सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार से राज्य की दयनीय स्थिति को उजागर करने वाली एक याचिका पर जवाब मांगा, जहां 13 अपराधी किशोर घोषित किए जाने के बावजूद आगरा की जेल में बंद हैं. दोषियों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के अनछुए फैसले कहते हैं कि वे 18 वर्ष की आयु सीमा से कम थे, फिर भी उनकी तत्काल रिहाई के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और मामले पर विचार करने के लिए आठ जुलाई की तिथि निर्धारित की.
याचिका में दोषियों की तत्काल रिहाई की मांग की गई है, जिन्हें 14 से 22 साल की अवधि के लिए कैद किया गया है. अधिकांश मामलों में, विभिन्न आईपीसी अपराधों के तहत उनकी सजा के खिलाफ उनकी वैधानिक आपराधिक अपील उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है. याचिका में कहा गया है कि जेजेबी ने फरवरी 2017 और मार्च 2021 के बीच अपने आदेशों के माध्यम से स्पष्ट रूप से कहा कि कथित घटना की तारीख को ये सभी याचिकाकर्ता 18 साल से कम उम्र के थे. इसमें कहा गया है कि उन्हें संबंधित अदालत ने किशोर घोषित किया था.
याचिका में यह भी कहा गया है कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) (संशोधन) अधिनियम, 2006 के अनुसार, किशोर की याचिका मुकदमे के किसी भी चरण में और मामले के अंतिम निपटान के बाद भी उठाई जा सकती है. याचिका में इस कानून का हवाला देते हुए तर्क दिया गया है कि याचिकाकर्ता खूंखार अपराधियों के बीच जेलों में बंद हैं, जो जेजे अधिनियम के उद्देश्य के विपरीत है.
याचिका में कहा गया है कि समय की आवश्यकता है कि इन याचिकाकर्ताओं की तत्काल प्रत्यक्ष रिहाई हो, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि न केवल उन्हें किशोर घोषित किया गया है, बल्कि वे पहले से ही जेजे अधिनियम, 2000 के तहत प्रदान की गई हिरासत की अधिकतम अवधि तीन साल ये गुजार चुके हैं. याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत से उनकी रिहाई के लिए आवश्यक आदेश पारित करने का आग्रह किया है.
Source : News Nation Bureau