मुद्दे को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. भाजपा नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने 'रेवड़ी कल्चर' पर पाबंदी लगाने की मांग की है. इस मामले में पिछली बार 26 जुलाई को सुनवाई हुई थी. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग पर तल्ख टिप्पणी की. सीजेआई एनवी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि अगर चुनाव आयोग मुफ्त में सामान बांटने वाली पार्टियों का कुछ नहीं कर सकती तो फिर उसे भगवान ही बचा पाएगा. SC ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए गए ‘तर्कहीन मुफ्त उपहारों’ के वादे को ‘गंभीर’ बताया था.

‘ये बेहद गंभीर मामला’

पिछली बार सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने इसे गंभीर मुद्दा बताया था. इसके साथ सीजेआई ने केंद्र सरकार से मौजूदा हालात पर लगाम लगाने को लेकर कदम उठाने को कहा. चुनाव आयोग की ओर से वकील ने अदालत को बताया कि मुफ्त उपहार और चुनावी वादों से संबंधित नियमों को आदर्श आचार संहिता में जोड़ा गया है. मगर इस पर बैन लगाने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने होंगे. 

सरकार से किसी निर्णय की उम्मीद नहीं: सिब्बल 

अदालत ने सुनवाई के दौरान वरिष्‍ठ वकील और सांसद कपिल सिब्‍बल से भी इस पर राय जाहिर करने को कहा था. सिब्‍बल ने कहा था कि ये बेहद गंभीर मामला है. उन्होंने तर्क देते कहा कि ये मामला राजनीतिक है, इसलिए सरकार से किसी निर्णय की उम्मीद नहीं करी जा सकती है. सिब्बल ने कहा कि इस मामले में वित्त आयोग को बुलाना चाहिए.

केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा 

गौरतलब है कि इस वर्ष जनवरी में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र और चुनाव आयोग दोनों से इस मामले को लेकर जवाब मांगा था. अब दोनों ओर से जवाब मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी रही. याचिका में बात रखी गई है ​कि  मतदाताओं से लाभ लेने के लिए इस तरह की लोकलुभावन रणनीति पर पांबदी लगनी जरूरी है.