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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा जो आंतकी आम लोगों को मारने में नहीं हिचकिचाते उन्हें अपने परिवार के बारे में भी सोचना छोड़ देना चाहिेए।
उन्हें कोर्ट से किसी भी तरह की रहम की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात 1996 में दिल्ली के लाजपत नगर में हुए बम ब्लास्ट मामले में दोषी सजायाफ्ता मोहम्मद नौशाद की जमानत याचिका की सुनावई के दौरान कही। कोर्ट ने नौशाद को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया।
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर की अगुवाई वाली बेंच के सामने हुई। कोर्ट ने कहा, 'अगर आप इस तरह से आम लोगों को मारते हैं,तो आप अपने परिवार की बात कैसे कर सकते हैं।'
दोषी नौशाद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अपनी बेटी की शादी में शामिल होने के लिए एक महीने के लिए अंतरिम जमानत की याचिका दाखिल की थी। नौशाद की ओर दाखिल याचिका में ये कहा गया था कि वह 14 जून, 1996 से ही जेल में बंद है और उसे अब तक 20 साल से ज्यादा वक्त हो चुका है। 28 फरवरी को उसकी बेटी की शादी है जिसमें उसे शामिल होने की इजाजत दी जाए।
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वहीं सीबीआई की ओर से दलील का विरोध करते हुए कहा गया कि ब्लास्ट केस में उम्रकैद की सजा को चुनौती दी गई है और फांसी की मांग की गई है। ऐसे में जमानत की अर्जी खारिज की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की दलील पर सहमति जताई और जमानत अर्जी खारिज कर दी।
HIGHLIGHTS
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मासूमों की जान लेने वालों को भूल जाना चाहिए घर-परिवार
- लाजपतनगर ब्लास्ट मामले में दोषी नौशाद की जमानत याचिका पर की ये टिप्पणी
- 20 साल से जेल में बंद नौशाद ने अपनी बेटी की शादी के लिए मांगी थी जमानत
Source : News Nation Bureau